बुढ़ापा-लघु कहानी
Short Story: श्याम के पापा ने आवाज लगाई । आ रही हूं दोनों साथ में खाना खाते हैं और घर को देखते हुए। कितने ही प्यार से हम लोगों ने यह घर बनाया। जब हमारे बच्चे बड़े होंगे । सबका शादी ब्याह होगा, पूरा परिवार भरा पूरा होगा। हमारे दोनों बच्चों की शादी भी हुई, दोनों के दो बच्चे हैं भरा पूरा परिवार है हमारा ।लेकिन हमारे बुढ़ापे का साथ हम दोनों ही हैं एक दूसरे के ………..।
श्याम के पापा समझाते हुए मुझे कहते हैं हमारे बच्चे कम से कम हमारे लिए, हमारे दिए हुए संस्कार की बदौलत इतना तो सोचते हैं कि …..हमारे लिए पूरे दिन रात के लिए, छोटे-छोटे घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए रामू काका को रख दिया है। वरना आजकल के बच्चे तो कुछ सोचते भी नहीं हैं……..।
तभी श्यामू कहती है यह तो सच कहा आपने। हमें अपने बच्चों में सिर्फ बुराई ही नहीं ढूंढनी चाहिए अच्छाई को भी ढूंढना है उनकी भी तो दुनिया है उनके भी तो बच्चे हैं।एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुराते हैं ।दोनों साथ में अपने कमरे में आराम करने के लिए चले जाते हैं। तभी श्याम के पापा कहते हैं साथी की जरूरत तो हर समय पड़ती है ।लेकिन बुढ़ापे में साथी की जरूरत सबसे ज्यादा पड़ती है । कुछ मिले ना मिले शरीर काम करें ना करें एक दूसरे को देखकर सुकून तो जरूर मिलता है। दोनों एक साथ बोलते हैं। हे ईश्वर और कुछ हो ना हो जीवन में,सभी के जीवनसाथी का प्रेम बुढ़ापे तक जीवंत रहे। एक दूसरे के हाथों में हाथ डालकर कभी ना बिछड़ने का वादा करते हुए । शुभ रात्रि कहकर आने वाले कल की नई उम्मीद लिए सो जाते हैं ।
Also read : मैं ना भूलूंगी बीकानेर-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी