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भ्रमजाल-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM Feb 01, 2024 IST | Sapna Jha
भ्रमजाल गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bhramjaal
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Story in Hindi: "ये सब क्या है सुमन? टीनएज बच्चों की माँ होकर रास रचा रही हो?"
"अपनी भाषा पर ध्यान दो राजेश और जिन बच्चों की दुहाई दे रहे हो ना! तुम्हारे अकेले के पैसों से उनके खर्चे पूरे नहीं पड़ते."
"मेरा बिजनेस डूब रहा तो मैं क्या करूँ? इसमें मेरी क्या गलती है?"
"गलती तुम्हारी नहीं तुम्हारे घटिया सोच की है…पिछड़ेपन की है!"
तभी फोन की घंटी बजी और सुमन मुस्कुराती हुई फोन पर बातें करने लग गई. पूरे एक घंटे की बात के बाद राजेश ने पूछा,
"उसी का फोन था?"
"हाँ!"
"तो अब बस उससे ही बातें होंगी फिर मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ?"
"ये अपार्टमेंट तो मेरी नौकरी के बनिस्बत है तो मैं तो यहीं रहूँगी"
"पछताओगी तुम? ऐसे भंवरे एक फूल पर नहीं टिकते"
"वह सब मैं नहीं जानती…फिलहाल मेरी नौकरी,घर और मेरे बच्चों की पढ़ाई जिसके दम से है उसका बहुत सम्मान है मेरी नजर में." पता नहीं राजेश ने उसकी पूरी बात सुनी या नहीं पर उसके बाद घर में दिखा ही नहीं.

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कहाँ और किस हाल में था इस बात की खबर लेने की सुमन ने भी कोई कोशिश नहीं की. जानती थी कि अपने ऑफिस में ही रह रहा होगा. जब खुद गया है तो वापस भी खुद ही आयेगा. इस बात के महीनों निकल गए पर वह नहीं आया. पत्नी की बेवफ़ाई से ज्यादा अपने व्यापार को संभालने में लगा था. हाँ वह आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था. भविष्य की अनिश्चितताओं में घिरा न तो अच्छा पति बन सका था और न ही अच्छा पिता. ऐसे में सुमन की नौकरी से ही काम चल रहा था. घर व बच्चों की जरूरतों की खातिर उसने जो ठीक समझा किया. खूब जानती थी कि इतनी जल्दी प्रमोशन उसके काम को नहीं बल्कि चाम को देख कर दी गई है. पहले- पहल हँस-हँस कर बातें किया करती थी पर अब आज़ादी से बाहर घूमने जाने लगी. घर में कोई रोक टोक करने वाला जो नहीं था.
यह कहानी तीन सखियों की है जो न केवल कॉलेज में साथ थीं बल्कि साथ ही साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग भी ली थी. नीता और रंजना ने राज्यस्तर की परीक्षा पास की थी तो ऑफिसर के पद पर नियुक्त हुए मगर सुमन को क्लर्क बनकर ही समझौता करना पड़ा. जिस वजह से उसके अंदर हीन भावना घर करती चली गई. जब भी तीनों मिलती तो एक बार फिर वही समय याद आता जब तीनों के स्तर में समानता थी. समय के साथ दोनो सखियां अपने ओहदे में तरक्की करती काफ़ी आगे निकल गईं थीं मगर सुमन वहीं की वहीं खड़ी थी. यह बात तो सुमन को बहुत घालती थी इसलिए वह कई बार न मिलने के बहाने बनाती.
अपने जीवन स्तर के कारण उसका दिल पहले ही जला हुआ था उस पर जब नए बॉस ने उसमें दिलचस्पी दिखाई तो उसने आगे बढ़ने के लिए शॉर्टकट अपना लिया. गलत राह पर चलकर सच्ची सफलता हासिल करना मुश्किल ही है इसी कारण उसकी गृहस्थी डावांडोल हो गई थी.
ख़ैर वक्त के साथ सभी अपने ऑफिस ,बच्चों व गृहस्थी में उलझे थे कि एक दिन नीता ने रंजना को फ़ोन किया.
"हेलो रंजना…तुम्हें सुमन के बारे में कुछ पता चला?"
"नहीं तो ..क्यों? कुछ हुआ है क्या?"
"हां! मैने कल उसके लैंडलाइन पर फोन किया तो उसने उठाया ही नहीं,तब राजेश भाई को फोन मिलाया तो उनसे ही पता चला वे दोनों काफ़ी दिनों से अलग रह रहे हैं!"
"अरे! यह तो सही नहीं हुआ मगर उसके साथ इतना कुछ घट गया तो उसने हमें बताया क्यों नहीं? उसके बच्चे कहाँ हैं?"
"अभी तो सुमन के साथ ही हैं पर जल्द ही कुछ और फैसला लेंगे. दोनो में से कोई झुकने को तैयार नहीं है तो शायद तलाक की नौबत आ जायेगी. "
“पिछले हफ्ते ही तो मेरी बात हुई थी पर उसने घर परिवार के बारे में कुछ कहा ही नहीं!"
"यही तो बात है! कोई ऐसी बात जरूर है जो वह कह नहीं पा रही है. इसलिए हमें उससे बात करनी चाहिए!"
"ठीक है! इस रविवार 'फ्रेंडशिप डे' है. चलो! हम सब मिलते हैं."
"तुम्हें क्या लगता है.. वो आयेगी?"
"क्यों नहीं आयेगी? दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही"
इस डायलॉग पर दोनो हँस पड़ीं. अगस्त माह के पहले रविवार को तीनों सहेलियां साथ थीं तब बातों ही बातों में नीता ने पूछ ही लिया,
"सुमन! तुम और राजेश साथ नहीं हो?"
"नहीं!" उसने ऐसे कहा जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं हो.
"मगर क्यों?" रंजना ने पूछा.
"कुछ नहीं..मामूली सी बहस हुई और वह घर छोड़कर चला गया." उसने बड़े ही बेतकल्लुफ अंदाज़ में कहा.
सुमन के जवाब सुनते ही रंजना ने सवाल किया,

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"ऐसे आराम से बता रही हो जैसे कोई कुछ दिनों के लिए रूठकर गया हो..अरे! परिवार यूं ही तो नहीं छोड़ता कोई ..कोई तो मसला होगा..आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो तुमने अलग रहने का निर्णय लिया?"
"अब तुमलोग इतना ही जोर दे रही हो तो सुनो..मुझे अपने ब्रांच मैनेजर शशिकांत से प्यार हो गया है?"
"प्यार हो गया है वह भी इस उम्र में जब बच्चों के बारे में सोचने का वक्त है.. राजेश के प्यार में क्या कमी है? तुम्हारे बच्चों की क्या गलती है?"
"गलती किसी की नहीं! मेरे बच्चे मेरे साथ ही हैं मगर मैं मन से शशिकांत की हो चुकी हूँ. वह जिस तरह बात करते हैं,मेरा जितना ज्यादा ध्यान रखते हैं यह सब मेरे लिये बिल्कुल नया है. सच तो यह है कि राजेश और मैं एक ही छत के नीचे दो अजनबियों की तरह जी रहे थे. शशिकांत से मिलकर ऐसा लगता है मैं भी महत्वपूर्ण हूँ. उनके कारण जैसे मैं पूरी हो गई हूँ." उसके चेहरे पर मुस्कान थी. जैसे कोई नया मुकाम हासिल कर लिया हो.
"अच्छा! उम्र क्या है शशिकांत की?" इस बार नीता ने दृढ स्वर में पूछा.
"यही कोई छप्पन साल का है. उसकी पत्नी गाँव में रहती है. दोनो की बिल्कुल नहीं बनती. पिछले बीस सालों से उनके बीच कोई संबंध भी नहीं है. एक लड़का है जो अमेरिकन से शादी कर वहीं बस गया है."
"अच्छा ! इसका मतलब यह है कि वह अपनी सभी जिम्मेदारियां निभा कर खाली बैठा है..उम्र के इस पड़ाव पर अक्सर लोग भटक जाते हैं. प्यार भरी बातें कर अपने से चौदह वर्ष छोटी उम्र की महिला को जाल में फंसाया और तू उसे समझ तक नहीं पाई." रंजना के स्वर में दुख था. नीता के भी लगभग वही ख्याल थे. उससे भी न रहा गया तो उसने भी खरी-खरी सुना ही दिया,
"शशिकांत तुम्हारा नहीं अपना मन बहला रहा है…उसके बीवी-बच्चे अपनी जगह पर सेटल है.. तुम अपने किशोर बच्चों व युवा पति को मंझधार में छोड़कर सच्चा प्रेम ढूँढ रही हो..आपस की अनबन थी तो राजेश से बात करती. एक-दूसरे को समझाने की कोशिश कर सकती थी पर तुमने तो आँखों पर पट्टी बाँध लिया…एक बार ठंडे मन से सोचा होता..तुम अपना परिवार को अपने हाथों बर्बाद कर रही हो!"
"ऐसा नहीं है पर तुमलोग नहीं समझोगे! उन्होंने मेरा प्रमोशन कराया. अब मैं ऑफिसर श्रेणी में आ गई हूँ और हम दोनों एक साथ बहुत खुश हैं. सबसे बड़ी बात कि किसी जोड़े के बीच कोई तीसरा तभी आता है जब दोनों के बीच रिक्तता यानी गुंजाइश हो. ऊपर-ऊपर सब ठीक ही दिखता है मगर अंदर कहीं एक टीस सी उठती है कि काश कोई ऐसा हो जिसकी प्राथमिकता सिर्फ़ मैं ही रहूँ. हाँ! शशिकांत की प्राथमिकता मैं हूँ और इस बात से मैं बहुत खुश भी हूँ."
कहकर वह निकल गई और उसके बाद किसी से कोई सरोकार नहीं रखा. तीनों की दोस्ती संक्षिप्त हो गई अब तीन से दो हो गये. समय-समय पर रंजना और नीता मिलते और उसके लिये दुखी भी होते पर कर क्या सकते थे.
इधर इन बातों के दो वर्ष निकल गये तब एक दिन रंजना के पास सुमन की बेटी का फोन आया तो दोनो उससे मिलने घर पहुँचीं. घर का माहौल कुछ अजीब सा था. चचंल व फैशनेबल दोस्त बयालीस की उम्र में एक उम्रदराज महिला के समान अनमनस्क उचाट मन लिए बैठी थी.
राजेश जी ने बताया कि उसका बाॅस शशिकांत रिटायरमेंट के बाद शहर छोड़कर गाँव चला गया तो सुमन ने भी नौकरी पर जाना छोड़ दिया. पिछले कुछ दिनों से न खाती है न पीती है. सोने-जागने का भी होश नहीं रहता. डॉक्टर गंभीर डिप्रेशन बता रहे हैं. अपलोग का नाम ले रही थी इसलिए बेटी से फोन करा कर बुलाया.
उसे देखकर आँखें भर आईं. फ्रेंडशिप डे के बिछड़े दोस्त महिनों बाद मिले थे.
"क्या हुआ सुमन बोलो तो…हम आ गये हैं" पनीली आँखों वाली नीता ने मिलते ही कहा.
"शशिकांत ने धोखा दे दिया. अपनी पत्नी के पास चला गया…"
“उसे तो जाना ही था!”
"फिर वह सब क्या था….जो मेरे साथ किया?”
“कुछ नहीं था..इस हाथ दे उस हाथ ले वाला हिसाब…कुछ तुम्हारे काम आए और कुछ पाने की चाहत रखी..” रंजना ने कहा।
"मैं पोजीशन पाकर भटक गई थी…तुम दोनो सही थे…!" कहती हुई जैसे कहीं खो गई.
"प्यार- व्यार कम वयस में होता है .. उस उम्र में बस स्वार्थ होता है और ऐसे लोग किसी के नहीं होते. आज तुम तो कल कोई और,मीठी बातों का जाल फेंकते हैं,जो हँसी वो फँसी. इतना ही बड़ा मसीहा होता तो पत्नी साथ नहीं रहती. अब भी कुछ नहीं बिगड़ा. देर आये दुरूस्त आये. कुछ न सोचो! राजेश जी की आँखों में देखो…कितने फिक्रमंद हैं तुम्हारे लिए.. यही तो सच्चा प्यार है. उस छलिये के बारे में सोच कर स्वास्थ्य खराब मत करो!" नीता ने समझाया
पहली बार वह सारी बातें ध्यान से सुन रही थी.उसके इस बदले रूप को देखकर ताज्जुब हो रहा था.
"बीती ताहि बिसारिये आगे की सुधि लेई. जो कुछ हुआ उसमें दोष सिर्फ तुम्हारा नहीं. मेरी भी गलती है! जब तुम्हें प्रमोशन मिला तब मैं भी खुश था. तुम्हें आगे बढ़ने की आग में झोंकता यह भूल गया था कि इस दुनिया में कुछ भी फ्री नहीं होता. शशिकांत ने अहसान के बदले साथ माँग लिया तब महसूस हुआ कि मैं तुम्हें खो रहा हूँ. मैं किसी भी हाल में तुम्हें खोना नहीं चाहता."
"काश ये पहले कहते?" राजेश की ओर देख कर सुमन ने कहा,
"कुछ बातें जिंदगी सिखाती है. अनुभव ही समझदार बनाता है सुमि! अब भी देर नहीं हुई. अहसास तो हुआ तेज़ गति से आगे बढ़ने में अपनों को खो रहे थे." यह कहकर राजेश ने उसका माथा सहलाया तो सुमन के चेहरे की कालिमा घटने लगी थी.
"तुमने मुझे माफ कर दिया राजेश?" उसके हाथ क्षमा मांगने की मुद्रा में बंधे थे.
"मैं नाराज ही कब था. प्रेम और क्षमा तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. मुझे तो बस इतना कहना है कि तुम मेरी अर्धांगिनी हो. मेरी जिम्मेदारी हो. अब मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ कर नहीं जाऊंगा."
"दिल से एक बोझ उतर गया” उसके चेहरे का तनाव कुछ कम हुआ तो धीरे से बुदबुदाई.
सुमन ने स्वास्थ्य के आधार पर अपना तबादला घर के नजदीक के ब्रांच में करा लिया. अब रंजना और नीता भी अक्सर घर आ जातीं. सहेलियाँ का आना और उनका हंसी-मजाक करना उसके लिए उपचार समान था. धीरे धीरे वह अपने अवसाद से बाहर निकल आई तो उस पुरानी बात को डब्बे में बंद कर नई बातें करने लगी. इस तरह उसके परिवार में फिर से खुशियाँ छा गईं.
सुमन भाग्यवान थी कि उसे राजेश जैसा सहचर मिला था जिसने राह भटकी पत्नी को संभालकर सात वचनों की लाज रखी. एक पुरूष के हाथों वह छली गई थी.. दूसरे ने संभाल लिया. आखिर सफलता के लिए उस राह पर भी तो उसी ने धकेला था जिस पर जाने से उसे रोकना था. आज के परिवेश में इंसान संघर्ष से नहीं बल्कि धोखे से टूट रहा है…कहीं कोई टूटा दिखे तो जोड़ना जरूरी है..जीवन हर हाल में आगे बढ़ने का नाम है..चाहे उसके लिये किसी की बड़ी से बड़ी गलती माफ करनी पड़े तो भी, क्योंकि विवाह,परिवार व बच्चे हर हाल में सामान्य मानवीय इच्छाओं और आकांक्षाओं से बहुत ऊपर है. सच तो यह है कि महत्त्वाकांक्षा व भौतिकतावाद ने लोगों के इस कदर बदला कि आर्थिक लाभ के लिए दफ्तरों में एक होड़ सी रहती है. सफलता के इस भ्रमजाल में फंसने की बजाय संतुलन बनाकर चलना अपरिहार्य है.

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