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बुद्धूमल का सपना टूटा -  दादा दादी की कहानी

12:00 PM Sep 19, 2023 IST | Reena Yadav
बुद्धूमल का सपना टूटा    दादा दादी की कहानी
budhumal ka sapna toota, dada dadi ki kahani
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Dada dadi ki kahani : तुमने सुना होगा कि दिन में सपने देखना अच्छी बात नहीं है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो दिन में आँखें खोलकर सपने देखते हैं। क्या कहा! आँखें खोलकर कोई सपने कैसे देख सकता है? अरे भाई, देख सकता है-कुछ ऐसे।

एक थे बुद्धूमलजी। अपने नाम की तरह वे सच में बुद्धू ही थे। साथ में कामचोर भी थे। कामचोर यानी जो काम से मन चुराए।

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तो एक दिन बुद्धूमलजी की माँ ने उनसे कहा, 'बेटा, तू अब बड़ा हो गया है, कुछ कामकाज सीख। जा, घर से बाहर निकलकर देख, सब लोग कितना काम करते हैं।'

बुद्धूमलजी उस समय आलस में बिस्तर में पड़े हुए थे। उबासी लेते हुए वे उठे और घर से निकलकर चल पड़े। वे थोड़ी ही दूर चले होंगे, तभी उन्होंने देखा कि एक बूढ़ी माई एक पेड़ के नीचे थककर बैठी हुई है। उसके सामने लकड़ियों का एक बड़ा-सा गट्ठर रखा हुआ था।

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बुद्धूमल ने बूढी माई से पूछा, 'ए माई, कुछ काम मिलेगा क्या?'

बूढ़ी माई ने कहा, 'अरे भाई, मैं तो खुद बहुत गरीब हूँ। मैं किसी को क्या काम दे सकती हूँ! लकड़ियाँ बेचकर जो पैसे मिलते हैं, उससे ही अपना काम चलाती हूँ। आज चलते-चलते बहुत थक गई हूँ।'

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'लाओ, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ।' बुद्धूमल ने कहा।

'तुम बड़े ही भले हो, भैया। अगर तुम यह गट्ठर मेरे घर तक पहुँचा दो तो इसमें से कुछ लकड़ियाँ मैं तुम्हें भी दे दूंगी।' बूढ़ी माई बोली।

बुद्धूमल खुश हो गए। उन्होंने गट्ठर सिर पर उठा लिया और चल पड़े। वे सोचते जा रहे थे-कोई बात नहीं, पैसे न सही लकड़ियाँ ही सही। अब इन लकड़ियों को बेचकर मुझे 20-25 रुपए तो मिल ही जाएँगे। उन रुपयों से मैं कुछ बीज खरीदूंगा। मेरे घर के बाहर जो थोड़ी-सी ज़मीन है, उस पर सब्जियाँ उगाऊँगा। उन सब्जियों को बेचकर जो पैसे मिलेंगे उन्हें थोड़ा-थोड़ा बचाकर थोड़ी और ज़मीन ख़रीद लूँगा। उस पर गेहूँ उगाऊँगा। फिर मुझे और बहुत सारे पैसे मिलेंगे। उन पैसों से एक ट्रैक्टर ख़रीद लूँगा। तब खेत जोतने में आसानी होगी। फ़सल को जल्दी से बाज़ार भी पहुँचा सकूँगा। ढेर सारे पैसे और मिल जाएँगे। उनसे एक बढ़िया घर ख़रीदूंगा। सब लोग कहेंगे कि बुद्धूमल कितना बुद्धिमान है।'

बुद्धूमल अपने सपने में इतना खो गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि आगे तालाब है, उनका पैर फिसला और वे छपाक से तालाब में गिर गए। साथ ही लकड़ियों का गट्ठर भी पानी में गिर गया।

बूढी माई चिल्लाई, 'अरे भैया, यह तुमने क्या किया, मेरी लकड़ियाँ गीली कर दीं, अब मैं क्या बेचूंगी! मेरी पूरे दिन की मेहनत बेकार हो गई। अब इन गीली लकड़ियों को कौन ख़रीदेगा?'

बुद्धूमल पानी से बाहर निकले और बोले, 'माई, मुझे माफ़ कर दो। मैं अपने सपने में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि आगे तालाब है। मेरा तो लाखों का नुकसान हो गया माई!'

बुद्धूमल सिर पकड़कर बैठ गए। तब बूढी माई बोली, 'बेटा, दिन में सपने देखना अच्छी बात नहीं है। मेहनत करो और फिर देखो, तुम्हें सब कुछ अपने-आप मिल जाएगा।'

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