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बर्फ का सेंक : एस. बलवंत

08:00 PM Aug 25, 2022 IST | sahnawaj
बर्फ का सेंक   एस  बलवंत
Mahanagar
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आज से करीब तीस-बत्तीस वर्ष पूर्व भी क्वीज होटल में ताला लगा हुआ था। पुराना बोर्ड अभी भी वहां लटक रहा था। आस-पास की जगह लोगों ने सम्हाल ली थी और वहां कई कारोबार चल पड़े थे।

तब क्वींज होटल के सामने एक गली होती थी। घन्नूशाह क्वींज होटल के साथ-साथ इस गली का भी मालिक था। सभी घर घन्नूशाह ने किराये पर चढ़ाए हुए थे।

घन्नूशाह की एक बेटी थी जानकी। वह उन दिनों कॉलेज जाती थी। घन्नूशाह का घर इस होटल से कुछ ही दूरी पर था। घर से किसी को होटल आने की आज्ञा नहीं थी। वैसे जिस चीज की भी जरूरत हो होटल के कर्मचारी घर पहुंचा देते थे।

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घन्नूशाह की बीवी बस उन्हीं कर्मचारियों से ही जानकारी लेती थी। घर वालों से घन्नूशाह हर बात को छुपाता था। वैसे अपनी पत्नी और बेटी को बहुत प्यार करता था। उनके लिए वह कुछ भी कर सकता था।

घन्नूशाह तुर्रे वाली पगड़ी बांधता। उसकी पगड़ी सफेद रंग पर खूब कल्फ लगी होती। नीचे सलवार और कमीज पहनता। बड़ा सा गोल नाक और ऊपर वाले होंठ के मध्य बड़ी-बड़ी मूंछ। दाएं कंधे से बाईं और कमर तक लम्बी पिस्तौल की गोलियों वाली बैल्ट और नीचे पिस्तौल टंगा होता।

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बड़ी अद्भुत शक्ल थी उसकी।

वैसे घन्नूशाह बड़ी पहुँच वाला आदमी था। थाने और सरकार में उसकी बड़ी पहुंच थी। हर दीवाली पर कारें भर-भर मिठाइयां और अन्य तोहफे बांटता। पुलिस के अफसर, वकील, जज-पता नहीं किस-किस के घर जाता। अपने इलाके में बहुत पहुंच वाला आदमी था वह।

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और इस पहुंच के बदले में वह यह होटल चलाता। साथ ही औरतों व शराब का धंधा। पर कोरा साफ व खुदगर्ज इनसान था।

वैसे वह प्रभु का भगत था। हर रोज दो बार मन्दिर जाता। साधुओं को मुफ्त रोटी खिलाता। जितने चाहे आ जाएं। कोई भूखा भी आ जाता तो भी उसे एक बार मुफ्त खाना देता।

रोज शाम के वक्त दूध जैसे सफेद कपड़े पहन अपनी गद्दी पर सज जाता। पिस्तौल उतारकर मेज पर रख देता। हर आए गए ग्राहक की जरूरत का वह स्वयं ध्यान रखता।

करीब तीस-बत्तीस वर्ष पहले इसी रफ्तार से उसका काम चल रहा था।

कोई भी लड़की उसके धंधे में काम करना चाहती पहले उसको वह स्वयं टेस्ट करता।

उसके होटल के सामने बड़ी गली के सारे के सारे घर घन्नूशाह के थे, और सब किराये पर चढ़ाए हुए था।

पर किरायेदार तो वही बन सकता था जो घन्नूशाह की बात मानें। शराब कभी अपने होटल में नहीं रखता था। बस इन किरायेदारों के घरों में थोड़ी-थोड़ी पड़ी रहती। उस गली में हर किरायेदार उसके लिए काम करता। किसी की औरत और किसी की जगह, सब काम आते।

ग्राहक आने पर “सामान” मंगवा कर चुकता किया जाता। रहमान टांगे वाला जैसे कई ग्राहकों को पकड़ लाते। जिनको शराब व शबाब की जरूरत होती।

ऊपर कमरे थे। वह उन्हीं में ठहर जाते और घन्नूशाह उनके लिये सारे प्रबन्ध करता।

उन्हीं दिनों उनके पड़ोस में शकुन्तला व सिद्धार्थ ने एक घर किराये पर लिया था। गजब की सुन्दर थी शकुन्तला। वैसे भी वह चुलबुली व मस्तमौला थी। पर सिद्धार्थ कमजोर सा था।

कहीं भी किराये पर घर नहीं मिल रहा था। जो मिलते उनके किराये व पगड़ियां बहुत होती। उन्होंने सोचा अगर कुछ बोतलें शराब की रखने से घर मिलता है और किराया भी कम हो तो चलो यही सही।।

घन्नू के आदमी उनके घर कुछ बोतलें रख जाते, जरूरत पड़ने पर ले जाते।

जब सिद्धार्थ काम पर चला जाता तो शकुन्तला रसोई का काम खत्म करके चौबारे पर चली जाती।

सामने क्वीज होटल का गेट था। वहां से हर आते-जाते को देख सकती थी। कई बार वहां बहुत सारे साघु भोजन करने आते। शाम को तो खूब रौनक रहती। लोग ठीक-ठाक अंदर जाते और लड़खड़ाते हुए वापिस निकलते।

कुछ ही देर में वह सारी गली से वाकिफ हो गई थी। पड़ोसन सीता का भी उनके घर आना जाना हो गया। जब वह चौबारे में चली जाती तो सीता भी वहीं आ जाती। दोनों खूब गप्पें मारतीं।

सीता ससुराल वालों से झगड़ कर मां के घर आ बैठी थी। वे दोनों चटखारे मार-मार बातें करती। सीता बताती थी कि उसकी अपने पति के साथ इसीलिए न बनी क्योंकि वह दूसरी औरतों के पास जाता था। सीता सारी सारी रात उसके इंतजार में बैठी रहती थीं। वह कई बार, रात को घर भी न आता। यदि आता भी था तो दूसरी औरतों से निचुड़ा हुआ। जब वह हाथ लगाती तो खाने को दौड़ता। अगर ऐसा न भी करता तब भी कुछ करने में असमर्थ होता। सीता सपनों में ही उसके साथ पींग डाले रहती। पर जब वह किसी भी काम का न होता तो वह बहुत दुःखी होती।

बस एक दिन सामान उठाया और मां के घर आ गई। न ही उसके पति ने दोबारा कभी उसका पता किया और न ही वह गई।

बस माँ बेटी ने यहां रहना शुरू कर दिया।

सीता ने बताया कि धीरे-धीरे वह इधर उधर जाने लग पड़ी थी। बस मौज बहार हो गई। क्या रखा है शादी में? घन्नूशाह के ग्राहकों को भी भुगता देती। खाना-पीना और ऐश करना और जेब भी पैसों से भरी रहती वह बताती। शकुन्तला यह सुनकर चटखारे तो लेती पर बाद में उदास हो जाती। वह खुद से उसकी मिलान करने लगती। वह अक्सर सोचती आखिर क्या फर्क था उसमें और सीता में?

सीता की बातें सुन-सुन कर शकुन्तला का मन ललचा उठता। उसका भी मन सीता की तरह करने को करता पर वह डर जाती।

सिद्धार्थ तो वैसे भी कमजोर सा था। दूसरी औरतों के पास तो क्या जाता कई बार शकुन्तला को भी आधा अधूरा छोड़ थककर दूसरी तरफ मुंह करके पड़ जाता। तब शकुन्तला को बहुत गुस्सा आता।

शकुन्तला थी तो चुलबुली और हर वक्त अधूरी इच्छा ले उसको पूरा करने की ख्वाहिश ले, बैठी सोचती रहती।

पर एक दिन सीता ने उसको मचला दिया। वह घन्नूशाह के पास जाने के लिए तैयार हो गई। सीता ने इंतजाम करवाया और वह शाह के पास थी।

जब वह घन्नूशाह के पास गई उस समय वह ऊपर से तो डर रही थी पर अंदर से दिल में गुदगुदी हो रही थी।

जब वापिस लौटी तो वह एकदम शांत थी। कमाल का आदमी है घन्नूशाह। यह सोचती हुई घर की तरफ लौट रही थी। पर जब वह अपनी गली में प्रवेश कर रही थी तो उसके अंदर एक डर उभरने लगा। उसको लगा जैसे सब लोग उसके माथे पर लिखा पढ़ रहे हैं कि वह घन्नूशाह के पास से होकर आयी है।

वह डरती-डरती चल रही थी। घबड़ाहट में उसके पैर उखड़ रहे थे। वह जल्दी-जल्दी चली तो उसकी सांस फूलने लगी। पर आंखें नीचे किए वह अपने घर पहुंच गई।

थोड़ी देर बिस्तर पर लेटी रही। सपनों में जाकर लौट आती। उसको नशा सा चढ़ा हुआ था। मदहोश थी वह। यह शायद पहला अवसर था कि उसके मन व आत्मा के साथ-साथ शरीर भी शांत हुआ था।

वह इन्हीं लम्हों में गुम थी कि सिद्धार्थ आ गया। उसको देख वह फिर डर गई। जब शकुन्तला के चेहरे पर लिखे खौफ में सिद्धार्थ ने भी पढ़ लिया तो उसका खून खौलने लगा।

पता नहीं कहां से उसमें इतना जोर आ गया। उसने शकुन्तला को बालों से पकड़ कर जोर से घुमाया और धक्का दिया। वह चक्कर खा कर दीवार में गढ़े कपड़े सुखाने वाले कीले से जा लगी। वह कील उसके माथे के अन्दर चुभ गई और वह वह वहीं टंगी ठंडी हो गई।

सारे इलाके में शोर मच गया। लोग तरह तरह की बातें करने लगे। थाने में भी खबर पहुंच गई।

सिद्धार्थ को जब पुलिस पकड़ने आई तो वह पागल हो चुका था।

घन्नूशाह पर इस बात का गहरा असर पड़ा। उसने कभी सोचा भी न था कि ऐसा भी हो सकता है। उसने धीरे-धीरे अपना काम कम कर दिया।

बाद में उसने केवल शराब का धंधा ही चलाये रखा और कभी-कभी पुराने ग्राहकों के लिए औरत का प्रबन्ध कर देता पर अब उसे अच्छा न लगता।

वह चुप सा हो गया। और प्रभु के नाम में ज्यादा ध्यान देने लगा।

एक दिन अचानक एक हादसा हो गया। पता लगा कि जानकी घर वापिस नहीं पहुंची। घन्नू को आग लग गई। उसने सारे शहर में तूफान मचा दिया। पुलिस, वकील जज सबके दरवाजे खटखटाये। अपने आदमी भेजे। पर जानकी का कुछ पता न चला। धन्नू के सामने जो भी आता उसी से मारपीट शुरू कर देता। यहां तक कि एक थानेदार को भी उसने खूब पीटा। थानेदार उसकी पहुंच के डर से कुछ न बोला।

तलाश करते हुए खबर मिली कि जानकी अस्पताल में हैं। घन्नू अस्पताल की ओर दौड़ा। वहां पता चला कि वह गर्भवती थी और घन्नू के डर के मारे उसने आत्महत्या कर ली। जानकी की लाश घन्नू के सामने पड़ी थी। उसके आस पास बर्फ रखी हुई थी। वह आंखें निकाले खामोश और हैरान उसके मासूम चेहरे की और देखता न जाने क्या सोचता रहा।

और अचानक उसको पता नहीं क्या हुआ जैसे उसे बर्फ का सेंक लगा हो। उसने अपने कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए और आखिर में सिर्फ लंगोट ही बचा उसके शरीर पर।

उसने जोर से जयकारा बोला, “जय बजरंग बली।” और बाहर सड़क की ओर भागा।

खंभा पकड़ कर सड़क पर खड़ा हो गया। कभी पूरे सड़क पर नाचता रहता और आते जाते औरतों को देख जोर से जयकारा लगता, “सिर पर कपड़ा करो बहन जी!”

उसके बाद न ही वह कभी वह हंसा और न ही किसी औरत को उसने नंगे सिर उस सड़क से गुजरने दिया।

उसकी लाल आंखें इतनी भयंकर लगतीं कि हर औरत डरती हुई सिर पर कपड़ा कर निकलती।

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