गलतियों को स्वीकारें: Accept Mistakes
Accept Mistakes: अगर आप क्षमा मांगेंगे तो लड़ाई वहीं खतम हो जाएगी। फिर इलजाम लगाने वाला ही तो अपराध-बोध को ढोएगा। आप व्यापारी हो सकते हैं या खिलाड़ी, अपनी गलतियों को मानने के आधार पर ही जीवन में आपकी सफलता निर्भर करती है।
संसार में कोई भी व्यक्ति गलतियों से परे नहीं है। लेकिन भूल करने का बोध होने पर आप उसे मानने के लिए तैयार हैं या नहीं, यही बात आपको दूसरों से अलग करती है।
सवाल यह नहीं है कि किया गया काम गलत था या सही। समस्या तो वह घमंड भरी जज्बात है जो सिर पर चढ़कर बोलती है- 'गलती मानूं' और मैं, धत्...
छुटपन में आप कितने सरल-तरल थे! मार खाने के बाद भी बिना किसी द्वेषभाव के मारने वाले व्यक्ति के पास बार-बार जाते थे। कहां गया खुशी का वह आलम?
बड़े होते-होते आप शारीरिक और मानसिक रूप से ठोस बन गए। आपने समाज में अपने लिए एक पहचान बना ली। अब उस पहचान और प्रतिष्ठ को बनाए रखने की कोशिश में अपनी ईमानदारी का भी बलिदान करने को तैयार हो गए। इसीलिए गलती मानने की अपनी बुनियदी प्रकृति को भी गवां बैठे हैं।
'क्षमा कर दो भई, भूल हो गई। मैंने अनजाने में गलती कर दी। अगली बार सावधान रहूंगा यों विनीत भाव से कह देंगे तो क्या आपके सिर से ताज उतर जाएगा?
गलती का एहसास होने के बाद भी, प्रकट रूप से स्वीकार करने के साहस के बिना उसे उचित ठहराते जाना ही सबसे बड़ी भूल है।
एक बार शंकरन पिल्लै ने किसी दूसरे के बाग में डालों से लटक रहे पके-पके फलों को देखा। जल्दी से एक बोरी ले आए। बाड़ को फांद डाला।
बड़ी फुर्ती के साथ पेड़ से फल तोड़ डाले। उन्हें बोरी में भर कंधे पर डाल लिया। फिर से बाड़ को फांदकर बाहर निकले ही थे कि बाग के मालिक ने पकड़ लिया।
'बोलो, किसी इजाजत के साथ इन्हें तोड़ा था?
'मैंने कहां तोड़ा? पुरजोर हवा चली। आंधी में ये फल नीचे झड़ गए।
शंकरन पिल्लै ने कहा।
'तो यह बोरी काहे को उठा लाए?
'ओह… बोरी? यह भी कहीं से हवा में उड़ती हुई यहां गिरी थी।
'माना कि जोर की हवा में फल झड़ गए… और बोरी भी हवा में उड़कर आ गिरी, फलों को बोरी में भरने वाला कौन था, बताओ। बाग का मालिक दहाड़ पड़ा।
शंकरन पिल्लै घबराए नहीं, बड़े भोले बनकर बोले, 'वही मेरे लिए भी आश्चर्य की बात है। गलती करने वालों में से अनेक लोग शंकरन पिल्लै की तरह रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी अपनी गलती स्वीकार करने के बजाए उसे उचित ठहराने के लिए नई-नई दलीलें रखते जाते हैं।
बड़ी खतरनाक है ऐसी मानसिकता।
यह विचार मत कीजिए कि अगला व्यक्ति कौन है, आपका सहयोगी है, अधिकारी है, आपकी मातहत काम करने वाला है या बिल्कुल अपरिचित है। यों भेदभाव किए बिना, ईमानदारी के साथ अपनी गलती को मान लीजिए। ऐसा करने से आपका सम्मान बढ़ेगा ही, घटेगा नहीं।
किसी व्यक्ति ने बस में अपने सहयात्री के पांव को जोर से कुचल दिया। फिर यह कहते हुए पांव हटा लिया, 'ध्यान नहीं दिया भाई।
जो व्यक्ति कुचला गया था उसने झुककर अपने पांव को डांटा, 'ऐ मेरे पांव! उस सज्जन ने तो कारण बता दिया। फिर क्यों अब भी दुखते हो?
चाहे जानबूझकर कुचलें या अनजानें में कुचलें, दर्द तो दर्द ही है?
माफी मांगना छोड़कर 'क्या मैंने जानबूझकर दबोचा था? यों धांधली करना कहां का न्याय है?
अनजाने में एक बार गलती कर सकते हैं। लेकिन गलती की ओर ध्यान दिए बिना लगातार भूलें करते जाना प्रगति और विकास को अवरुद्ध कर देगा।
कुछ लोग आपकी गलती को सूक्ष्मदर्शी से देख सकते हैं। उन्हें देखने दें, कोई बात नहीं।
अगर आप क्षमा मांगेंगे तो लड़ाई वहीं खतम हो जाएगी। फिर इलजाम लगाने वाला ही तो अपराध-बोध को ढोएगा।
आप व्यापारी हो सकते हैं या खिलाड़ी, अपनी गलतियों को मानने के आधार पर ही जीवन में