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बस अब और नहीं-गृहलक्ष्मी की कहानियां

07:00 PM Jan 31, 2024 IST | Sapna Jha
बस अब और नहीं गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bas Ab Aur Nahi
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Hindi Story: काव्या दुल्हन बन कर रवि की जिंदगी में आ है थी, रवि ने उसे सबके बारे में पहले से ही आगाह कर दिया था,मां पिता दोनो बहुत सीधे थे, बड़े भैया भाभी,बिलकुल राम सीता जैसे,भैया बहुत बड़ी पोस्ट पर ऑफिसर थे और भाभी मेघा यूं तो बहुत पढ़ी लिखी थीं पर भैया ने उनसे कभी नौकरी नहीं कराई थी इसलिए पक्की गृहस्थन थी,भोली भाली,शांत और कम मुखर।

काव्या ने नोटिस किया था,रवि और उसी सास ससुर जहां मेधा को बहुत मानते,उसके जेठ ऋषि उन्हें बहुत तड़ी से रखते।
जब काव्या की मुंह दिखाई हो रही थी,भाभी ने बड़े प्यार से सबके लिए मखाने मेवे की खीर बनाई थी, वो सबके लिए परोस कर ला रही थीं और बड़े भैया ने उन्हें टोक दिया,ये भी कोई इस वक्त बनाने की चीज है…कुछ ढंग का नहीं मंगवा सकती थीं,अगर अकल नहीं चलती जो जबरदस्ती उसका इस्तेमाल क्यों करती हो?
बड़ी भाभी,सकते में आ गई थीं और चुपचाप रसोई में ले गई खीर को। काव्या देखती ही रह गई अवाक
होकर,उसे समझ आ गया था,यहां इज्जत करानी पड़ेगी, कोइ आसानी से करेगा नहीं।
उसने अक्सर,भाभी को ऐसे प्रताड़ित होते देखा,कई बार उन्हें समझाने की कोशिश भी की पर वो शांति से उसे टाल देती।

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काव्या को लगता,गलती इनकी भी है,जब आप विरोध नहीं करेंगे तो दूसरे को एहसास ही कैसे होगा कि वो आपके साथ गलत कर रहा है।
धीरे धीरे,खुद काव्या, यदा कदा भाभी से वैसा ही व्यवहार करना सीख गई।
एक दिन,काव्या,रवि के साथ घूमने मुंबई की ट्रिप पर जाने लगी जबकि उन दिनों पितृ पक्ष चल रहा था,मेघा ने दबी जुबान उन्हें रोकना भी चाहा,ऐसे में घूमने मत जाओ,कहते हैं ऐसे में शॉपिंग भी नहीं करते,नई चीजे
खरीदना मना है..वो डरती हुई बोली।

एक दिन,काव्या,रवि के साथ घूमने मुंबई की ट्रिप पर जाने लगी जबकि उन दिनों पितृ पक्ष चल रहा था,मेघा ने दबी जुबान उन्हें रोकना भी चाहा,ऐसे में घूमने मत जाओ,कहते हैं ऐसे में शॉपिंग भी नहीं करते,नई चीजे खरीदना मना है..वो डरती हुई बोली।

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ऋषि ने सुना और खिल्ली उड़ाता बोला,यार रवि और काव्या!इस दकियानूसी औरत की बातें मत सुनना,न खुद एंजॉय करना जानती और न दूसरों को करता देख सकती।

रवि रुक जाना चाहता था पर भाई की बात सुनकर उसकी पत्नी के हौसलों में जो उड़ान आई थी,उन्हें वो रोक न सका।

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वो लोग मुंबई पहुंच गए,होटल के कमरे में जैसे ही पहुंचे,काव्या ने विशेष वहां पहनने के लिए बनाई मिडी पहनी,खुशी से पति के गले में बाहें डाली तो वो बोला…"तुम इतनी गर्म क्यों हो रही हो,बुखार है क्या तुम्हें?"

देखने पर पता चला,काव्या को एक सौ चार बुखार था,इतना हाई फीवर?डॉक्टर से कंसल्ट किया तो पता चला,मीजल्स हैं,पांच दिन  की लगातार मेहनत से रवि टूट गया लेकिन अब काव्या का बुखार ठीक था और उनके लौटने का दिन भी आ पहुंचा था।

मुस्कराते हुए, रवि बोला,"बड़ी भाभी की बात का मर्म समझ आया या अभी नहीं?"

काव्या ने नजरे नीचे झुका लीं।

समय बीतता गया।ऋषि अभी भी मेघा की इज्जत नही करते थे,भले ही उन दोनो के बच्चे शादी लायक हो चले थे।

आज मेधा के छोटे बेटे दिव्य की शादी का रिसेप्शन था,उसकी बहू मंजरी डॉक्टर थी।

मेघा ने खुश होकर,डार्क येलो,चौड़े हरे बोर्डर वाली सिल्क की साड़ी पहनी थी,सब ज्वैलरी भी मैचिंग,लंबी सी चोटी लहरा रही थी उसकी कमर पर, बड़ी लाल बिंदी और लिपस्टिक में वो कमाल दिख रही थी।

जैसे ही ऋषि की नजर उस पर पड़ी,वो बोला.."ये क्या बेहूदा रंग चुना है तुमने आज जैसे फंक्शन के लिए?कुछ और अच्छा नहीं मिला…जाओ,इसे बदल कर आओ।"

मेघा दंग रह गई ये सुनकर…प्रशंसा तो कभी नहीं करता था वो पर फंक्शन के दिन उसे इस तरह डेमोरलाइज करना,उसे विचलित कर गया।वो डबडबाई आंखों से अपने कमरे में लौट गई।

निस्तेज सी वो अपने बेड पर लेटी,छत को घूर रही थी कि काव्या,को ये सब देख सुन चुकी थी,उसके पास आई।

भाभी!क्या सोच रही हैं?दूसरी साड़ी कौन सी पहनूं?अगर ये सोच रही हैं तो बिलकुल न सोचें?

फिर क्या करूं?वो बेबसी से काव्या को देखते बोली।

"आज आपकी बहू घर आ चुकी है यानि अब आप बहू नहीं है,जमाना बदल चुका है भाभी,बस बहुत हुआ,आपने भैया को बहुत सहन कर लिया,आप को, अब, जो अच्छा लगे,वो करिए,पहनिए,किसी और को खुद पर थोपने मत दीजिए,यहां तक की भैया को भी नहीं…कल की आई लड़की,नहीं तो, आपकी क्या इज्जत करेगी?"

सही कह रही हो तुम,मेघा के चहरेपर सुकून के भाव आए,तुम्हारी बात से मुझे बड़ी हिम्मत मिली, मै किसी को नहीं टोकती फिर उन्हें क्या अधिकार है मेरी हर बात में कमी निकालने की,क्या अच्छे संस्कारों का सारा ठेका औरतों ने ही उठाया है,थोड़ी बहुत जिम्मेदारी इसकी पुरुषों को भी लेनी चाहिए।

मेघा ने अपने बाल सही किए, साड़ी दुरुस्त की,आईने में खुद को निहारा ,मुस्कराई और काव्या के साथ चल दी बाहर रिसेप्शन के लिए।

उसकी चाल में गजब का आत्म विश्वास था,वो बहुत सुंदर लग रही थी जैसे की वो लगती ही थी पर आज उसकी आंखों का विश्वास,ऋषि की बदतमीजी को सहमा देना चाहता था।

काव्या और रवि खुश थे बड़ी भाभी में आए इस बदलाव को देखकर,वो आज उस सम्मान और इज्जत को लेने के लिए बढ़ चुकी थीं जिसकी वो हकदार बहुत पहले से थीं।

ऋषि ने देखा था मेघा को,वो कुछ कहने को भी हुआ था पर मेघा ने उसे अवॉयड किया और मुस्कराते हुए अपनी बहू बेटे की तरफ बढ़ गई।

उसकी बहू मंजरी ने उसके पैर छुए और माइक हाथ में लेकर कहने लगी,"मेरी सासु मां मेरी आदर्श हैं,इस उम्र में भी वो इतनी खूबसूरत हैं,उनका ड्रेसिंग सेंस इतना लाजबाव है कि क्या कहने! मै बहुत लकी हूं कि मुझे उनकी जैसे समझदार और सुंदर सास मिली हैं।

तालियों की गड़गड़ाहट में,मेघा मुस्करा रही थी ,उसे समझ आ गया था,सबकी पसंद,इतनी हाई फाई हो कि उसकी चॉइस का सम्मान कर सके ये जरूरी तो नहीं लेकिन ये बहुत जरूरी है कि वो अपनी खुद की पसंद का सम्मान करे।

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