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बच्‍चों की सुरक्षा और पेरेंट्स के कानूनी अधिकार: Children Safety Rights

12:30 PM Apr 19, 2024 IST | Reena Yadav
बच्‍चों की सुरक्षा और पेरेंट्स के कानूनी अधिकार  children safety rights
Children Safety Rights
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Children Safety Rights: घर के बाद स्कूल ही ऐसी जगह मानी जाती है, जहां बच्चों की सुरक्षा पर विश्वास जताया जा सके। ये विश्वास, अंधविश्वास में बदलकर बच्चों को किसी संकट में न डाल दे, इसके लिए ज़रूरी है कुछ बातों का ध्यान रखना-

तेजी से बदलते समय और आए दिन होने वाली घटनाओं को देख बच्चों की सुरक्षा को लेकर लगभग हर अभिभावक चिंतित हैं। ऐसे में पेरेंट्स हर हाल में अपने बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहते हैं। इसके लिए हर संभव कोशिश में लगे हैं, लेकिन इस दौरान कई ऐसी बातें भी सामने आती हैं, जब बच्चों के लिए अभिभावकों की चिंता ही उन्हें उनसे दूर करने लगती है।

हर बच्चे का अलग-अलग स्वभाव होता है। इसे देखते हुए उन्हें हैंडल करना चाहिए। बच्चों की सुरक्षा कुछ बुनियादी बातों का पालन करके भी की जा सकती हैं, जिन्हें जानना किसी भी अभिभावक के लिए बेहद जरूरी है। अक्सर देखा गया है कि जब तक दुनिया को कोई सनसनीखेज खबर नहीं मिलती है, तब तक बमुश्किल ही कोई कदम उठाया जाता है।

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रेयान इंटरनेशनल जैसे केस में भी माता-पिता अभी भी अपने बच्‍चे की मौत की सही वजहों को जानने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इसकी सबसे बड़ी खामी है, कानूनों के बारे में जानकारी ना होना, जिन्‍हें माता-पिता को अपने बच्‍चों के लिए जानना चाहिए।

जुवेनाइल जस्टिस एक्‍ट (‍किशोर न्‍याय अधिनियम) के अलावा बच्‍चों से संबंधित कोई भी सख्‍त कानून नहीं है। द इंडियन पीनल कोड एक सामान्‍य कानून है, जो अपराधियों पर लागू होता है, लेकिन ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है, जो बच्‍चों के संबंध हो। 'आनंद लॉ प्रैक्टिस ' के मैनेजिंग डायरेक्‍टर, के.के. आनंद और वकील सुमित बत्रा, कुछ कानूनों के बारे में विस्‍तार से बताते हैं, जिन्‍हें सभी माता-पिता को ध्‍यान में रखना चाहिए।

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स्‍कूलों में शारीरिक दंड पर रोकथाम के लिए कोई केन्‍द्रीय विधान नहीं है। हालांकि विभिन्‍न राज्‍यों ने इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून या नियम बनाए हुए हैं। उदाहरण के लिए दिल्‍ली के राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 'द दिल्‍ली स्‍कूल एजुकेशन एक्‍ट 1973में शारीरिक दंड का प्रावधान था। इस प्रावधान को बच्‍चों के आत्‍मसम्‍मान के लिए अमानवीय और हानिकारक करार देते हुए दिसंबर, 2000 में दिल्‍ली हाई कोर्ट द्वारा एआईआर 2001 दिल्‍ली 212 में रिपोर्ट किए गए मीनिंगफुल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के पेरेंट्स फोरम के केस में समाप्‍त कर दिया गया था।

बच्‍चे को सुरक्षित और निश्चिंत माहौल प्रदान करना स्‍कूल का कर्तव्‍य है। यदि स्‍कूल द्वारा कर्तव्‍यों को निभाने में कोई कमी पाई जाती है तो वह नागरिकों पर अत्‍याचार के लिए उत्तरदायी है। यदि स्‍कूल का कोई कर्मचारी यौन अपराध का दोषी पाया जाता है तो यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा के अधिनियम 2012 और इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की उपयुक्‍त धाराओं के अंर्तगत उसकी रिपोर्ट की जा सकती है।

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हालांकि यदि स्‍कूल प्रबंधन की लापरवाही के कारण ऐसा हादसा होता है तो उस हानि के लिए स्‍कूल को जिम्‍मेदार ठहराया जा सकता है।
यदि संस्‍थान के किसी सदस्‍य को पता था कि परिसर में बच्‍चे की सुरक्षा को खतरा था, चाहे यह रैगिंग, धमकाना, यौन दुव्‍र्यवहार, शारीरिक दंड या दुर्घटना हो और इसकी रिपोर्ट नहीं की गई या स्‍कूल ने पुलिस के साथ सहयोग नहीं किया और सबूतों को मिटाने की कोशिश की तो स्‍कूल अधिकारियों के खिलाफ लापरवाही (और संबंधित अपराधों का) केस दर्ज किया जा सकता है।

Children Safety Rights
bach‍chon kee suraksha aur parents ke kaanoonee adhikaar

कुछ मामलों में जुवेनाइल जस्टिस एक्‍ट (किशोर न्‍याय अधिनियम) भी लागू हो सकता है।
यहां कुछ उदाहरण हैं, जिसमें व्‍यक्ति लापरवाही के लिए स्‍कूल को जिम्‍मेदार ठहरा सकते हैं और जिसमें वे किसी विशेष अधिनियम के लिए जिम्‍मेदार नहीं हो सकते हैं।
द्य ऐसे मामलों में, जिनमें किसी स्‍कूल के खिलाफ आपराधिक लापरवाही साबित की जा सकती है, उनमें माता-पिता को पुलिस के पास जाकर एफआईआर दर्ज करानी चाहिए।
द्य जब कोई बच्‍चा शरारत करते हुए स्‍कूल की सीढ़ियों से गिरता है (जैसे कि सीढ़ियों को टापकर चढ़ना या उतरना) जो कि बहुत अच्‍छी स्थिति में हैं तो स्‍कूल जिम्‍मेदार नहीं है, लेकिन बच्‍चा ऐसी सीढ़ियों से गिरता है, जिन्‍हें मरम्‍मत की जरूरत है और अधिकारी इस बारे में जानते थे और इसकी मरम्‍मत नहीं कराई गई तो वे लापरवाही के लिए जिम्‍मेदार हैं।
द्य इसी प्रकार यदि स्कूल कैफेटेरिया ऐसा भोजन परोस रहा है, जो खाने के लिए अनुचित है तो स्‍कूल कानूनी रूप से जिम्‍मेदार है।
द्य स्‍कूल की तरफ से चलाई जा रही किसी स्‍कूल बस में कोई दुर्घटना होने पर स्‍कूल की जिम्‍मेदारी बनती है, लेकिन यदि माता-पिता द्वारा लगाये गए किसी निजी वाहन से ऐसी कोई दुर्घटना होती है तो स्‍कूल की कोई जिम्‍मेदारी नहीं होगी।

उपयुक्‍त मामलों में माता-पिता बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए राष्‍ट्रीय आयोग से संपर्क कर सकते हैं। आयोग ने शिक्षा के अधिकार अधिनियिम, 2009 के सेक्‍शन 31 के अंर्तगत आवश्‍यक कदम उठाना अनिवार्य किया है, जैसा कि बाल अधिकारों की रक्षा के लिए कमीशन, 2005 के सेक्‍शन 15 के अंर्तगत प्रदान किया गया है। आप राज्‍य-स्‍तर के कमीशन्‍स के पास भी जा सकते हैं।

स्‍कूल को अपने दायित्‍वों का पालन करने के निर्देश देने के लिए माता-पिता क्षेत्राधिकार अदालतों से हस्‍तक्षेप करने के लिए संपर्क कर सकते हैं। उपर्युक्त मामलों में अदालत स्‍कूलों को ऐसे निर्देश जारी कर सकती है, जो प्रभावी हों।
पॉक्सो अधिनियम, 2012 केवल बच्‍चों के साथ होने वाले यौन अपराधों के लिए ही है, लेकिन विस्‍तृत दृष्टिकोण में, उनकी सुरक्षा और निश्चिंतता सुनिश्चित करने के लिए एक व्‍यापक अधिनियम या कानून की आवश्‍यकता है।

बच्‍चों की सुरक्षा और निश्चिंतता सुनिश्चित करने के लिए विशेष अध्‍यादेश जारी किया जाना चाहिए। इसे माता-पिता के स्‍तर से ही शुरू किया जाना चाहिए, जिसमें बच्‍चों को बिना किसी हिचक और डर के अपने दिल की बात बोलने की आजादी दी गई हो।

इन सारे पलों में शिक्षकों की भागीदारी बहुत जरूरी है। अभिभावकों और विद्यालयों को मिलकर निगरानी थोड़ी बढ़ानी होगी। इस मामले में अभिभावकों को और सतर्क होना होगा। अभिभावक अपने बच्चों के साथ भागीदारी बढ़ाएं और इनसे बचने की कोशिश नहीं करें। हर विद्यालय को यह फिर से सोचना होगा कि उन्होंने बच्चों की सुरक्षा को लेकर क्या प्रोटोकॉल बनाया है और उसे किस स्तर पर लागू किया जा रहा है। अभिभावक स्कूलों में आकर सवाल पूछें। उन्हें खुद को आश्वस्त करना चाहिए।

स्‍कूल को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष सुरक्षा और निश्चिंतता के उपाय अपनाने चाहिए कि अगर कुछ भी होता है तो उसकी रिपोर्ट की जा सके। सख्‍त नियमों और प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए पॉलिसी का मसौदा तैयार किया जाना चाहिए। नई गाइडलाइन तैयार करनी होगी और उन्हें सख्ती से लागू भी करना होगा। औचक निरीक्षण की व्यवस्था हो और साथ ही अध्यापक, अभिभावक और विद्यालय अपनी प्रतिबद्धता दिखाएं। ठ्ठ

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