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आत्मसम्मान की वापसी-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM May 27, 2023 IST | Sapna Jha
Aatmsamman ki Wapsi
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Aatmsamman: उसकी ऐसी हालत के जिम्मेदार भी तो हम दोनों ही हैं, अपने बेटे राघव से कहते हुए निर्मला जी की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगते हैं। इन्हें आंसुओं के सैलाब के साथ ही वह भी खो जाती हैं अंकिता अपनी बहू के हंसती खेलती चहकती उस दुनिया में जब वह सही थी ऐसा क्या हुआ अंकिता के साथ जानिए????

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निर्मला और उनके पति पांडे जी बहुत ही सभ्य और संपन्न घराने से थे। किसी चीज की कोई कमी नहीं दी थी ईश्वर ने, लेकिन समय बीता जा रहा था और एक सबसे बड़ी कमी जो थी, वह थी उनके घर में किलकरियों का ना गुंजना। दोनों के माता पिता ने उन्हें बहुत जगह दिखाया लेकिन वह दोनों संतान सुख से वंचित ही रहे। पांडे जी को तो थोड़ा कम फर्क पड़ता था लेकिन निर्मला जी को अंदर तक झकझोर कर रख देता था ,उन्हें हमेशा लगता  सुख सुविधाओं के बावजूद भी उनके जीवन में पूर्णता नहीं प्राप्त हुई है। औरत के नाम पर धब्बा है वह इस हीन भावना से ग्रसित रहने लगी थी। अपने अंदर की ये कमी उनके आत्मसम्मान को आहत कर रही थी.........।

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पांडे जी को किसी ने एक दिन एक नेक सलाह दी उन्होंने इस बारे में अपनी निर्मला से बात की कि हम लोग अनाथालय से एक बच्चे को ले आते हैं । हम लोग को बच्चा मिल जाएगा जीने का सहारा, उस बच्चे को भी माता-पिता मिल जाएंगे। यह बातें निर्मला को बहुत अच्छी लगी और वह खुश हो गई। उन्होंने जाकर झटपट में अनाथालय से सारी प्रक्रिया पूर्ण कर एक बच्चे को अपने नाम पर ले आए अपने लिए। उस बच्चे का नाम उन्होंने रखा राघव। 2 साल का राघव इन सारी बातों से अनजान घुल मिल गया थोड़े ही दिन में अपने माता-पिता (निर्मला और पांडे जी )से दोनों दंपत्ति को खुशी का सहारा मिल गया था। धीरे धीरे समय बीतता गया राघव बड़ा हो गया ,और आज राघव मैट्रिक के बाद पहली बार इंटर में दाखिला लेने के लिए अपने माता पिता से दूर जा रहा है। खुशी इस बात की थी कि उसका भविष्य संवरने जा रहा है, शिक्षा सब चीजों से ऊपर है इस बात को पांडे जी अच्छी तरह समझते थे वो भी शिक्षक हैं........।

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समय का काम है बीतना उतनी ही तेज रफ्तार से बीत रहा था राघव का इंटर कंप्लीट हो गया ग्रेजुएशन में  उसने दाखिला लिया, इसी दौरान उसे कॉलेज की एक लड़की अंकिता जो कि पढ़ने में काफी ही तेज थी और उसके चुलबुले पन पर राघव अपना दिल हारे जा रहा था। इस बात का एहसास धीरे-धीरे अंकिता को भी होने लगा था। उसकी धड़कने भी उसके नाम से धड़कने लगी थी। अंकिता काफी समझदार लड़की है  वह अपनी जिंदगी को अपने लक्ष्य को इस बहकावे में खोना नहीं चाहती है। खुद को नियंत्रित करके अच्छी मुकाम हासिल करना चाहती है , फिर प्यार और शादी के चक्कर में पड़ना इस बात की समझदारी अंकिता को है । लेकिन राघव को नहीं, राघव जबसे अंकिता के प्यार में पड़ा है तब से पढ़ाई लिखाई को छोड़कर मजनू बना हुआ है.......।

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 यह मजनूपना उसको भारी पड़ रहा है उसके फर्स्ट ईयर के रिजल्ट पर इसका असर बखूबी दिखने लगा था। लेकिन उससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ रहा तो वह जब तक अंकिता को बता नहीं देता अपने दिल की बात तब तक अब उसे कोई खुशी चैन नहीं 1 साल इसी चक्कर में बीत गए ।आज कॉलेज में फर्स्ट ईयर के रिजल्ट वितरण के समय  एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें अंकिता को  प्रथम स्थान प्राप्ति के लिए पुरस्कार दिया जाना था । इसके अलावा और भी श्रेणियों की प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरण होना था। राघव को इससे अच्छा और कोई मौका नहीं लगा अंकिता से अपने प्यार का इजहार करने का, इतनी सोचा उसने सोचा बधाई के साथ साथ अपने दिल का हाल भी बयां कर दूंगा......।

 राघव अपने दिल का हाल अंकिता को बधाई के साथ एकांत में सुना देता है। अंकिता को खुशी होती है इस बात की, राघव अच्छे परिवार के साथ साथ कॉलेज में शुरू से पढ़ाई में अच्छा रहा है| राघव की आंखों का असर उसके दिल की धड़कन तेज तो कर ही गई थी। लेकिन लड़की होने की वजह से वह इजहार नहीं कर पाई थी ,पहले इंतजार कर रही थी राघव का। जब राघव ने प्यार का इजहार कर ही दिया तो अंकिता ने भी अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी अपने प्यार पर। लेकिन अंकिता ने एक शर्त रखी,  मैं तुम्हारे साथ विवाह के बंधन में तभी बंधूंगी जब तक अपने मुकाम को मैं हासिल ना कर लूं। मुझे पढ़ लिखकर कुछ बनना है अपने आत्मसम्मान को खोना नहीं है किसी भी सूरत पर। किसी भी बंधन की मजबूरी में मैं अपने आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहती। मुझे खुद को बहुत ही मजबूत बना कर आसमान की तरफ उंगली बढ़ाते हुए उस ऊचाइयों को छूना है..........।

राघव कहां इस शर्त को मानने वाला था उसने कहा इस प्यार में यह दूरी बर्दाश्त नहीं हो रही , हम अपने पैरंट्स से बात करेंगे। शादी के बाद भी तो पढ़ाई तुम कर सकती हो तुम्हारी पढ़ाई में कोई भी बाधा नहीं होगी यह मैं वादा करता हूं तुमसे। विधि की रचना उसने स्वीकृति दे दी राघव जब घर आया तो अपने माता-पिता से इस बारे में बातचीत की ।

राघव के माता-पिता को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी। उन्हें  तो और खुशी महसूस हो रही थी दुल्हन के आने से मेरा घर गुंजायमान होने वाला है। सबने जाकर लड़की वालों से रिश्ता तय किया आनन-फानन में राघव और अंकिता की शादी हो गई। अंकिता दुल्हन बन ससुराल आ गई शुरू में तो सब कुछ बहुत अच्छा रहा लेकिन अचानक से निर्मला जी ना चाहते हुए भी मां से सास बन गई। उनके निर्मल स्वभाव कड़क होने लगे अंकिता के प्रति, धीरे-धीरे उसकी प्रतिद्वंदी बनने लगी। जब भी पढ़ने बैठती अंकिता उसे पढ़ने नहीं देते कोई न कोई बहाना कर उसे काम में लगा देती। इस तरह अंकिता पढ़ाई में पीछे हो गई और खुद के ही रिजल्ट को देखकर डिप्रेशन में चली गई..........।

अब राघव और उसके परिवार के सभी सदस्यों को उसकी उदासी चुभने लगी थी। राघव ने वादा किया था , तुम्हारी पढ़ाई में कोई दिक्कते नहीं आएंगी। उसने इस वादे को पुनः जीवित किया अपने अंदर और अंकिता के बारे में अपनी मां से बातें की। दोनों ने मिलकर एक दूसरे के सहयोग से उसे डिप्रेशन से उबारने का हर संभव प्रयास करने लगे। अंततः मेहनत रंग लाई और हमारी अंकिता हंसने, खेलने चहकने लगी । राघव निर्मला जी की तरफ देखते हुए मां अब अपना स्वभाव निर्मल ही रहने देना। अंकिता का पढ़ने में रुझान धीरे धीरे होने लगा । बहुत ही अच्छे नंबर लाकर अपने कॉलेज की टॉपर रही ।आज वो सब के सहयोग से कंपनी में कार्यरत है । अंकिता को अपनी कंपनी में सब के साथ पूरे आत्मविश्वास से कार्य करते देख राघव बहुत सुकून महसूस कर रहा है। उसके इस आत्मसम्मान की वापसी को देखकर राघव को अपना वादा पूर्ण होते नजर आ रहा था.

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