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किशोरों के जीवन में हस्तक्षेप की सीमारेखा अनिवार्य है: Parenting Skill

12:30 PM Apr 17, 2024 IST | Srishti Mishra
किशोरों के जीवन में हस्तक्षेप की सीमारेखा अनिवार्य है  parenting skill
Parenting Skill
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Parenting Skill: यदि हम बच्चों पर अपनी पसंद थोप देंगे तो इसकी संभावना अधिक है कि वे अपने दोस्तों के बीच में उपहास के पात्र बन जाएं। इससे उनके व्यक्तित्व का विकास बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है जो हर तरह से उनकी उन्नति में बाधक होगा। सुबह-सुबह एक मित्र महोदय का फोन आया। उम्र में मुझसे काफी बड़े हैं। जीवन के पचहत्तर वसंत पूरे कर चुके हैं। पौत्र-पौत्रियों के बारे में बातें करने लगे। उनकी पढ़ाई-लिखाई, प्राप्त अंक, करियर, खानपान, दिनचर्या, आदतों व उनके व्यवहार के बारे में काफी बातें कीं।

बतलाया कि कई बार छुट्टियों में भी हमारे पास न आकर हॉस्टल में ही पड़े रहते हैं। बच्चों की और भी कई बातों से संतुष्ट नहीं थे। बात करते हुए बीच-बीच में उत्तेजित तक हो जाते थे। अपने किशोर बच्चों अथवा पौत्र-पौत्रियों को लेकर माता-पिता अथवा घर के बुजुर्गों की चिंता स्वाभाविक है लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है। अपने बच्चों अथवा पौत्र-पौत्रियों के मामलों में कितनी चिंता की जाए अथवा उनके जीवन में कितना हस्तक्षेप किया जाए यदि हम इस सीमारेखा को समझकर उसके अनुसार व्यवहार करेंगे तो उनसे हमारे संबंध सदैव आत्मीय व अर्थपूर्ण बने रहेंगे अन्यथा हमेशा के लिए तनावपूर्ण हो जाएंगे। कारण स्पष्ट है और वो ये है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह बच्चा ही क्यों न हो अपने जीवन में दूसरों की बेजा दखलंदाजी पसंद नहीं करता।

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जहां तक किशोरावस्था का प्रश्न है यह अत्यंत संवेदनशील अवस्था होती है। अपने किशोर पौत्र-पौत्रियों की पढ़ाई-लिखाई अथवा उनके भविष्य को लेकर घर के बुजुर्गों की चिंता स्वाभाविक है लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंचने के बाद इसकी मुख्य चिंता बच्चों के माता-पिता पर छोड़ देनी चाहिए और जहां बहुत जरूरी अथवा अपेक्षित हो वहीं अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए। उनकी शिक्षा-दीक्षा और करियर के विषय में उनके माता-पिता अपेक्षाकृत अधिक उचित निर्णय ले सकते हैं। उनको मांगने पर सलाह दी जा सकती है लेकिन उनके निर्णयों को बदलने अथवा उनमें कमी निकालने का प्रयास किसी भी दृष्टि से उचित प्रतीत नहीं होता। वैसे भी आज करियर के क्षेत्र में बहुत परिवर्तन हो चुके हैं अत: समय के अनुसार करियर के सही चयन के विषय में वे स्वयं अधिक जानते हैं। आज के जमाने की तुलना अपने जमाने से करना तो किसी भी तरह से उचित नहीं ठहरता। समय के साथ हर चीज बदलती है इस बात को अच्छी तरह से जान लेना और स्वीकार कर लेना चाहिए।

समय के साथ-साथ नई पीढ़ियां भी बदल जाती हैं। उनकी सोच पुरानी पीढ़ियों की सोच जैसी नहीं हो सकती। होनी भी नहीं चाहिए। यदि नई पीढ़ी की सोच में समयानुसार अपेक्षित परिवर्तन नहीं होगा तो वो आगे बढ़ने की बजाय पिछड़ जाएगी। नई पीढ़ी की सोच ही नहीं उनका खानपान, पहनावा व आदतें सब बदल जाते हैं, जो अत्यंत स्वाभाविक है। उनकी दिनचर्या, खानपान व पहनावे को लेकर ज्यादा टोकाटोकी करना अथवा हर बात में हस्तक्षेप करना किसी भी तरह से उचित नहीं। विशेषरूप से उनके मित्रों अथवा अपने परिचितों या रिश्तेदारों की उपस्थिति में। उनके स्वास्थ्य के विषय में चिंता व्यक्त की जा सकती है लेकिन उनकी शारीरिक बनावट अथवा देहयष्टि के विषय में नकारात्मक टिप्पणी करके नहीं। यदि हम किसी बच्चे से कहें कि ये क्या गैंडे जैसा शरीर बना रखा है तो निश्चित रूप से वो हमसे दूर-दूर रहने और हममें कमियां निकालने का प्रयास करेगा। हमारी बातों से किसी भी कीमत पर बच्चे के स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए।

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जो बच्चे घर से बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं वे छुट्टियों में अथवा बीच में जब कभी भी घर के सदस्यों से मिलने अथवा छुट्टियां बिताने के लिए घर आएं तो उनकी हर बात में हस्तक्षेप करने या उन्हें हर बात पर प्रवचन देने से वे घर आनाजाना कम कर देते हैं जो दोनों के लिए ही ठीक नहीं। माना कि हम अत्यंत सात्त्विक भोजन करते हैं और हमारी दिनचर्या भी आदर्श और व्यवस्थित रहती है लेकिन बाहर पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह संभव नहीं हो पाता। आजकल स्टूडेंट्स पर पढ़ाई का बड़ा प्रेशर रहता है। रात-रात भर जागकर पढ़ने वाले बच्चों के लिए ब्रह्मï मुहूर्त्त में उठकर स्नान-ध्यान करना कैसे संभव है? हम अपने बच्चों को डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनाना चाहते हैं लेकिन साथ ही ये भी चाहते हैं कि उनकी दिनचर्या गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों जैसी हो जो असंभव है।

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