अपनी प्रेम कहानी ऐसी बन जाए-गृहलक्ष्मी की कविता
Hindi Poem: हे प्रिय! काश हमारी भी ऐसी ही,
प्रेम कहानी बनी रह जाए।
उम्र साठ के बाद भी,
ये साठ-गांठ अपनी,
और मजबूत बन जाए।
मैं तेरी आहट को पहचानूँ,
तू मेरी खामोशी भांप जाए।
तुझे तलब़ लगने से पहले,
कांपती हाथों से चाय लेकर,
तेरे ही सामने आ जाऊं।
भले कोई और नाम ना रहे याद,
दोनों के लफ़्ज संग 'शानू' कह जाए।
मेरी राह तकने से पहले ही,
तू मेरी नज़रों के सामने आ जाए।
आँखो पर तो चश्मा है तेरे,
मेरी आँखे भी ऐसी ही हो जाए।
धूँधली नजर से कुछ भी देखूँ,
तो बस तेरी ही छवि नजर आए।
कभी-कभी बच्चों-सा प्यार,
तू तब भी मुझको कर जाए।
अपनी कांपती उंगलियों से भी,
तू मेरे झूर्रीदार गालों को सहलाए।
मेरे उन सफेद बालों से भी,
तू मखमली रूई-सा एहसास पाए।
और चंपी करने के बहाने से,
तू हर-बार मेरे बालों को उलझाए।
तब भी मैं ही रूठूँगी तुझसे,
और तू हँसकर मुझे मनाए।
सफेद बालों से निकले मांग को
लाल सिंदूर से तू सजाए।
ये सब करके जब थक जाएँ,
तो दोनों संग-संग थम जाएँ।
मैं चिर निद्रा में सो जाऊँ,
तेरी बाहों में तुझसे पहले,
मेरे बाद फिर तू भी सो जाए।
अपने बच्चों के होठों से भी,
हम आदर्श युगल कहलाएँ।
प्रेम कहानी पर …..
यकीं करने को बच्चे,
हमारी ही डायरी के,
पन्नों को पढ़ पाए।
हे प्रिय! काश हमारी भी ऐसी ही,
प्रेम कहानी बनी रह जाए।
उम्र साठ के बाद भी,
ये साठ-गाँठ अपनी,
और भी मजबूत बन जाए।
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