सावधान! एच. पाइलोरी बैक्टीरिया ने किया हमला तो हो सकता है पेट के कैंसर: H. Pylori Infection
H. Pylori Infection: हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (एच. पाइलोरी) एक ऐसा बैक्टीरिया है जो पेट और छोटी आंत को प्रभावित कर सकता है। हालांकि जब ये बैक्टीरिया अटैक करता है तो कई लोगों को इसके लक्षण महसूस नहीं होते। जबकि कुछ लोगों को इससे गैस्ट्रिटिस और पेप्टिक अल्सर जैसी पाचन समस्याएं हो सकती हैं। पेट से संबंधित इन स्थितियों के निदान के लिए एच. पाइलोरी किया जाता है। चलिए जानते हैं, ये टेस्ट कैसे होता है और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी बीमारी होने पर क्या-क्या हो सकता है।
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क्या है एच. पाइलोरी?
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एच. पाइलोरी एक बैक्टीरिया है जो आमतौर पर पेट की परत और छोटी आंत के ऊपरी हिस्से में पाया जाता है। एच. पाइलोरी होने पर पेप्टिक अल्सर और गैस्ट्राइटिस हो सकता है, जिससे पेट में दर्द, सूजन और अन्य पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इतना ही नहीं, ट्रीटमेंट के बिना, एच. पाइलोरी इंफेक्शन लंबे समय तक बरकरार रह सकता है और ये पेट के कैंसर के होने का कारण भी बन सकता है।
क्या कहना है डॉक्टर का
पी.जी.आई चंडीगढ़ के कम्युनिटी मेडिसिन एंड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के हेड ऑफ डिपार्टमेंट, डॉ. अरूण अग्रवाल का कहना है कि जब आपको क्रोध आता है तो आपकी मेंटल हेल्थ पर इफेक्ट होता है। ठीक ऐसे ही जब आपके पेट को तकलीफ होती है और आप उसकी केयर नहीं करते, उसके लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं, तो आपके पेट को गुस्सा आता है और वो परेशानियां खड़ी करने लगता है। नतीजन, आपको पेट में दर्द, गैस्ट्रिक, पेट में इर्रिटेशन जैसी कई समस्याएं होने लगती है। कई बार ये समस्याएं अल्सर के रूप में पनपने लगती हैं जो आगे बढ़कर कैंसर का रूप ले लेती हैं। ऐसे में लोग ओवर द काउंटर दवाएं लेना शुरू कर देते हैं जिससे कई बार ये दवाएं तकलीफ कम करने के बजाए तकलीफ को बढ़ा देती हैं। साथ ही कुछ समस्याएं लंबे समय तक चलती रहती हैं। ऐसी समस्याओं के निदान के लिए एंडोस्कोपी और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (एच. पाइलोरी) जैसे टेस्ट करवाएं जाते हैं। इन टेस्ट के जरिए देखा जाता है कि कहीं पेट का कैंसर, अल्सर या कोई ओर गंभीर समस्या तो नहीं।
एच.पाइलोरी इंफेक्शन के लक्षण
![H. Pylori Infection Symptom](https://grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2024/04/SIP-2024-04-27T134421.287-1024x576.webp)
- एच. पाइलोरी इंफेक्शन होने पर कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। जैसे -
- पेट के ऊपरी हिस्से में अक्सर दर्द और सूजन महसूस हो सकती है।
- खाना खाते समय पेट जल्दी भरा हुआ महसूस होने लगता है।
- मतली, उल्टी, डकार आना, गैस पास होना भी इसी के लक्षण हैं।
- भूख ना लगना या बिना वजह वजन कम हो रहा है या इस तरह के तमाम लक्षण महसूस हो सकते हैं।
यदि आपको उपरलिखित लक्षण लंबे समय से परेशान कर रहे हैं तो संभावना है कि आपको एच. पाइलोरी इंफेक्शन हो गया है और डॉक्टर की सलाह पर इसके निदान के लिए एच. पाइलोरी टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है।
क्यों होता है एच. पाइलोरी इंफेक्शन
एच. पाइलोरी बैक्टीरिया आमतौर पर लार, उल्टी या मल के सीधे संपर्क के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। एच. पाइलोरी खराब फूड या पानी से भी फैल सकता है। वहीं एच. पाइलोरी इंफेक्शन होने के क्या कारण हैं, इस संबंध में डॉ. अरूण अग्रवाल का कहना है कि पेट संबंधी बीमारियां आमतौर पर खानपान पर ध्यान ना देने, जंकफूड खाने, खराब लाइफस्टाइल होने और एक्सरसाइज ना करने की वजह से होती हैं। हालांकि एच. पाइलोरी बैक्टीरिया कुछ लोगों में गैस्ट्रिटिस या पेप्टिक अल्सर का कारण कैसे बनता है ये इस पर अभी कई शोध आने बाकी हैं।
एच. पाइलोरी इंफेक्शन से बचाव
![H. Pylori Infection Precaution](https://grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2024/04/SIP-2024-04-27T134938.759-1024x576.webp)
डॉ. अरूण अग्रवाल का कहना है कि आप हाइड्रेट रहते हुए, लाइफस्टाइल और खानपान की आदतों में सुधार करके पेट संबंधी कई बीमारियों को होने से रोक सकते हैं। साथ ही जरूरत पड़ने पर ओवर द काउंटर दवाएं लेने से बेहतर आप डॉक्टर की सलाह पर ही दवाओं का सेवन करके एच. पाइलोरी इंफेक्शन को कंट्रोल कर सकते हैं।
क्यों जरूरी है एच. पाइलोरी की जांच
- एच. पाइलोरी टेस्ट करवाने की सलाह इसीलिए दी जाती है ताकि समय से पहले होने वाली गंभीर समस्या से बचा जा सकें। चलिए जानें, किन कारणों से जरूरी है एच. पाइलोरी की जांच।
- पाचन संबंधी लक्षणों को डायग्नोज करने के लिए - एच. पाइलोरी टेस्ट से ये निर्धारित करने में मदद करते हैं एच. पाइलोरी इंफेक्शन पाचन संबंधी समस्याओं का कारण तो बन रहा है।
- एच. पाइलोरी इंफेक्शन की निगरानी के लिए - एच. पाइलोरी इंफेक्शन के ट्रीटमेंट बाद, ये सुनिश्चित करने के लिए टेस्ट किया जाता है कि एच. पाइलोरी इंफेक्शन या एच. पाइलोरी बैक्टीरिया पूरी तरह से खत्म हुआ है या नहीं।
- कैंसर का पता लगाने के लिए - एच. पाइलोरी इंफेक्शन या गैस्ट्रिक की समस्या अधिक बढ़ जाती है तो ये पता लगाने के लिए ये टेस्ट किया जाता है कि कहीं अल्सर या पेट के कैंसर के सेल्स तो डेवलेप नहीं हुए हैं।
कितने तरह का होता है एच. पाइलोरी टेस्ट
![H. Pylori Test](https://grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2024/04/SIP-2024-04-27T135535.510-1024x576.webp)
एच. पाइलोरी टेस्ट को कई तरह से किया जा सकता है। जैसे -
- ब्लड टेस्ट - एच. पाइलोरी इंफेक्शन की जांच के लिए कई तरह के ब्लड टेस्ट करवाना आम हैं।
- ब्रेथ टेस्ट (यूरिया ब्रेथ टेस्ट) - इस टेस्ट में एक कंटेनर में सांस लिया जाता है और फिर यूरिया युक्त पदार्थ को निगला जाता है। यदि आपको एच. पाइलोरी इंफेक्शन है, तो यह यूनिक कार्बन ऐटम के साथ कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करेगा, जो आपके ब्रेथ सैंपल में पता लगाया जा सकता है।
- स्टूल टेस्ट- इस टेस्ट से मल में एच. पाइलोरी एंटीजन या जेनेटिक मेटिरियल की जांच की जाती है। इस टेस्ट से पहले ड़क्टर द्वारा कुछ निर्देश दिए जाते हैं जिनका पालन करना जरूरी है, उसके बाद ही मल का सैंपल लिया जाता है।
- एंडोस्कोपी - अगर अन्य टेस्ट में कुछ भी नहीं निकलता तो एंडोस्कोपी की जाती हैं। इस टेस्ट में मुंह के अंदर एक ट्यूब डाली जाती है जिसमें आगे की ओर कैमरा लगा होता है। इस ट्यूब के जरिए पेट से टिश्यू सैंपल निकाले जाते हैं।
एच. पाइलोरी टेस्ट की तैयारियां
- एच. पाइलोरी टेस्ट करने से पहले कुछ तैयारियां की जाती है। जैसे -
टेस्ट से पहले कुछ दवाएं बंद करने की जरूरत होती है।
कुछ दिन तक किसी भी तरह का नशा करने पर रोक लगाई जाती है।
एंडोस्कोपी के लिए, एक रात पहले ही जल्दी खाने की सलाह दी जाती है। - एंडोस्कोपी के लिए, सुबह खाली पेट एक पाउडर दिया जाता है, जो पॉलीथीन ग्लाइकोल 4000 (पीईजी 4000) (118 ग्राम), सोडियम क्लोराइड (2.93 ग्राम), पोटेशियम क्लोराइड (1.484 ग्राम), सोडियम बाइकार्बोनेट (3.37 ग्राम), एनहाइड्रस सोडियम सल्फेट (11.36 ग्राम) का कंपोजिशन होता है। इस पाउडर को 2-3 घंटे में कम से कम दो लीटर पानी के साथ पीना होता है। पाउडर को लिक्विड में बनाकर जब आप पीते हैं तो दस्त लगते हैं। इन दस्त के होने पर आपको आठ से दस बार मल त्यागने जाना पड़ सकता है। लेकिन आपको फिल भी कुछ भी नहीं खाना होता है। जब दस्त आने बंद हो जाते हैं तो उसके 1-2 घंटे बाद डॉक्टर एंडोस्कोपी के लिए आने की सलाह देते हैं। लंबे उपवास के बाद जाकर एंडोस्कोपी की जाती है। दरअसल, जब पेट बिल्कुल खाली हो जाता है उसके बाद ही एंडोस्कोपी के सही नतीजे आते हैं। इस पूरे प्रोसेस को डॉक्टर एंडोस्कोपी को निर्धारित करने से पहले समझाते हैं। हमेशा एच. पाइलोरी टेस्ट करने से पहले डॉक्टर के निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करना चाहिए।
एच. पाइलोरी टेस्ट का खतरा
![Danger of H. Pylori Test](https://grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2024/04/SIP-2024-04-27T135851.533-1024x576.webp)
ब्रेथ टेस्ट और स्टूल टेस्ट आमतौर पर सुरक्षित होते हैं। लेकिन एंडोस्कोपी को करने के दौरान मरीज को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है या आंतों के फटने या बायोप्सी से रक्तस्राव जैसी जटिलताएं आ सकती हैं लेकिन ये समस्याएं दुर्लभ होती हैं और आमतौर पर एंडोस्कोपी से पहले लोकल एनेस्थीसिया यानी गले में स्प्रे किया जाता है, जिसका कुछ मिनटों से लेकर आधे घंटे तक असर रहता है।
एच. पाइलोरी टेस्ट के रिजल्ट
- नेगेटिव रिजल्ट - जब एच. पाइलोरी टेस्ट की रिजल्ट नेगेटिव आता है तो इसका मतलब है कि कोई एच. पाइलोरी इंफेक्शन नहीं है। तो ऐसे में आपके लक्षणों को जानने के लिए दूसरे टेस्ट करने की आवश्यकता हो सकती है।
- पॉजिटीव रिजल्ट - जब एच. पाइलोरी टेस्ट की पॉजिटीवनेगेटिव आता है तो इसका मतलब है कि एच. पाइलोरी इंफेक्शन है। रिजल्ट पॉजिटीव आने पर एच. पाइलोरी के लक्षणों को कंट्रोल करने और ट्रीटमेंट को बढ़ावा देने के लिए एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाएं दी जाती हैं। इसका ट्रीटमेंट लक्षणों के आधार पर लंबा चल सकता है।
निष्कर्ष
एच. पाइलोरी बैक्टीरिया, गैस्ट्राइटिस, अल्सर और कैंसर जैसी समस्याओं के निदान और ट्रीटमेंट के लिए एच. पाइलोरी का टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण है। एच. पाइलोरी टेस्ट का कौन सा प्रकार किया जाएगा और कब, कैसे होगा ये सभी डॉक्टर निर्धारित करते हैं। आपको एच. पाइलोरी टेस्ट से होने वाले जोखिम और एच. पाइलोरी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के बारे में डॉक्टर से खुलकर बात करनी चाहिए। यदि आप लंबे समय से पाचन संबंधी लक्षणों का अनुभव करते हैं या बार-बार आपको गैस्ट्रिक की समस्या आती है या फिर आपको बार-बार पेट में दर्द या खाने में समस्याएं आती हैं तो आपको बिना देर किए सही जांच और ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ध्यान रहे, एच. पाइलोरी इंफ्केशन का इलाज लंबे समय तक चलता है, ऐसे में आपको दवाओं के साथ परहेज करते हुए डॉक्टर के दिशा-निर्देशों का पालन भी करना होगा।