कान में दर्द को नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी: Ear Infection Reasons
Ear Infection Reasons: कान हमारे शरीर का अहम अंग हैं जिनके जरिये न केवल हम सुन पाते हैं , बल्कि अपने विचारों का आदान-प्रदान कर समाज से जुड़ते भी हैं। लेकिन कई बार इनमें इंफेक्शन होने की वजह से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। कुछ लोगों को आंशिक तौर पर सुनने में समस्या होती है, या फिर कुछ शब्दों को सुनने में कष्ट होता है। कई बार लोग इन समस्याओं को नजरअंदाज कर देते हैं और उपचार कराने से कतराते हैं। ऐसे में उनका इंफेक्शन बढ़ जाता है और उनकी सुनने क्षमता कम हो जाती है या व्यक्ति बहरा हो जाता है। अगर समय रहते इलाज करा लिया जाए तो इस समस्या से बचा जा सकता है।
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Ear Infection Reasons:क्यों होता है कान में इंफेक्शन
कान का इंफेक्शन मूलतः कान के अंदर पानी जाने के कारण होता है। कान में पानी कान या फिर नाक के जरिये पहुंचता है। नहाते और स्वीमिंग करते हुए असावधानी बरतने के कारण ही कान में पानी जाता है। पानी सबसे पहले कान के ‘एक्सटर्नल ऑडिट कैनाल’ तक पहुंचता है। ऐसे में अगर पानी लम्बे वक्त तक रह जाए तो कान में ओटोमाईकोसिस नामक फंगल पनपने लगता है, जो बाद में इंफेक्शन बन जाता है। यही इंफेक्शन मिडिल ईयर तक पहुंच कर ईयर-ड्रम में छेद कर देता है। इसे सुपरेटिव ओटिटिस मीडिया इंफेक्शन कहा जाता है। जिसकी वजह से कान में दर्द रहने लगता है और ‘एक्सटर्नल ऑडिट कैनाल’ से पस निकलने लगता है।
सर्दी-जुकाम के कारण भी होता है इंफेक्शन
कान के इंफेक्शन लंबे समय तक सर्दी-जुकाम रहने से भी होता है। सर्दी-जुकाम में अक्सर नाक बंद (ब्लाॅक) रहती है और सांस लेने में दिक्कत होती है। सांस लेने के लिए हम आमतौर पर नोज ब्लो करते हैं यानी नाक से तेजी से हवा अंदर खींचते हैं और फिर बाहर छोड़ते हैं। नाक ब्लो करने से निकलने वाला पानी नाक और कान के मध्य भाग को जोडने वाली यूस्टेकियन ट्यूब में चला जाता है। ट्यूब को ब्लाॅक कर पस या इंफेक्शन का रूप ले लेता है।
कई बार यह पस या इंफेक्शन साउंड को ब्रेन तक पहुंचाने वाली मिडल ईयर की हड्डियों (मैलियस, इनकस या स्टेपीस बोन) में भी चला जाता है। समुचित उपचार न किए जाने पर पस हड्डियों को भी गला सकता है। ऐसे में बाहर से आने वाली साउंड ब्रेन तक ठीक तरह से नहीं पहुंच पाती। साउंड कंडक्ट न होने के कारण ठीक तरह से सुनाई नहीं देता। इसे ओटोजेनिक इंफेक्शन कहते हैं। यह छेद साउंड को इनर ईयर तक पहुचंने में बाधा डालता है जिससे व्यक्ति की सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
ईयर ड्रम में छेद होने से बाॅडी में एक नया रास्ता खुल जाता है। जिसे लोग इग्नोर करते हैं और समुचित इलाज नहीं कराते। कभी-कभी कान में अत्यधिक मात्रा में वैक्स बनने लगती है। कान की सफाई के लिए कुछ लोग तेल वगैरह भी डालते हैं जिससे कान में इंफेक्शन हो सकता है या फंगस लग जाती है। और ईयर बड से साफ करने की कोशिश में वैक्स कान के और अंदर तक चली जाती है। वैक्स साफ न होने के कारण इंफेक्शन हो जाता है या पस पड़ जाती है। कानो में सीटी जैसी आवाजें सुनाई देती हैं, दर्द रहता है और पस बाहर निकलने लगती है। इससे कान में पार्शल या आंशिक ब्लाॅकेज आ जाती है जिससे श्रवण क्षमता पर असर पड़ता है।
क्या है लक्षण
कान में इंफेक्शन होने पर कान के अंदरूनी भाग में सूजन आ जाती है। इसका अंदाजा कान के पीछे कनपटी में आई सूजन से लगाया जा सकता है। इसके साथ ही कान में जलन होती है और लगातार दर्द रहता है। कान का पर्दा लाल हो जाता है, कान में फ्ल्यूड पस बन जाती है जो कभी-कभी बाहर भी निकलने लगता है। मिडिल ईयर ब्लाॅक होने से सुनने की क्षमता कम हो जाती है, लेकिन अंदर टप-टप की आवाज आती है। इंफेक्शन होने से व्यक्ति को बुखार भी हो सकता है और डाइट ठीक न रहने की वजह से चिड़चिड़ापन और कमजोरी भी आ सकती है।
क्या है इलाज
कान में किसी भी तरह की समस्या को इग्नोर न करते हुए ईएनटी डाॅक्टर को तुरंत कसंल्ट करना चाहिए। डाॅक्टर ओटोस्कोप इंस्ट्रूमेंट से कान के अंदरूनी भाग की जांच कर इंफेक्शन का पता लगाते हैं और ओटोमाइकोटिक प्लग लगा कर इंफेक्शन को साफ करते हैं। कान में डालने के लिए एंटी फंगल या एंटी बैक्टीरियल ईयर-ड्राॅप्स और एंटीबाॅयोटिक दवाइयां दी जाती हैं। दर्द ज्यादा हो तो उन्हें घर पर हीट-पैड थैरेपी करने की सलाह भी देते हैं। इनसे कान के अंदर पहुंचा पानी और फ्ल्यूड पस धीरे-धीरे सूख जाती है और इंफेक्शन एक-दो सप्ताह में ठीक हो जाता है।
ईयर ड्रम या पर्दे में हुए छेद और साउंड कैरी करने वाली हड्डियों को आँसुलोप्लास्टी माइक्रोस्कोपिक सर्जरी- मायरिंगोप्लास्टी या टिम्पैनोप्लास्टी से रिपेयर किया जाता है। शरीर के विभिन्न अंगों, मसल्स के टिशूज या कान के पीछे कार्टिलेज साॅफ्ट बोन से नया पर्दा बनाकर लगाया जाता है। या फिर सिलिकाॅन, टाइटेनियन, टैफलाॅन की रिप्लेसमेंट टिशूज की बोन्स तराश कर आर्टिफिशिल रिप्लेसमेंट लगाया जाता है।
सावधानी है जरूरी
- कान के इंफेक्शन से बचने के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि पानी कान में न जाए। अगर थोड़ा-बहुत पानी चला भी गया है तो उसे नारियल के तेल या वेस्लीन लगी ईयर-बड से हल्के हाथों से साफ करें। स्विमिंग करते हुए ईयर-प्लग और कैप जरूर पहनें।
- सर्दी-जुकाम होने पर जहां तक संभव हो, नाक जोर से ब्लो न करें।
- जब भी सर्दी-जुकाम हो और कान में जरा सा भी दर्द हो रहा है, तो इग्नोर न कर ईएनटी सर्जन को फौरन दिखाएं।
- इंफेक्शन की वजह से कान से पस बाहर आने को इग्नोर नही करना चाहिए। ईएनटी डाॅक्टर की निगरानी में पस सूखने तक और ईयर ड्रम पूरा ठीक होने तक इलाज कराएं।
- कान में वैक्स साफ करने के लिए ईयर बड या पिन का इस्तेमाल करना या खाने का तेल डालना सरासर गलत है। यह वैक्स जबड़े से खाना चबाने के दौरान अपने आप बाहर आ जाती है। डेली रूटीन में नहाते वक्त कान को उंगली से साफ कर लेना ही काफी है। जरूरी हो तो वैक्स नरम करने के लिए हफ्ते में एकाध बार एंटी फंगल या एंटी बैक्टीरियल ड्राप्स या दवाई डालना फायदेमंद है। अगर वैक्स ज्यादा महसूस हो रही है तो ईएनटी डाॅक्टर को कंसल्ट करना चाहिए।
- एयर ट्रेवल करने से पहले ध्यान रखें कि सर्दी-जुकाम होने पर या तुरंत बाद एयर ट्रेवल न करें। ऐसे में कान में दर्द होने की संभावना रहती है और कान का पर्दा फट सकता है।
(बी एल कपूर सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, दिल्ली की ऑटोलर्रिजोलाॅजिस्ट डाॅक्टर नेहा सूद से की गई बातचीत के आधार पर )