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घमंड में चूर अर्जुन ने पवनपुत्र हनुमान को दे दी थी ये बड़ी चुनौती, जानें यह रोचक प्रसंग: Arjuna and Hanuman

06:00 PM May 04, 2024 IST | Ankita Sharma
घमंड में चूर अर्जुन ने पवनपुत्र हनुमान को दे दी थी ये बड़ी चुनौती  जानें यह रोचक प्रसंग  arjuna and hanuman
Arjuna and Hanuman
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Arjuna and Hanuman: पौराणिक मान्यता है कि पवन पुत्र हनुमान सात चिरंजीवियों में से हैं। वे अजर अमर हैं। वे त्रेतायुग में लंका युद्ध के समय अपने प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए उपस्थित थे। भगवान श्रीराम की जलसमाधी के बाद श्री हनुमान प्रभु के निर्देश के अनुसार पृथ्वी पर समाज की सेवा के लिए रहे। द्वापर युग में जब श्री कृष्ण ने अवतार लिया तो श्री हनुमान फिर से उनकी सेवा में चले गए। माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में हनुमान जी अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहे थे। जिसके कारण अर्जुन के रथ का बल और शक्ति कई गुणा बढ़ गई थी। हालांकि श्री हनुमान और धनुर्धर अर्जुन का एक प्रसंग कई पुस्तकों में मिलता है। ये प्रसंग जुड़ा है पवन पुत्र हनुमान, अर्जुन और श्री कृष्ण से। यह प्रसंग भले ही सदियों पुराना है, ​लेकिन इसकी सार्थकता आज भी कायम है।

Arjuna and Hanuman
Before the war of Mahabharata, Arjun once met Ram devotee Hanuman in Rameshwaram.

माना जाता है कि महाभारत के युद्ध से पहले एक बार रामेश्वरम में अर्जुन की मुलाकात राम भक्त हनुमान से हुई। इस दौरान वे दोनों लंका युद्ध पर चर्चा करने लगे। कहा जाता है कि उस समय अर्जुन अपने आप को संसार का सबसे बड़ा धनुर्धर मानता था। इस दौरान अर्जुन ने प्रभु हनुमान से कहा कि अगर श्री राम सबसे बड़े धनुर्धर थे तो उन्होंने रामसेतु बाणों से क्यों नहीं बना लिया। ये काफी आसान भी होता। ​इस पर केसरी नंदन ने कहा कि बाणों से बना पुल पूरी वानर सेना का भार सहन नहीं कर पाता। इस पर घमंड से चूर अर्जुन ने तुरंत अपना धनुष निकाला और बाणों से पुल बना दिया। अर्जुन ने कहा कि यह एक मजबूत पुल है, जो टूट नहीं सकता है।

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अर्जुन ने प्रभु हनुमान को चुनौती दी। प्रभु हनुमान ने अर्जुन से कहा कि अगर यह सेतु मेरा वजन सहन नहीं कर पाया तो तुम्हें अग्नि में प्रवेश करना होगा। घमंड में चूर अर्जुन ने यह चुनौती सहर्ष स्वीकार ली। इसके बाद प्रभु हनुमान ने विशाल रूप धारण करके पहला एक कदम बाणों से बने पुल पर रखा। जैसे ही उन्होंने पहला कदम रखा, पुल भरभरा कर टूट गया। पुल के ढहने के साथ ही अर्जुन का घमंड भी चूर-चूर हो गया। उसका सिर शर्म से झुक गया और वह अपने लिए अग्नि समाधि बनाने की तैयारी करने लगा। इस पर प्रभु हनुमान ने उन्हें रोका और कहा कि तुम्हें ​अग्नि समाधि लेने की जरूरत नहीं है। बस तुम्हारा अहंकार टूटना जरूरी था, क्योंकि यह इंसान को अंधा बना देता है।

माना जाता है कि इस पूरे प्रसंग के बाद भगवान श्री कृष्ण वहां प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि यह सब मेरी इच्छा से ही हुआ है। इसके बाद उन्होंने अंजनी पुत्र से कहा कि महाभारत युद्ध के धर्म युद्ध में आप अर्जुन की रथ पर लगी ध्वजा पर विराजमान रहें। इसलिए युद्ध हुआ तो प्रभु हनुमान अर्जुन के रथ के शिखर पर लगे ध्वज पर विराजमान रहे।

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प्रभू हनुमान और अर्जुन से जुड़ा यह प्रसंग हमें सीख देता है कि इंसान को कभी भी अपनी योग्यता पर घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड एक अवगुण है, जिसके कारण शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।

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