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काॅफी शाॅप - गृहलक्ष्मी कहानियां

तकरीबन पिछले डेढ़ घंटे से काॅफी शाॅप पर बैठा दीपांकर ,राही का इंतजार कर रहा था। इस दौरान वह तीन कप काॅफी भी पी चुका था लेकिन अब तक राही का कोई पता नहीं, वो अक्सर अपनी एक्टिंग क्लास से यहां पहुंचने में लेट हो जाती है
07:00 PM Apr 09, 2024 IST | Reena Yadav
काॅफी शाॅप   गृहलक्ष्मी कहानियां
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Hindi Story: परन्तु इतना लेट कभी नहीं हुई, फ़ोन भी नहीं उठा रही।दीपांकर थक कर एक और कप काॅफी के साथ चीज़ सेंडविच ऑर्डर कर राही के आने का इंतजार करने लगा।

      आज भी दीपांकर के स्मृति पटल पर अंकित है वह सुहानी घड़ी जब उसने पहली बार राही को देखा था।राही के काॅलेज कैम्पस में कदम रखते ही ऐसा लगा जैसे कोई पाउज़ बटन दब गया हो और जो जहां था वहीं रुक गया,सभी अपलक उसे ही निहारने लगे और राही… अपनी ही धुन में वहां से चली गई।

      जब से राही काॅलेज में आई थी हर कोई बस उसे ही रिझाने के न‌ए न‌ए पैंतरे आज़माने लगा था परन्तु सफलता अब तक किसी के हाथ नही लगी थी,तभी अचानक एक रोज़ लाइब्रेरी में राही को अपनी ओर आता देख दीपांकर के हाथ पैर कांपने लगे। लाइब्रेरी में मौजूद सभी उसे आंखें फाड़कर देखने लगे तभी वह दीपांकर के करीब आ कर बोली-

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      “हाय…. केन आई हैव अ फेवर प्लीज़ ”

       यह सुनते ही दीपांकर उठ खड़ा हुआ और बोला-

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       “चलिए लाइब्रेरी से बाहर चलतें है”

       उसके बाद दोनों काॅलेज केंटीन में आ गए।

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       वैसे तो दीपांकर काॅलेज का टाॅपर था। हमेशा वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल करता था परन्तु आज राही के समक्ष उसकी ज़बान लड़खड़ाने लगी और  वह हड़बड़ाते और घबराते हुए बोला-

      ” व्हाट केन आई डू फाॅर यू ”

      दीपांकर के ऐसा पूछते ही राही ने जिस  अदा से अंदाजेबयां की शुरूआत की, दीपांकर क्या उसके स्थान पर यदि कोई संत महात्मा भी होता तो वह भी अवश्य ही बहक जाता और उसकी तपस्या निश्चित रूप से भंग हो जाती।

      उस दिन के पश्चात दीपांकर अपने नोट्स के साथ राही का नोट्स भी तैयार करने लगा क्योंकि राही को एक दो क्लास के बाद एक्टिंग क्लास जाना होता और उसके बाकी के क्लास मिस हो जाते, लेकिन दीपांकर ने सब संभाल लिया आखिरकार वह काॅलेज का सबसे होनहार छात्र जो था।

      फिर क्या था… ? राही और दीपांकर में दोस्ती हो गई और दोनों रोज़ इस काॅफी शाॅप में मिलने लगे, जो शहर से दूर प्रकृति की गोद में जहां चारों ओर से खुला आसमान था। यहां छोटे छोटे हट बने हुए थे, जहां बैठ दोनों घंटों भविष्य की कल्पनाओं में खोए रहते।

      राही माॅडलिंग में अपना केरियर बनाना चाहती थी और दीपांकर यू.पी.एस.सी क्लियर कर प्रशासनिक सेवा में जाना चाहता था ।दोनों की राहें जुदा थी लेकिन उसके बावजूद दोनों साथ थे,यह दोस्ती कब प्यार में तब्दील हो गई इस बात का इल्म ही नही रहा।

     दिन पंख लगा कर उड़ने लगे और देखते ही देखते काॅलेज का अंतिम वर्ष भी आ गया और आज परीक्षा का आखिरी पेपर भी समाप्त हो गया।अचानक स्पीड से एक बड़ी कार काॅफी शाॅप के सामने आ कर रूकी जिससे दीपांकर की तंद्रा भंग हुई।

     यह स्पोर्टस कार रौनी की थी जो काॅलेज का सबसे रसूखदार और रईस लड़का था। उसके पिता की एडवरटाइज़िंग एवं माॅडलिंग कंपनी थी, तभी राही उस कार से उतरी और दीपांकर की ओर बड़े ही नज़ाकत से बढ़ने लगी।

     राही के करीब आते ही दीपांकर ने जैसे ही उसे अपनी बाहों के घेरे में लेना चाहा, राही ने उसे रोक दिया और अपनी अनामिका उंगली में पहनी अंगूठी जो दीपांकर और उसके प्रेम की निशानी थी, टेबल पर रखती हुई अपनी उसी चिर-परिचित अदा से बोली-

     “आज के बाद तुम फिर कभी इस काॅफी शाॅप में मेरा इंतजार मत करना क्योंकि अब मैं यहां कभी नहीं आऊंगी”

     इतना कह राही वहां से चली गई कुछ दूर जाने के पश्चात वह मुड़ी और दीपांकर की ओर देखती हुई विषैली मुस्कान के साथ कार में बैठ गई।दीपांकर उसे अपनी नम आंखों से ओझल होते हुए देखता रहा…..।

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