For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

कहीं आप ओवर प्रोटेक्टिव पेरेंट तो नहीं: Over Protective Parent

12:30 PM May 29, 2024 IST | Reena Yadav
कहीं आप ओवर प्रोटेक्टिव पेरेंट तो नहीं  over protective parent
over protective parent?
Advertisement

Over Protective Parent: बहुत ही मुश्किल है यह तय करना कि बच्चों को कितनी छूट दी जाए और कहां उनके साथ कड़ा रू$ख अपनाने की ज़रूरत होती है। इस बात में थोड़ी भी चूक बच्चे को या तो उपेक्षित बना देती है या उग्र। कैसा होना चाहिए संतुलित रवैया, जानिए इस लेख से-

एक बच्चे की परवरिश इतना संवेदनशील और मुश्किल विषय है कि जिसे किसी ए क फिक्स दायरे में नहीं समेटा जा सकता। जहां माता-पिता के प्यार और समय की कमी उनमें उपेक्षा का एहसास भर देती है, वहीं ज़रूरत से ज़्यादा प्यार-दुलार या प्रोटेक्शन उन्हें जि़द्दी भी बना सकता है और माता-पिता पर उसकी निर्भरता को भी बढ़ा सकता है। फिर यह कैसे तय किया जाए कि उनके साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए, यही आज के ज़्यादातर माता-पिता की बड़ी समस्या है।

Also read: बच्चे और हॉबी क्लासेस: Hobby Classes

Advertisement

Over Protective Parent
Parenting has changed with time

वर्तमान में हम देखते हैं कि कारण चाहे बढ़ती मंहगाई हो या बढ़ते कॉम्पिटीशन के दौर में अपने बच्चे को सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराने का दबाव, अब ज़्यादातर परिवारों में माता-पिता दोनों ही कामकाजी होते हैं। वे सुविधाएं तो बहुत सारी जुटा देते हैं, मगर अपने बच्चे को चाहकर भी ज़्यादा समय नहीं दे पाते। इसी समयाभाव की पूर्ति वे बच्चे की हर जि़द को पूरा करके करना चाहते हैं।

इससे बच्चा भी यही समझता है कि वह अपनी जि़द से सब-कुछ पा सकता है, जबकि अभी उसे इसे बात का बोध नहीं है कि उसके लिए क्या सही है और क्या $गलत। चाहे ज़्यादा चॉकलेट-आइसक्रीम खाना हो या फिर महंगे गैजेट्स की मांग करना। यह सिर्फ़ बड़े ही तय कर सकते हैं, लेकिन बात घूम-फिरकर वहीं आ जाती है कि माता-पिता नौकरी करें या आइडियल पेरेंटिंग। रही-सही कसर संयुक्त परिवारों की जगह बढ़ती-पनपती न्यूक्लियर फैमिलीज़ ने पूरी कर दी है, जहां बच्चों को इस सही-$गलत के भेद को बताने के लिए कोई बड़ा मौजूद नहीं होता और क्रेच या मेड के भरोसे पलना उस बच्चे की मजबूरी हो जाता है। ऐसे में माता-पिता दोनों के ही द्वारा व्यावहारिक संतुलन बनाए रखना ज़रूरी हो जाता है।

Advertisement

How to recognize overprotective parenting
How to recognize overprotective parenting

कई बार यह समझ में नहीं आता कि बच्चे के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है, वह संतुलित है या ज़रूरत से ज़्यादा प्रोटेक्टिव। कुछ माता-पिता का यह मानना होता है कि यदि बच्चे को अनुशासित रखना है तो उसके साथ डांट-डपट करने में कोई बुराई नहीं है। वहीं कुछ सोचते हैं कि बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करने में ही आइडियल पेरेंटिंग छिपी है। इन दोनों ही बातों की अति भी नुकसानदेह है और कमी भी। इसके अतिरिक्त बच्चा कहीं बाहर का कुछ खा लेगा तो वह बीमार पड़ जाएगा।

अपने से निचली पृष्ठभूमि वाले बच्चों की संगत में बैठेगा-खेलेगा तो बिगड़ जाएगा। कम महंगे स्कूल में पढ़ेगा तो बढ़ते कॉम्पिटिशन का सामना नहीं कर पाएगा, ये ऐसी सोच के ही कुछ पहलू हैं, जिससे यह बात साबित होती है कि बच्चे को जरूरत से ज़्यादा नाज़ुक बनाया जा रहा है। ऐसे में इस तथ्य की भी अनदेखी कर दी जाती है कि अति हर चीज़ की बुरी होती है। बच्चे की परवरिश में क्यों शुरू से ही इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता क्षमता क्यों इतनी नाज़ुक बना दी गई है कि ज़रा सा बदलता मौसम या खान-पान उसे बीमार कर देता है। आपके जुटाए महंगे खान-पान के बावजूद क्यों ऐसे पोषण की कमी रह गई।

Advertisement

कितनी ही बार हम देखते हैं कि निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे धूल-धूप और अधूरे पोषण के बावजूद उच्च-मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों के मुकाबले कम बीमार पड़ते हैं। दरअसल हमारे इस शरीर की संरचना ही ऐसी है कि इसे जैसी आदत डाल दी जाए, यह वैसा ही बन जाता है

Be balanced from the beginning
Be balanced from the beginning

यह एक जाना-समझा सच है कि किसी भी बच्चे का व्यवहार और स्वभाव भविष्य में कैसा होगा, यह उसके तीन-चार साल की आयु तक मिलने वाले संस्कार और आहार ही तय कर देते हैं। यदि उसे पर्याप्त मात्रा में मां का दूध मिला है तो उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता स्वाभाविक रूप से मज़बूत होगी। जंक फूड की बजाय अगर बच्चे की खान-पान संबंधी आदतों को शुरू से ही पौष्टिक आहार, फल-सब्जि़यों से समृद्ध रखा गया है तो कोई कारण नहीं है कि वह एक छुई-मुई बच्चा साबित हो। खुले मैदान में, धूल-धूप, मिट्टी और बारिश में खेला बचपन ही मज़बूत आधारशिला पर स्थापित होता है।

साथ ही अगर नैतिक मूल्यों से भरे-पूरे संस्कारों में बीता बचपन हो तो बढ़ती प्रतिस्पर्धा चाहे पढ़ाई की हो या किसी भी अन्य क्षेत्र में, बच्चा उसका सहजता से सामना कर सकता है। बच्चे को शुरू से यह पता होना चाहिए कि न तो चुनौतियां घबराने के लिए होती हैं, न ही कामयाबी इतराने के लिए। जीवन में सफलता और विफलता दोनों ही साथ-साथ होते हैं और सभी को इनका सामना करना पड़ता है। वर्तमान में जब हम देखते हैं कि परीक्षा-परिणाम में पिछड़ जाने पर ही छोटे-छोटे बच्चे तक आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं या गहरे अवसाद में डूब जाते हैं, तब ऐसी परवरिश की ज़रूरत और भी ज़्यादा गहरे ढंग से महसूस होने लगती है, जिसमें भावनात्मक संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया गया हो।

जिन परिवारों में माता-पिता दोनों ही कामकाजी हैं, उन परिवारों के बच्चों को या तो मेड की देख-रेख में रहना होता है या फिर क्रेच में। अक्सर ये देखने में आता है कि ये बच्चे या तो बहुत गुमसुम से रहते हैं या काफी ज़्यादा गुस्सैल, चिड़चिड़े और बदतमीज़ हो जाते हैं। इन पर ध्यान देने की ज़रूरत है। यदि बच्चा गुमसुम रहता हो तो उसका कारण जानना ज़रूरी है। उसकी समस्या क्या है, घर या स्कूल में कोई उसके साथ बुरा या अनुचित व्यवहार तो नहीं कर रहा है, वह किसी प्रकार के शोषण का शिकार तो नहीं हो रहा है, उसे पढ़ाई में कहीं कोई दिक्कत तो नहीं है, मेड उसका ध्यान ठीक से तो रखती है,

कहीं उसे डराया-धमकाया तो नहीं जाता या फिर उसकी ज़रूरी आवश्यकताओं की पूर्ति ठीक से तो हो रही है, इस प्रकार के कई पक्ष इस समस्या के मूल में हो सकते हैं। इसके उलट अगर बच्चा जि़द्दी होता जा रहा है या उसके स्वभाव में चिडचिड़ापन बढ़ रहा है तो उसे इस बात का एहसास दिलाना ज़रूरी है कि जि़द करके ही वह अपनी हर जायज़-नाजायज़ मांग पूरी नहीं करवा सकता। उसके स्वभाव के चिड़चिड़ेपन को समझने और सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक की सहायता ली जा सकती है। यदि वह बदतमीज़ होता जा रहा है और अपने से बड़ों तक का आदर नहीं करता तो उसे उपदेश देकर नहीं, बल्कि खुद उदाहरण बनकर ये सीख देनी होगी। वह न केवल अपने से बड़ों का आदर करे, बल्कि अपनी मेड तक से उसका व्यवहार संतुलित हो, यह आप ही उसे सिखा सकते हैं। घर बच्चों की पहली पाठशाला होते हैं। यहां से मिले अच्छे-बुरे संस्कारों और आदतों के आधार पर ही उनके भविष्य की नींव पड़ती है।

teach social equality
teach social equality

1. बच्चे की अनुचित जि़द को कभी बढ़ावा न दें।
2. बच्चे को अगर आप ज़्यादा समय नहीं भी दे पा रहे हैं तो जितना भी समय उसके साथ गुज़ारें, फोकस उसी पर रखें।
3. बच्चे को महंगे गैज़ेट्स की आदत न डालें, बल्कि जितना हो सके, उन्हें इनसे दूर रखने की कोशिश करें।
4. बच्चे के खान-पान का ख्याल ज़रूर रखें, लेकिन उसे इतना भी नाज़ुक न बनाएं कि ज़रा सी तब्दीली ही उसे बीमार कर दे।
5. कुछ चुनौतियों का सामना बच्चे को स्वयं करने दें। संभलना गिरने के बाद ही आता है।
6. बच्चे में ऐसे गुण आरंभ से ही विकसित करें कि वह सफलता पर इतराए नहीं और असफलता से घबराए नहीं।
7. बच्चे का पहला आदर्श उसके माता-पिता ही होते हैं, इसलिए आप जो भी गुण उसमें देखना चाहते हैं, वह उपदेश देकर नहीं, बल्कि स्वयं उदाहरण
बनकर दें।

Advertisement
Tags :
Advertisement