आराधना -गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Story: "पापा काफी देर हो रही है, अब मैं स्कूल जा रही हूं।" हांफते हुए पूजा ने कहा।
यह सुन पापा गुस्से से आग बबूला हो गए और आँख दिखाते हुए उन्होंने कहा-" तुम्हे रोज बोलता हूं न कि पहले मंदिर जा कर पूजा कर लिया कर उसके बाद ही स्कूल जाना है।"
मिश्रा जी के गुस्से से डर कर पूजा मंदिर की ओर निकल गई। रास्ते में जाते वक्त उसके मन में अनगिनत सवाल कौंध रहा था। मन में सोचते हुए जा रही थी कि 5वीं क्लास में पढ़ने वाली 10 वर्षीय बच्ची के लिए क्या पूजा इतनी जरूरी हो गई कि स्कूल से पहले पूजा करने जाने के लिए डांट मिलने लगी। उधर स्कूल के लिए भी देर हो रही थी तो उसकी टेंशन अलग थी क्योंकि पांडेय सर काफी अनुशासन में रहने वाले शिक्षक हैं और देर से जाने पर वो लौटा देते हैं।
ख़ैर इस कोलाहल के साथ पूजा मंदिर जा कर पूजा कर आई और अब वह स्कूल के लिए निकल गई।
स्कूल पहुंचते ही उसकी नज़र स्कूल के फील्ड में पड़ी जहां पर रोज प्रार्थना होती थी, वहां कोई नहीं था। सभी बच्चे क्लास में जा चुके थे। पूजा ने अपनी कलाई घड़ी पर नज़र डाली तो पता चला कि वह आज भी 30 मिनट लेट है।
पहली क्लास पांडेय सर की थी और उन्हीं के सामने क्लास में पूजा को जाना था। जैसे ही पूजा ने दरवाज़े पर दस्तक दिया, पांडेय सर की नज़र पड़ गई। पांडेय सर गुस्से से लाल होते हुए कहा-" तुम्हें हर रोज देर से आने की आदत सी हो गई है। ऐसा कब तक चलेगा? तुम्हें अपने भविष्य की चिंता है भी या नहीं?
"सर, मैं कभी स्कूल में लेट नहीं होना चाहती हूं लेकिन इतनी सुबह उठ कर पहले मंदिर जाना पड़ता है और फिर स्कूल, तो उसी में लेट हो जाता है।" डरी- सहमी पूजा ने जबाब दिया।
पांडेय सर ने गंभीरता से पूछा-" तो क्या हर रोज तुम्हें मंदिर जाना पड़ता है। अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है कि अभी से ही तुम इतनी आराधना में लगी हो?"
"सर, मेरे पापा का सख़्त आदेश रहता है कि पहले मंदिर , उसके बाद ही स्कूल या कोई और काम।" पूजा ने कहा।
"ठीक है, मैं आज शाम तुम्हारे घर आऊंगा और तुम्हारे पापा से बात करूंगा। तुम बैठ जाओ और पढ़ने पर ध्यान दो।" पांडेय सर ने पूजा को आश्वासन देते हुए कहा।
शाम में पांडेय सर पूजा के घर आये। मिश्रा जी से पूजा के साथ बैठ कर बात करने लगें। मिश्रा जी पूजा - पाठ में विलीन रहने वाले व्यक्ति थे और उनके साथ -साथ घर के लोगों को भी पूजा करने के लिए कहते थे। पाण्डेय सर ने कहा - " मिश्रा जी, पूजा स्कूल में हर रोज लेट ही जा रही है। इसीलिए के लिए मैं आपसे बात करने आया हूँ। आज जब पूजा से कारण पूजा तो उसने बताया कि पापा हर रोज मंदिर भेज देते है इसीलिए लेट हो जाता है। पूजा स्कूल की होनहार छात्रा है लेकिन इसीलिए तरह चलता रहा तो क्लास में अव्वल आने वाली पूजा काफ़ी नीचे चली जायेगी।"
मिश्रा जी ने चकित होते हुए कहा-" लेकिन मैं तो बस मंदिर जाने के लिए ही बोलता हूँ, उसके बाद तो पढ़ने के लिए काफ़ी समय है तो उसके बाद भी तो पढ़ सकती है। आखिर पूजा पाठ से मन शांत रहता है तो ये करने में दर्ज ही क्या है?"
" मिश्रा जी पूजा- पाठ करना भी जरूरी है और अपने कैरियर बनाने के लिए पढ़ना भी जरूरी है। लेकिन दोनों का अपना अलग अलग महत्व है और अलग- अलग समय है। अभी पूजा बच्ची है उसपर अभी से ही धर्म का बोझ डालना न्यायोचित नहीं है। अभी उसकी उम्र पढ़ के कुछ करने की है। जब एक बार कैरियर बन जाये तो फिर उसे धर्म का भी ज्ञान होगा। उसे अभी पढ़ने दीजिये और जब बड़ी होगी तो वह दोनों पर ही ध्यान देने लगेगी। लेकिन इतनी कम उम्र में इतना बोझ बर्दास्त नहीं कर सकती है।" पाण्डेय सर ने समझाते हुए कहा।
मिश्रा जी भी अवाक् हो कर मौन थे।
फिर पांडेय सर ने आगे कहा- "स्कूल में भी संस्कार के बीज बोए जाते है मिश्रा जी। पढ़ के भी संस्कार आयंगे और स्कूल में भी अपने संस्कृति का सम्मान करना सिखाया जाता है, जिसके बाद पूजा बड़ी हो कर खुद ही अपने धर्म, संस्कृति और संस्कार की समझ रखेगी। वह एक बेहतर इंसान बनेगी और आपका नाम रौशन करेगी।"
अब मिश्रा जी भी बात समझ चुके थे। मिश्रा जी ने मुस्कुराते हुए पूजा से कहा-" जा बेटी अब कल से तुम स्कूल ही जा। जब तुम्हे समय मिले और बड़ी हो जाओ तब तुम पूजा - पाठ कर लेना। मेरे लिए पूजा करने से ज्यादा जरूरी है कि तुम संस्कारी बनो और अपने धर्म का सम्मान करो और उसका पालन करो। एक बेहतर इंसान बनना ज्यादा जरूरी है।
पूजा खिलखिला उठी और पाण्डेय सर के लिए चाय लेने चली गई।