अल्जाइमर के इन 7 शुरूआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें: Alzheimer Disease
Alzheimer Disease: अल्जाइमर काफी गंभीर बीमारी है।इस बीमारी में बातें भूल जाना आम बात है।इसका सीधा असर हमारे दिमाग पर होता है। इसी वजह से इंसान धीरे धीरे चीज़ें भूलने लगता है।इसे डिमेंशिया का एक प्रकार है। इसमें मरीज की याददाश्त धीरे धीरे कमजोर होती चली जाती है।जिसकी वजह से उसके सोचने की क्षमता पर भी काफी फर्क पड़ता है। रोजमर्रा का काम करना धीरे धीरे ऐसे मरीज के लिए काफी मुश्किल भरा होता जाता है।इसमें हमारे दिमाग की कोशिकाएं डी जनरेट होकर ख़त्म होने लगती हैं।
बिना बात गुस्सा आना, एक ही बात या शब्द को बार बार दोहराना,ठीक से किये हुए काम को भी बार बार लगातार चेक करते रहना चिचिड़ापन, मन बेचैन रहना, किसी काम में मन ना लगना, एकाग्रता की कमी, बिना वजह कहीं भी चले जाना,रोज़ का रास्ता भटक जाना, मूड अचानक से बदल जाना, किसी की बात समझ ना आना, हैल्यूसिनेशन या डिप्रेशन में जाने लगना इस बीमारी के बहुत ही आम से लक्षण हैं। इस तरह के लक्षण किसी में भी दिखाई देने पर उसे साधारण समझ कर नज़रअंदाज़ ना करें। समय रहतें उस व्यक्ति को डॉक्टर के संपर्क में जाएँ। न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर इस बीमारी का पूरी तरह से पता लगा सकते हैं।
अधिकतर ये बीमारी बुजुर्गों को ही होती हैं। आप अपने आस पास किसी व्यक्ति को इस तरह की समस्या से जूझते हुए देख रहे हैं, तो जल्द से जल्द आगे बढ़कर उनकी मदद करें।
आइये जानते हैं क्या हैं इसके शुरूआती लक्षण और इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति किस तरह का व्यवहार करना शुरू कर देता है।
बातें भूल जाना
वैसे तो हम सभी कभी न कभी कुछ भूल ही जाते हैं।लेकिन जब भूलने की ये आदत हद से ज्यादा बढ़ने लग जाए।थोड़ी देर पहले की हुई बातें भी जब इंसान भूलने लगे तब हमें समझ लेना चाहिए की ये संकेत ठीक नहीं हैं।अक्सर हम सामने वाले का मजाक उड़ाना शुरू कर देते हैं।उन्हें भुलक्कड़ या लापरवाह का तमगा दे देते हैं।पर ये जानने की कोशिश नहीं करते की जो इंसान कुछ समय पहले तक सब याद रखता था वो अचानक थोड़ी देर पहले अपनी ही कही हुई बात कैसे भूल गया।इसीलिए इसे भूलने वाली बीमारी कहा जाता हैं।
रोजमर्रा के कामों में परेशानी होना
अल्जाइमर से ग्रस्त इंसान रोजमर्रा के साधारण से कामों को करने से पहले भी कई बार सोचता है।दैनिक कामकाज भी उसके लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं।पहले वो रोज के कामों की योजना बनता है।योजना बनाने में ही उसे ना जाने कितना ही समय लग जाता है।इस तरह का आसान सा काम करने में ही उसे काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।इस वजह से वो चिड़चिड़ा होने लगता है।जब ये बीमारी धीरे धीरे बढ़ने लगती है तब उन्हें को किसी को फ़ोन करने तक में परेशानी होने लगती है।मनोरंजन के लिए जो खेल परिवार वाले एक साथ रोज़ खेलते हैं उस तरह के सीधे साधे से खेल को भी वो समझ ही नहीं पाते हैं।
बोलने में परेशानी होना
इस से पीड़ित इंसान धीरे धीरे रोजमर्रा के शब्द बोलना और समझना भूलने लगता है।याद्दाश पर काफी जोर डालने के बाद भी उसे समझ नहीं आता की किसी एक ख़ास बात के लिए किस शब्द का प्रयोग करूँ। इस वजह से वो बोलना बंद कर देता है या तो रुक रुक कर बोलता है और अपनी बात कहने में उसे काफी समय लगता है। उसे अपनी बात किसी को समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है।उसे खुद पता नहीं होता वो क्या कहना चाहता है और दूसरे को क्या समझाना चाहता है।पहले मरीज छोटी छोटी चीजें बोलने में तकलीफ महसूस करता है और समय के साथ साथ इलाज जा होने पर पूरी तरह से बोलना भूलने लगता है।
लिखने में परेशानी होना
धीरे धीरे अल्जाइमर से पीड़ित मरीज लिखना भूलने लगता है।साधारण से अक्षर लिखने और पहचानने में उन्हें काफी सोचना पड़ता है।उनकी लिखावट भी उतनी स्पष्ट नहीं रह जाती है।कभी कभी वो अक्षरों की मिरर इमेज बनाने लगते हैं।उन्हें ये पूरी तरह से नार्मल लगता है।भाषा के साथ साथ लिखने में परेशानी होना उनके लिए समस्या बनता जाता है।ऐसा उनके सोचने समझने की शक्ति चले जाने की वजह से होता है।जब हमें कुछ याद ही नहीं रहेगा तो वो कैसे समझ पाएंगे की उन्हें क्या लिखना और क्या बोलना है।इस तरह के लक्षण दिखने पर नज़रअंदाज़ ना करें।
सामान्य जोड़ घटाव में दिक्कत आना
थोड़े बहुत कैलकुलेशन में काफी देर सोचने के बाद भी असमंजस में ही रहना।समझ ना पाना की इस बात के लिए संख्या जोड़नी है या घटानी है। इस तरह की दिक्कत होना इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिये काफी आम है। काफी लम्बा समय और कभी कभी तो घंटों बाद भी वो सही उत्तर नहीं तलाश पाते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आता क्या सही है और क्या गलत।
बार बार सवाल पूछना
एक ही बात को बार बार दोहराना या बार बार एक ही सवाल करना इनकी आदत बन जाती है।वो जितना सवाल पूछते हैं उतना ही भूलिए चले जाते हैं। इसी तरह वो दूर के रास्ते तो छोड़िये, आस पास के या अपने ही घर के रास्ते को याद नहीं रख पाते हैं। गली नुक्कड़ या सोसाइटी का नाम तक बताने में उनको काफी दिक्कत होने लगती है। कई बार तो उन्हें ये तक याद नहीं रहता की वो कहाँ से आये हैं और उन्हें कहाँ जाना है। उन्हें बहुत ही साधारण से निर्णय लेने में परेशानी होने लगती है। किसी भी चीज़ को ध्यान से देखने पर भी वो ये नहीं समझ पातें हैं की इस चीज़ का उपयोग कहाँ होता है या कहाँ होना चाहिए।
चीज़ों की जगह बदल देना
जब ये बीमारी काफी बढ़ जाती है तो मरीज पूरी तरह से भूल जाता है की रोज़ में उपयोग होने वाली चीज़ें घर में कहाँ रखी जाती हैं।चीज़ों की जगह पूरी तरह से बदल देना उनकी आदत हो जाती है।अचानक से उनका स्वभाव बदलने लगता है। बिना वजह ही वो किसी पर भी गुस्सा कर देते हैं या हॅसने मुस्कुराने लगते हैं। बिना वजह हर बात पर डर जाना या शक करना या फिर किसी को बार बार टोकना उनकी आदत हो जाती है। वो इंसान खुद पर से विश्वास खो देता है और पूरी तरह से किसी और पर निर्भर हो जाता है। उसे लगने लगता है वो जो करेगा गलत होगा और जिस पर वो निर्भर है अब बस वही उसके लिए सब कुछ कर सकता है।