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प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में ब्लीडिंग कितनी घातक: Bleeding in pregnancy

06:00 PM Mar 10, 2023 IST | Rajni Arora
प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में ब्लीडिंग कितनी घातक  bleeding in pregnancy
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Bleeding in pregnancy: प्रेगनेंसी (Pregnancy) का पता चलने पर खुशनुमा माहौल बन जाता है। लेकिन कुछ दिन बीतने पर ब्लीडिंग होना माहौल को गमगीन बना देता है। मन में तरह-तरह के सवाल उठते हैं, कई बार महिलाएं खुद को इसका जिम्मेदार मानने लगती हैं। प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग होना एक बहुत परेशान करने वाली और अलार्मिंग समस्या है। आश्चर्य की बात है कि यह बहुत काॅमन है। लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान थोड़ी या अधिक मात्रा में ब्लीडिंग होती है। यानी 5 में से 1 गर्भवती महिला ब्लीडिंग की समस्या का सामना करती है। इनमें से 80 प्रतिशत मामले प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में देखे जाते हैं।

ब्लीडिंग होने पर अमूमन हर महिला के मन में डर बैठता है कि शायद वो प्रेगनेंसी को खो देेंगी। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता क्योंकि ब्लीडिंग होने के बाद तकरीबन 15 प्रतिशत गर्भपात की संभावना रहती है। प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में ब्लीडिंग कई कारणों से होती है। अगर समय रहते डाॅक्टर से संपर्क किया जाए तो कई मामलों में ब्लीडिंग के कारणों को समुचित उपचार के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।

Bleeding in pregnancy: नाॅर्मल ब्लीडिंग

प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग कई बार थोड़ी-बहुत होती है जिसे मेडिकल टर्म में नाॅर्मल माना जाता है। जैसे-इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग में ओवेल्यूशन के बाद जब भ्रूण यूटरस के अंदर प्रत्यारोपित होता है या प्लेंसन्टल साइन में 12-14 सप्ताह के बीच जब गर्भनाल फ्यूज होती है। उस समय एक-दो दिन के लिए स्पाॅटिंग या थोड़ी-सी ब्लीडिंग होती है। आमतौर पर इलाज के बजाय महिला को और ध्यान रखने के लिए कहा जाता है। क्योंकि यह ब्लीडिंग ज्यादा दिन नहीं चलती और किसी तरह का नुकसान नहीं होता।

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अलार्मिंग ब्लीडिंग

Bleeding in pregnancy
Bleeding in pregnancy Tips

पहली तिमाही में जब यह ब्लीडिंग ज्यादा हो या ब्लीडिंग के साथ पेट में दर्द हो रहा है या ब्लीडिंग के साथ क्लाॅट्स आ रहे हों, तो यह स्थिति अलार्मिंग है। ऐसी ब्लीडिंग के मूलतः 3 कारण होते हैं-

गर्भपात

अलार्मिंग ब्लीडिंग प्रेगनेंसी में बहुत काॅमन है। लगभग 15-20 प्रतिशत प्रेगनेंसी में गर्भपात की समस्या हो जाती है। जब भी महिला को हैवी ब्लीडिंग हो, तो यह गर्भपात होने का संकेत देता है। महिला को तुरंत डाॅक्टर से संपर्क करना चाहिए। अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी करके स्थिति को देखा जाता है। कुछ मामलों में सही समय पर प्रोजेस्टराॅन हार्मोन की टेबलेट और सपोर्टिव मेडिसिन देने से ब्लीडिंग रुक जाती है और प्रेगनेंसी आगे चलती है।

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संभावित गर्भपात

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किसी महिला को ब्लीडिंग होने पर गर्भपात की आशंका हो सकती है। इसे संभावित गर्भपात या थ्रैटंड मिसकैरेज कहा जाता है। इसमें महिलाओं की इंटरनल सोनोग्राफी कराई जाती है जिसमें 2 बातों को चैक किया जाता है। पहली-प्रेगनेंसी की लोकेशन और दूसरी-हार्टबीट आ गई है या नहीं और अगर आ गई है तो कितनी है। यदि प्रेगनेंसी यूटरस के अंदर ही है, हार्टबीट 110 बीट/मिनट से ऊपर आ रही है- तो इस प्रेगनेंसी में गर्भपात होने की संभावना बहुत कम होती है। अगर समुचित देखभाल की जाए, तो 95 प्रतिशत यह प्रेगनेंसी जारी रहती है।
लेकिन कुछ मामलों में सोनोग्राफी करते समय यह पता चलता है कि आगे हार्टबीट न आई हो या 110 बीट/मिनट से कम हो, ऐसे मामलों में गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। डाॅक्टर गर्भवती महिला को बेडरेस्ट के साथ इंजेक्टेबल प्रोजेस्टरान हार्मोन और कुछ सर्पोटिव मेडिसिन भी देते है। नियमित अंतराल के बाद तकरीबन सप्ताह बाद सोनोग्राफी दोबारा की जाती है। आमतौर पर भ्रूण की हार्टबीट आ जाती है और प्रेगनेंसी बनी रहती है।

अपरिहार्य गर्भपात

अगर यह ब्लीडिंग सपोर्टिव मेडिसिन के बाद भी होती है या ब्लीडिंग के साथ खून के थक्के आने लगते हैं। इस स्थिति में गर्भपात होना तय होता है यानी डाॅक्टर या मेडिसिन से भी गर्भपात रोक पाना असंभव होता है। इसके पीछे कुदरती तौर पर ठहरे गर्भ में कोई न कोई कमी (एब्नाॅर्मल, जेनेटिक डिफेक्ट, म्यूटेशन) होती है जिसकी वजह से भ्रूण का विकास नहीं हो पाता और गर्भपात हो जाता है।
जरूरी है कि इस तरह की महिला को डाॅक्टर की सुपरविजन में रहना चाहिए क्योंकि ज्यादा ब्लीडिंग होने की स्थिति में महिला की जान को भी खतरा रहता है। अल्ट्रासाउंड से पता चलता है कि गर्भपात पूरा हुआ है या नहीं। यूटरस में भ्रूण का कोई भी हिस्सा रह जाने पर सक्शन इक्वेशन करके यूटरस की सफाई की जाती है ताकि यूटरस में इंफेक्शन न हो।

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असामान्य एक्टोपिक प्रेगनेंसी ब्लीडिंग

pregnancy bleeding
Abnormal ectopic pregnancy bleeding

प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में तकरीबन 2 प्रतिशत महिलाओं में ब्लीडिंग होने का एक अन्य कारण है-एक्टोपिक प्रेगनेंसी। यह महिलाओं के लिए जानलेवा भी हो सकता है। एक नाॅर्मल प्रेगनेंसी में भ्रूण यूटरस के अंदर इम्प्लांट होता है। लेकिन कई मामलों में ओवोल्यूशन के बाद भ्रूण फैलोपियन ट्यूब या ओवरी में ही फंस जाता है और वहीं बढ़ने लगता है।
हालांकि इस प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग और पेट दर्द के अलावा कोई लक्षण नहीं होते। डाॅक्टर जब 6 सप्ताह में सोनोग्राफी करते हैं, तो इसका पता चलता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी में शिशु का विकास संभव नहीं होता क्योंकि फैलोपियन ट्यूब फट सकती है और महिला के लिए जानलेवा हो सकती है। इसलिए डाॅक्टर ऐसी प्रेगनेंसी को आगे बढ़ने से रोकना पड़ता है।

सब्कोरियोनिक हैमरेज ब्लीडिंग

प्रेगनेंसी इम्प्लांट होने पर मां के यूटरस की कोशिकाएं भ्रूण को चारों तरफ से घेर लेती हैं और प्लेसेंटा बनने लगता है। कई बार बच्चा यूटरस की दीवार से थोड़ा खिसक जाता है जिससे ब्लीडिंग होने लगती है। यह ब्लीडिंग प्लेसेंटा और मां के यूटरस की सतह के बीच इकट्ठी होनी शुरू हो जाती है जिसे सब्कोरियोनिक हैमरेज ब्लीडिंग कहा जाता है। कभी ब्लीडिंग ज्यादा होती है, कभी कम। ज्यादा होने पर मिसकैरेज का खतरा ज्यादा रहता है।
सब्कोरियोनिक हैमरेज ब्लीडिंग ज्यादा हो, तो महिला को हार्मोनल सपोर्ट दी जाती है और बैडरेस्ट के लिए बोला जाता है। जरूरी हो तो अस्पताल में भी भर्ती कराया जाता है। आमतौर पर 4-6 सप्ताह में ब्लीडिंग डिसाॅल्व होनी शुरू हो जाती है और प्रेगनेंसी बनी रहती है।

सर्वाइकल पाॅलिप और इंफेक्शन से ब्लीडिंग

2-5 प्रतिशत महिलाओं में ऐसी ब्लीडिंग होती है। यूटरस के मुंह यानी सर्विक्स पर गांठ या पाॅलिप बनने पर ब्लीडिंग होती है। पाॅलिप की वजह से सर्विक्स ढीला हो जाता है, इंफेक्शन होने से यूटरस का मुंह टाइम से पहले खुल जाता है और ब्लीडिंग होने लगती है।
डाॅक्टर लेजर सर्जरी से पाॅलिप निकाल देते हैं और प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में सर्वाइकल स्टिच लगाकर सर्विक्स को बंद कर दिया जाता है। इंफेक्शन दूर करने के लिए जरूरी एंटीबाॅयोटिक दवाइयां देते हैं। इससे प्रेगनेंसी आगे बढ़ सकती है।

(डाॅ सोनिया कटारिया, स्त्री रोग विशेषज्ञ, कटारिया हार्ट एंड गाइनी क्लीनिक, दिल्ली)

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