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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय

02:00 PM Nov 28, 2023 IST | Reena Yadav
डॉ  सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय
Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के महान विचारकों, दार्शनिकों, शिक्षाविदों व विद्वानों में से एक गिने जाते हैं। प्रतिवर्ष 5 सिंतबर को, उनका जन्म दिवस, ‘अध्यापक दिवस’के रूप में मनाया जाता है। वे 1952 से 1962 तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति रहे। 1962 में वे भारत के दूसरे राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए।

डॉ. एस. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के ‘तिरुत्ताणि’नामक गांव (उत्तर-पश्चिम मद्रास (अब चेन्नई) से 84 किमी दूर) में हुआ। वे एक निर्धन तेलुगू ब्राह्मण परिवार से थे। पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी तथा मां का नाम सीताम्मा था।

उनके पिता एक स्थानीय जमींदार के पास कर संग्रह अधिकारी थे।

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राधाकृष्णन जी की प्रारंभिक शिक्षा तिरुत्ताणि के हाईस्कूल में हुई। माता-पिता ने उनकी प्रतिभा पहचानी व अच्छी-से-अच्छी शिक्षा दिलवाने का प्रयत्न किया। 1896 में, उन्हें तिरुपति के हरमंसवर्ग इवेंजिलिकल लूथरल मिशन स्कूल में भेजा गया।

Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

वे एक मेधवी छात्र थे। उन्होंने छात्र जीवन में अनेक छात्रवृत्तियां व पुरस्कार जीते। फिर उन्होंने वेल्लौर के वूरहीज़ कॉलेज में दाखिला लिया। इसके बाद मद्रास क्रिस्चयन कॉलेज गए। 1906 में, उन्होंने वहां से दर्शन में स्नातकोत्तर की उपाधि लीं।

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उनके परिवार में वित्तीय कठिनाइयां थीं। उन्होंने स्वेच्छा से दर्शन को अपना विषय नहीं चुना। उन्हें दर्शन की सभी पुस्तकें एक रिश्ते के बड़े भाई से मिल गई थीं, जिसने उसी कॉलेज से पढ़ाई की थी। अतः उन्होंने वही विषय पढ़ने का निश्चय किया। बाद में यही विषय उनका मनपसंद बन गया व जीवन में यश प्राप्ति में भी सहायक बना।

16 वर्ष की आयु में उनका विवाह दूर के रिश्ते की बहन शिवकामु से हो गया। उनके यहां पांच पुत्रियों व एक पुत्र ने जन्म लिया।

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Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

1909 में, वे मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शन विभाग में नियुक्त किए गए। इसके बाद 1918 में उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शन का प्रोफेसर नियुक्त किया गया।

उन्होंने दर्शन पत्रिकाओं में अनेक लेख लिखे। वे रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षाओं से विशेष रूप से प्रभावित थे। उनकी पहली पुस्तक थी ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन’। फिर उन्होंने दूसरी पुस्तक लिखीं, ‘समकालीन दर्शन में धर्म का साम्राज्य।’

Radhakrishnan's unforgettable contribution
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वर्ष 1921 में, उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में, मानसिक व नैतिक विज्ञान विभाग में दर्शन प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति मिली। उन्होंने 1926 में, ब्रिटिश साम्राज्य में यूनीवर्सिटी कांग्रेस में, कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया। उन्होंने उसी वर्ष हावर्ड विश्वविद्यालय में, दर्शन के अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया।

1929 में, उन्होंने ऑक्सफोर्ड के हैरिस मैनचेस्टर कॉलेज से व्याख्यान देने का निमंत्रण आया। उनका व्याख्यान पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ, ‘जीवन का आदर्शवादी दृष्टिकोण’।

शीघ्र ही उन्हें हैरिस मैनचेस्टर कॉलेज में प्रिंसीपल पद के लिए बुलावा आया। इस दौरान उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण व्याख्यान दिए। उन्होंने पूर्व व पश्चिम के लिए एक सेतु का कार्य किया व लोगों को सभी परंपराओं की दर्शन पद्धतियों का विवरण दिया।

Radhakrishnan's unforgettable contribution
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डॉ. एस. राधाकृष्णन 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे। वर्ष 1936 में वे ऑल सोल्स कॉलेज के फैलो चुने गए। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने भी उनका सम्मान किया।

1939 में, पंडित मदन मोहन मालवीय ने उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) के वाइस चांसलर का पद सौंपा। वे जनवरी 1948 तक इस पद पर कार्यरत रहे।

1947 में देश आजाद होने के बाद राधाकृष्णन जी ने यूनेस्को में देश का प्रतिनिधित्व किया। फिर वे सोवियत यूनियन में भारतीय राजदूत नियुक्त किए गए। वह भारतीय संविधान-सभा के लिए भी चुने गए थे। 1952 में एस. राधाकृष्णन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति बने। देश का उपराष्ट्रपति पद संभालने के बाद वे वर्ष 1962 में भारत के राष्ट्रपति बने व 1967 तक इस सम्मानीय पद को संभाला।

Radhakrishnan's unforgettable contribution
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उनके राष्ट्रपति बनने का समाचार पाकर सबको बहुत प्रसन्नता हुई। वे विश्व के महान दार्शनिकों में से एक थे।

“यह दर्शन का सम्मान है कि राधाकृष्णन जी को राष्ट्रपति पद सौंपा गया। एक दार्शनिक होने के नाते मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई। प्लेटो ने भी दार्शनिकों को राजा बनाने की अनुशंसा की है और यह भारत के नाम श्रद्धांजलि है कि उसने राष्ट्रपति पद के लिए एक दार्शनिक को चुना।”

डॉ. राधाकृष्णन राष्ट्रपति पद पर भी, वैसे ही विनयी बने रहे। उनके कार्यकाल में, समाज के सभी वर्गों के लिए राष्ट्रपति भवन के द्वार खुले थे। वे प्रत्येक की समस्या ध्यान से सुनते व उसे हल करने का हरसंभव प्रयास करते।

Radhakrishnan's unforgettable contribution
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उन्होंने भारतीय परंपराओं व संस्कृति पर अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। भारतीय परंपराओं, शिक्षाओं व हिंदुत्व का पश्चिमी जगत में प्रचार-प्रसार किया।

उन्हें इस उल्लेखनीय सेवा के लिए अनेक पुरस्कार व सम्मान दिए गए। 1931 में नाईटहुड की उपाधि दी गई। 1954 में ‘भारत रत्न’व 1963 में ‘ऑर्डर ऑफ मैरिट’ का सम्मान मिला।

1961 में उन्हें जर्मन बुक ट्रेड से ‘शांति’पुरस्कार मिला। उन्होंने 1975 में ‘टैंपलेटन’पुरस्कार भी पाया। उन्होंने इसकी सारी धनराशि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को दान कर दीं। 1989 में, विश्वविद्यालय ने उनकी स्मृति में ‘डॉ. एस. राधाकृष्णन छात्रवृत्ति’आरंभ की।

पूरे विश्व के अनेक लेखक व शिक्षाविद् उनके दर्शन से प्रभावित रहे। उनके जीवन व आदर्शों पर कुछ पुस्तकें भी लिखी गई हैं।

Radhakrishnan's unforgettable contribution
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डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था- “अध्यापक को देश का सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क होना चाहिए।” उनका कहना था कि शिक्षकों को छात्रों को पढ़ाने के साथ-साथ उनका स्नेह भी अर्जित करना चाहिए। वे मानते थे कि सम्मान कमाना पड़ता है, इसे किसी से मांगा नहीं जा सकता।

डॉ. राधाकृष्णन ने न केवल छात्रों को ज्ञान दिया बल्कि अपनी अनूठी अध्यापनशैली के कारण उनका स्नेह व सम्मान भी पाया। वे छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे।

Teacher's Day- Dr. Radhakrishnanbirthday of
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जब वे मैसूर विश्वविद्यालय छोड़कर जा रहे थे तो छात्रों ने उन्हें भावभीनी विदाई दी। उन्हें फूलों से लदी गाड़ी में बिठाकर रेलवे-स्टेशन ले जाया गया, जिसे छात्र खींच रहे थे।

उनका जन्म दिवस ‘अध्यापक दिवस’ में कैसे बदला, इस विषय में एक रोचक प्रसंग कहा जाता है। जब वे भारत के राष्ट्रपति बने तो कुछ छात्रों ने उनका जन्म दिवस मनाने की अनुमति मांगी।

उनका मानना था कि अध्यापक छात्रों व देश का भविष्य रचने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उन्होंने कहा : “मेरा जन्मदिन मनाने से कहीं बेहतर होगा कि तुम इस दिन को अध्यापक दिवस के रूप में मनाओ। यह पूरे संसार के शिक्षकों के लिए समर्पण होगा।”

Teacher's Day- Dr. Radhakrishnanbirthday of
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तब से प्रतिवर्ष 5 सितंबर को डॉ. राधाकृष्णन का जन्म दिवस ‘अध्यापक दिवस’के रूप में मनाया जाता है। सभी स्कूलों, कॉलेजों व संस्थानों में, इस महापुरुष व अन्य अध्यापकों के सम्मान में यह दिन मनाया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन अध्यापन को एक पवित्र व नेक पेशा मानते थे। उनका मानना था कि किसी भी देश की प्रगति उसके अध्यापकों पर निर्भर करती है। अध्यापक अपने छात्रों को शिक्षा देने के लिए पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं।

उन्होंने एक बार कहा था कि “केवल स्कूली पढ़ाई ही शिक्षा नहीं कहलाती। शिक्षा वही है, जो किसी छात्र को एक अच्छा व उत्तरदायी नागरिक बना सके ताकि वह राष्ट्र की प्रगति में अपना योगदान दे पाए।”

Teacher's Day- Dr. Radhakrishnanbirthday of
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उन्होंने 1967 में सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्ति ले ली। उन्होंने मद्रास स्थित आवास में, जीवन के कुछ अंतिम वर्ष बिताए। 17 अप्रैल 1975 को 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

उनकी मृत्यु देश के लिए एक बड़ी हानि थी। उनकी मृत्यु से दर्शन व शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा शून्य आ गया था। वे आज भी अपने उल्लेखनीय कार्यों के लिए पूरे विश्व में स्मरण किए जाते हैं।

उनका जन्म दिवस, पूरे भारत में, बड़े ही उत्साह व उमंग से अध्यापक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

last years of his life
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उन्होंने शिक्षा व लोगों के सशक्तीकरण के लिए पूरा जीवन लगा दिया। वे भारत को शिक्षा के मजबूत आधार पर खड़ा देखना चाहते थे। शिक्षा को वे एक शक्तिशाली साधन मानते थे।

हम डॉ. एस. राधाकृष्णन के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि उन्होंने कितने कड़े प्रयासों से भारतीय शिक्षा पद्धति की नींव को बनाए रखा व उसे मजबूती दी।

last years of his life
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