धुंध - गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Kahani: पूरी बाँहो का स्वैटर पहन, गले में स्कार्फ डालते हूए उन्होने अपनी खिड़की से बाहर की ओर झाँका,बाहर कुछ भी साफ-साफ दिखाई नही दे रहा था।आज फ़िजा में पूरी तरह से धुंध छाई हुई थी । कैलाश जी ने माँर्निग वॉक ना जाने का निर्णय लिया क्योंकि उनके लिए यह शहर नया था। सेवानिवृत्त होने के पश्चात कैलाश जी पहली बार आकाश और मिष्ठी के पास कानपुर से दिल्ली आए हुए थें, वैसे तो वे आकाश और मिष्ठी के पास आना नही चाहते थे लेकिन सेवानिवृत्त होने के बाद मिष्ठी ने जिद ही पकड़ ली कि वे उनके साथ चल कर रहें इस बार उनके पास कोई बहाना भी ना था ।पिछले एक वर्ष से कैलाश जी अपनी धर्मपत्नी अंबिका की मृत्यु के पश्चात कानपुर में अकेले ही रह रहे थें।इस बीच आकाश और मिष्ठी ने कई बार उन्हें दिल्ली आने का मनुहार किया लेकिन वे हर बार अपनी नौकरी का बहाना बना टाल जाते।
“कभी -कभी अपने मन का ना होते हुए भी दूसरो की खुशी के लिए कुछ काम कर लेने चाहिए अच्छा होता है और फिर ये तो हमारे अपने बच्चे हैं ।” अंबिका की यह बात याद आते ही कैलाश जी दिल्ली आने के लिए तैयार हो गए ।
आकाश की शादी के बाद से ही कैलाश जी थोड़े खिंचे खिंचे और आकाश से नाराज चल रहे थे लेकिन वे कभी किसी से कुछ नहीं कहते । आकाश और मिष्ठी की शादी के लिए भी वे कहाँ राजी थे, वे तो बस अंबिका के कहने पर इस शादी के लिए तैयार हूए थे । अंबिका ने कहा था -” कैलाश… आप आकाश और मिष्ठी की शादी की सहमति दे दो।आकाश की खुशी में ही हमारी खुशी है।मिष्ठी से शादी कर आकाश खुश रहेगा, हमें और क्या चाहिए ।
प्रतिउत्तर में कैलाश जी ने अपने स्वर में झुंझलाहट और नाराजगी जताते हुए कहा था – “ये तुम कह रही हो अंबिका यह जानते हुए कि वे लोग बंगाल के टिपिकल बंगाली है जिनकी सुबह अण्डा ,मास ,मछली से शुरू होती है और हम यू.पी. के जनेऊधारी बह्माण”।
तब अंबिका बड़े प्यार से कैलाश जी के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए और अपने सिर को उनके कांधे पर रखते हुए शांत भाव से बोली-
” जाति-धर्म और जात -पात में क्या रखा है। मिष्ठी बहुत ही प्यारी बच्ची है बिल्कुल बंगाल के मीठे रसगुल्ले की तरह और फिर वो हमारे आकाश की पसंद है। मुझे पूर्ण विश्वास है आकाश और हमारे परिवार का मिष्ठी पूरा-पूरा ख्याल रखेगी”।
ना चाहते हुए भी कैलाश जी ने अंबिका की खुशी के लिए इस रिश्ते को मंजूरी दे दी थी ।
कैलाश जी की आज दिल्ली में आज पहली सुबह थी।धुंध की वजह से वे मॉरनिंग वॉक नही गए तो उन्होने सोचा चलो चल के गैलरी में बैठ अखबार ही पढ़ लिया जाए ।गैलरी में जाते ही कैलाश जी की आँखों में चमक सी आ गई और होठो में मुस्कान गैलरी में ठीक वैसी ही आराम कुर्सी रखी थी जैसा उन्हें अखबार पढते समय पसंद है । उन्होने जब गैलरी में नजर दौड़ाई तो उनका मन और प्रफुल्लित हो उठा ।उनके पसंद के रंग बिरंगे खूबसूरत मौसमी फूल गैलरी के गमलों से झांक रहे थे ।
कैलाश जी आराम से…….. आराम कुर्सी पर बैठ अखबार पढ़ना अभी शुरू ही किये थे कि चिर-परिचत खनकती आवाज़ के साथ मीठी सी मुस्कान लिए मिष्ठी टेबल पर चाय रखते हुए बोली –
” गुड मॉनिग पापा जी यह लीजिए आप की अदरक और इलायची वाली गर्मा – गर्म चाय मुझे पता है आप को चाय के बगैर अखबार पढ़ना अच्छा नहीं लगता”। कैलाश जी मंत्र मुग्ध हो कर थोड़ी देर मिष्ठी की ओर देखते रहे ।वे उससे कैसे कहे की उन्होने सुबह की चाय अंबिका के शांत होने के साथ ही छोड़ दी है । वे कुछ कहते इस से पहले मिष्ठी बोली –
” पापा जी आप आराम से……..अखबार पढ़िए मैं आप के लिए ब्रेकफास्ट रेडी करती हूँ।आप के पसंद की आलू की सब्जी, पूड़ी और टमाटर की मीठी चटनी, इतना कह मिष्ठी वहाँ से चली गई ।
चाय पीते हुए कैलाश जी को एहसास हूआ फिज़ा में फैली धुंध धीरे -धीरे छट रही है आसमाँ में लालिमा लिए सूरज की सुनहरी किरणें गैलरी पर पड़ने लगी है ।बाहर के नज़ारे भी अब थोड़े-थोड़े नजर आने लगे हैं ।फूलों की पंखुड़ियों एवं पत्तियों पर पड़ी ओस की बूँदे चमकने लगी है । कैलाश जी के मन में आकाश और मिष्ठी के लिए छाई नाराजगी की धुंध अब धीरे-धीरे छटने लगी है ।