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बेटा नहीं दामाद-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM Apr 18, 2024 IST | Sapna Jha
बेटा नहीं दामाद गृहलक्ष्मी की कहानियां
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Hindi Story: अरविंद और रवि दोनों बचपन के दोस्त थे। दोनों ही बचपन में एक साथ खेले कूदे। एक साथ में स्कूल भी गए।
हर सुख हर दुख में एक दूसरे के साथ रहते थे। फिर दोनों की शादी भी हो गई। उनकी दोस्ती इतनी ज्यादा थी कि दोनों एक दूसरे को रिश्तेदारी में बदलना चाहते थे। अरविंद अपनी बेटी मेघा की शादी रवि के इकलौते बेटे राघव के साथ करना चाहता था। रवि को भी इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी।
उसे और उसकी पत्नी अमीषा दोनों को इस बात की खुशी होती थी कि अरविंद की बिटिया मेघा उसके घर दुल्हन बनकर आएगी। राघव और मेघा में कुछ सालों के उम्र का फासला था।लेकिन दोनों के बीच दोस्ती भरपूर थी।
उनकी दोस्ती से किसी को आपत्ति भी नहीं थी। रवि अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था।
वह अरविंद से कहता था। “ मेरी एक ही इच्छा है कि राघव बड़े होकर डॉक्टर बन जाए। मैं उसे एक सफल डॉक्टर बनाना चाहता हूं।” कभी-कभी अरविंद मजाक में रवि से पूछता था “आखिर ऐसी क्या बात है और कि तुम अपने बेटे को डॉक्टर ही बनाना चाहते हो और कुछ नहीं।
मुझे लगता है यह सब बच्चों के ऊपर छोड़ देनी चाहिए। वह जो भी बनना चाहे उन्हें इस बात की छूट होनी चाहिए।”
रवि मजाक में कहता
“ जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा तब मुझे डॉक्टर की जरूरत पड़ेगी, अस्पताल की जरूरत पड़ेगी। अगर मेरा बेटा डॉक्टर रहेगा तो मेरा फ्री में इलाज हो जाएगा।” इसी बात पर अरविंद जोर से हंस पड़ता था।
उसे लगता था रवि मजाक में ही यह सब कहता है।
धीरे-धीरे समय बीत रहा था। बच्चे बड़े होने लगे थे।
ईश्वर की मंजूरी कुछ और ही थी। एक दिन रवि अपने पूरे परिवार के साथ अपनी गाड़ी से कहीं से लौट रहा था।
अचानक ही उसकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
दो दिनों से रवि और उसके पूरे परिवार का कुछ अता-पता अरविंद को नहीं मिल रहा था।
न ही उसे कॉल लग रहा था और न ही कुछ समझ आ रहा था कि वह आखिर है कहां?
उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह आखिर करे तो क्या करे?
अचानक ही एक पुलिस स्टेशन से अरविंद के नाम कॉल आया ।
अपने जान से भी प्यारे अपने जिगरी दोस्त और उसकी पत्नी को सफेद कपड़ो में लिपटे हुए बेजान रूप में देखकर अरविंद फूटफूटकर रो पड़ा।
पुलिस अफसर ने उन्हें बताया
“ पति-पत्नी के अलावा उसे गाड़ी में एक 16-17 साल का एक बच्चा भी था जो कि अभी बेहोश है। उसे अस्पताल में एडमिट किया गया है।”
“ वह इनका ही बेटा है- राघव!” अरविंद अपनी आंखों में आंसू भर कर कहा।
ईश्वर की कृपा थी,राघव बड़ी मुश्किल से जिंदा बच पाया था।
राघव के माता-पिता दोनों की दुर्घटना स्थल में ही मृत्यु हो चुकी थी।
वह अब अनाथ हो चुका था।
अपने पिता को माता-पिता को खोने के बाद राघव बहुत ही ज्यादा डिप्रेशन में चला गया था।
बारह दिनों के श्राद्ध कर्म के बाद राघव को शरण देने वाला कोई भी नहीं था।
उसके रिश्तेदार कन्नी काटने लगे थे।
अरविंद जी रवि की तरह धनवान नहीं थे। एक साधारण सी नौकरी कर रहे थे। अरविंद ने अपने दोनों बाहें फैला कर अपने दोस्त की एकमात्र निशानी राघव को अपने गले से लगा लिया।
उन्होंने राघव से कहा “बेटा,कभी भी मुझे ऐसा नहीं लगा कि मैं और रवि दोनों सगे नहीं है। तुम्हें भी मैं अपना बेटा ही मानता आया हूं।
तुम भी मुझे अपना ही रवि की तरह ही अपना पिता समझो।”
भावनात्मक रूप से राघव पहले से ही अरविंद और उनकी पत्नी से जुड़ा हुआ था।

थोड़े दिनों बाद सब कुछ नॉर्मल होने लगा। राघव भी अपनी पढ़ाई में लग गया।
जब बारहवीं के परिणाम आए तो अरविंद ने राघव से कहा
“बेटा, तुम्हारे पिता की आखिरी इच्छा थी वह तुम्हें मैं तुम्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम मेडिकल के लिए ही ट्राई करो और उनकी आखिरी इच्छा को पूरा करो।”
“ मगर अंकल इतने पैसे कहां से आएंगे? मेडिकल की पढ़ाई में बहुत पैसे लगते हैं।”राघव रोंआसा होकर बोला।
“ मैं हूं ना तुम चिंता मत करो।”
रवि के बैंक अकाउंट और दुर्घटना से मिली हुई राशि के अलावा अरविंद अपने रुपए लगाकर राघव को पढ़ाने लगा।

राघव मन ही मन मेघा को पसंद भी करता था। उसने अपनी पसंद अपनी मां को बताया था लेकिन अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उसकी वह इच्छा उसके मन में दबी रह गई।
अब राघव अरविंद जी के एहसानों तले दब गया था।
अब उसे मेघा की तरफ देखने की हिम्मत भी नहीं थी।
अरविंद जी ने मेघा और राघव के बीच कोई अंतर नहीं किया।
पांच सालों बाद राघव ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की फिर रिसर्च के लिए विदेश चला गया।
अब मेघा बड़ी हो गई थी। अरविंद जी अपनी बिटिया के लिए लड़का ढूंढने लगे थे।
अरविंदजी की पत्नी लाली ने उनसे कहा
“बचपन में आप और रवि भैया दोनों ने यह तय किया था कि मेघा और राघव की शादी करेंगे.. ।
राघव हमारे घर का दामाद बनेगा फिर अब क्यों नहीं?”
“ नहीं लाली,अब मैं राघव से यह सब नहीं कह सकता। मैंने उसे बेटा बना लिया है।
मैं उसपर अपनी इच्छा नहीं थोप सकता। जब तक रवि था, मैं उसको बोल सकता था। उस पर अपना अधिकार जमा सकता था।
राघव पर मेरा अधिकार नहीं है।
वह मेरे दिए हुए एहसानों का सम्मान कर बे मन से हमारी बिटिया के साथ फेरे तो ले लेगा मगर वह नहीं न्याय नहीं हो पाएगा।
उसे अपनी जिंदगी जीने का पूरा अधिकार है।”
अरविंद जी और उनकी पत्नी को भी यह नहीं पता था कि राघव मन ही मन उनकी बिटिया को प्यार भी करता है।

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देखते-देखते राघव विदेश से उच्च डिग्री लेकर आकर भारत के एक टॉप मेडिकल संस्थान में काम भी करने लगा था।
मेघा पत्रकारिता की शिक्षा लेकर एक अच्छे न्यूज़ चैनल में काम कर रही थी।
एक दिन अपने बिटिया के लिए लड़का देखकर अरविंद जी घर लौट रहे थे तभी उनकी तबीयत खराब होने लगी।
उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने की जरूरत पड़ गई।
जैसे ही राघव को इस बात का पता चला वह तुरंत अरविंद जी को अपने अस्पताल में एडमिट कर लिया और डॉक्टरों की टीम को उनकी देखरेख के लिए लगा दिया।
अच्छी देखभाल के बाद अरविंद जी अस्पताल से ठीक होकर घर आ गए।
उनके साथ-साथ राघव भी घर आया। उसकी आंखों में अरविंद जी के लिए बहुत सारी फिक्र थी।
“राघव बेटा, तुम्हारे कारण जिंदा लौट कर घर आया हूं।
जीते जी अपने बिटिया की हाथ पीले कर लेना चाहता हूं।”
राघव की आंखों में आंसू आ गए।
अरविंद जी आज भावनाओं में बह गए थे।उन्होंने राघव से कहा
“बेटा मैं तुम्हारे पिता से कहता था ..कि बड़े होने के बाद राघव को अपना दामाद बनाऊंगा।काश…आज रवि जिंदा होता तो…!”
“अंकल मैं भी आपका दामाद बनने के लिए तैयार हूं।
अगर आपको कोई प्रॉब्लम नहीं है तो मैं मेघा से शादी करने के लिए तैयार हूं।”
“फिर तो मेरी प्रॉब्लम ही खत्म हो गई!मुझे बहुत ही खुशी होगी बेटा तुम्हारे हाथ में अपनी बिटिया का हाथ सौंपने में।”
अरविंद जी ने कहा और अपने दोनों बाजू फैला कर राघव को अपने गले से लगा लिया।

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