जानिए, बसंत पंचमी का शुभ महूर्त और पूजन विधि: Basant Panchami 2023
Basant Panchami 2023: जानिए, बसंत पंचमी का शुभ महूर्त और पूजन विधिरंगों, उमंगों और तरंगों ये भरपूर है बसंत पंचमी का त्योहार। माघ महीने में शुक्ल पक्ष की पंचम तिथि को मनाए जाने वाला इस त्योहार में देवी सरस्वती की पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से की जाती है। इस दिन मां सरस्वती के भक्त पीले ओर सफेद रंग के वस्त्र धारण करते हैं। इस साल बसंत पंचमी का त्योहार 5 फरवरी 2022 को मनाया जाएगा। आइए जानते है इस त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें।
Basant Panchami 2023:बसंत पंचमी पूजा का शुभ महूर्त
माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से लेकर 26 जनवरी को सुबह सुबह 10 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। सरस्वती की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त 26 जनवरी को सुबह 07 बजकर 12 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक।
बसंत पंचमी की पूजन विधि
इस विशेष दिन पर लोग कन्या पूजन करते हैं। बसंत पंचमी के मौके पर 10 वर्ष तक की कन्याओं को मीठे पीले चावलों का भोजन कराया जाता है और उनकी की पूजा की जाती है। आज के दिन लोग कन्या पूजन के बाद जरूरतमंदों और बेसहारा लोगों को पीले वस्त्र और आभूषण दान करते हैं। इसके अलावा पूजा विधि के दौरान पीले फूलों का इस्तेमाल भी किया जाता है। दान पुण्य करने से परिवार में सुख शांति और समृद्धि का वास होता है।
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से पहले कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए। मां की प्रतिमा स्थापिता करने के बाद कलश रखें। उसके बाद गणपति जी और नवग्रह की पूजा करें। गणेश पूजन के उपरांत मां सरस्वती को पूजें। पूजा के दौरान उन्हें स्नान करवाएं। इसके अलावा मां को सफेद वस्त्र चढ़ाएं। उन्हें फूल माला चढ़ाएं। साथ ही श्रृंगार का सामन भी अर्पित करें। इसके बाद मां सरस्वती को चरणों में गुलाब चढ़ाएं। इसके बाद भोग प्रसाद में आप मां को पीले फल चढ़ा सकते हैं। साथ ही सफेद मिष्ठान जैसे खीर और मालपुए का भी प्रसाद चढ़ा सकते हैं। पूजा स्थल के करीब पुस्तकों को रखकर उनका पूजन करें। साथ ही आप वाद्य यंत्रों को भी पूजें। मां की आरती करें और परिवार के सभी सदस्यों में भोग प्रसाद को बांटे।
बसंत पंचमी का महत्व
हिंदू धर्म में बसंत पंचमी को पूरे रीति रिवाजों और विधि विधान से मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं की मानें, तो मां सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी के दिन हुआ था। माता सरस्वती की उत्पत्ति से जुड़ी कथा के मुताबिक भगवान विष्णु की दी गई आज्ञा का अनुसरण करते हुए ब्रह्मा जी ने इंसान को बनाया ।मगर स्वयं ब्रह्मा जी ही अपने बनाए मनुष्य से खुश नज़र नहीं आए। दरअसल, उन्हें हर ओर उदासी का अनुभव होने लगाता था। ऐसे में ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जल की कुछ बूंदों का छिड़काव पेड़ पर किया। जल की बूंदों के स्पर्श से एक देवी रूपी स्त्री की उत्पत्ति हुई। जो देखने में सुंदरता की मूरत थी। उसी स्त्री के एक हाथ में वीणा और दूसरे में पुस्तक पकड़ी हुई थी। तीसरे हाथ में मां सरस्वती ने माला थामी हुई थी और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। तभी से इस महत्वपूर्ण दिन को बसंत पंचमी का नाम दिया गया। तभी से इस दिन देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा होने लगी।
ज्योतिषशास्त्र की मानें तो इस दिन जो विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं और उन्हें पढ़ाई लिखाई में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा जिनकी कुण्डली में उच्च शिक्षा का योग न हो ऐसे लोग यदि विद्या और ज्ञान की देवी मानी जाने वालीं मां सरस्वती का पूरे मन से पूजन करते हैं। उनकी बाधाएं अवश्श्य दूर होती है। साथ ही बृहस्पति के दोष से मुक्त होने के लिए भी यह दिन बेहद खास होता है। ऐसी मान्यताएं की इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था, तो इस दिन शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने यां कोई नई कला सीखने के लिहाज से ये दिन बेहद शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन भगवान कामदेव की भी पमजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि अगर पति.पत्नी इस दिन भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा करते हैं, तो उन्हें सुखी.वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है। बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त ;
बसंत पंचमी पर पीले रंग का महत्व
पौराणिक ग्रंथों के हिसाब से इस दिन पीले रंग के कपड़ों से लेकर भोग और प्रसाद में भी पीले रंग की विशेष महत्ता है। दरअसल, बसंत के महीने में फसलें पकने लगती है और हर ओर फूलों की बहार नज़र आने लगती है। खेंतों में सरसों पर पीले फूल उगने लगती है। सुनहरी धूप से हर ओर खुशहाली बढ़ने लगती है। ज्योतिष के मुताबिक बसंत का पीला रंग समृद्धि, ऊर्जाए प्रकाश और उम्मीद की किरण का प्रतीक है। इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और व्यंजन बनाते हैं।
आशा का प्रतीक है पीला रंग
जीवन रंगों के बिना अधूरी है। हल्के रंग मन को निर्मलता का एहसास तो कराते हैं, मगर उम्मीद की किरण नहीं जगा पाते हैं। ऐसे में बसंत पंचमी के पीले रंग के कपड़े पहनने से शुभता समृद्धि का एहसास होता है। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है। यह सादगी औरस्वच्छता को भी दर्शाता है। पीला रंग भारतीय परंपरा में बेहद शुभ माना जाता है।
आत्मा से कराता है मिलाप
पीले रंग का फेंगशुई में भी खास महत्व है। फेंगशुई में पीले रंग को आध्यात्मिक माना गया है। इसे अध्यात्म से जोड़ने वाला रंग बताया है। पीला रंग सूर्य के प्रकाश का है यानी यह ऊष्मा शक्ति का प्रतीक है। समय समय पर पीले रंग से हमारे मस्तिष्क को पूर्णता और एकाग्रता की प्राप्ति होती है।
सक्रिय होता है दिमाग
मन और मस्तिष्क को उर्जावान बनाता है। हमें उत्साहवर्धक बनाता है, जिससे हमारा मन खिला हुआ रहता है और हमें आत्मनिर्भरता का एहसास होता है।
हम पीले परिधान पहनते हैं तो सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप स दिमाग पर असर डालती हैं।