पुनर्जागरण का पर्व है ईस्टर: Easter Festival
Easter Festival: ईस्टर ईसाइयों का एक प्रमुख पर्व है। माना जाता है इस दिन ईसा मसीह का पुर्नजन्म हुआ था। इस बार यह पर्व 21 अप्रैल को है। आइए जानें पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें।
सारे नगर में शोक छाया था। यीशु को मृत्युदंड दिया जा चुका था। परमेश्वर का पुत्र सभी के हिस्से की पीड़ा व दुख स्वयं ही सह गया। परिस्थितियां इतनी विकट थीं कि उनसे अपना संबंध दर्शाने वाला भी निरापद न था। तब अरमतियाह नामक शिष्य ने तत्कालीन राज्यपाल पीलातुस से निवेदन किया- क्या मैं यीशु के शव को ले जाऊं।
उसे शव ले जाने की आज्ञा दे दी गई। उसने शव को कफन में लपेटा व नियत स्थान पर ले जाकर दफना दिया। कब्र के द्वार पर भारी पत्थर लुढ़का दिया गया।
यीशु ने अपनी मृत्यु से पूर्व कहा था, मैं अपनी मृत्यु के तीन दिन पश्चात् जी उठूंगा।
अब पुरोहित वर्ग को चिंता सताने लगी कि कहीं शिष्य अपने यीशु के मृत शरीर को चुराकर यही घोषणा न कर दे कि वे पुनर्जीवित हो उठे, अत कब्र के बाहर मुहर लगवा कर पहरेदार नियुक्त कर दिए गए। रक्षक तो तैनात थे किंतु पुनर्जागरण का समय आया तो स्वर्ग के दूत स्वयं पधारे। कब्र का भारी पत्थर लुढ़क गया और पहरेदार बेसुध से हो गए।
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मरियम व मगदलीनी उनकी समाधि पर सुगंधित द्रव्यों का लेप लगाने पहुंची तो कब्र का हटा पत्थर देख कर हतप्रभ हो उठीं। यीशु के स्थान पर श्वेत वस्त्रों से सुसज्जित देवदूतों ने उनका स्वागत किया व मीठे स्वर में बोले। ईसा अब यहां नहीं हैं। वे जीवित हो उठे हैं। मृतकों के बीच जीवित को मत ढूंढ़ों।
मरियम विलाप करने लगी व प्रभु को पुकारने लगी तो उसने उनके साक्षात् दर्शन पाए। प्रभु लौट आए थे। तत्पश्चात् यीशु ने अनेक लोगों को दर्शन दिए शिष्यों के मृत प्राय जीवन में नवचेतना का संचार हुआ और वे ईसा मसीह के नाम से प्रचारित हुए। जिस स्त्री ने जीवित ईसा के प्रथम दर्शन पाए वह वसंत काल की 'देवी ईओस्टरÓ थीं। उसी ने सबको प्रभु का संदेश सुनाया। वही दिन कालांतर में 'ईस्टरÓ कहलाने लगा।
उस दिन के पश्चात् ईसा ने चालीस दिन तक शिष्यों को वचनामृत पान करवाया। अनेक यहूदी भी ईसाई बनने लगे। उन्होंने भी पहाड़ी प्रवचन के धन्यवचनों को माना।
- धन्य हैं वे निर्धन जिन्हें स्वर्ग का राज्य मिलेगा।
- धन्य हैं वे दयावान जिन्हें ईश्वर का राज्य मिलेगा।
- धन्य हैं वे शांत करने वाले जो ईश्वर पुत्र कहलाएंगें।
- धन्य हैं वे जो विनम्र हैं क्योंकि वे ही पृथ्वी के अधिकारी हैं।
- धन्य हैं वे जिन्हें धर्म के नाम पर सताया जाता है, वे स्वर्ग का राज्य पाएंगें।
- धन्य हैं वे जिनका निर्मल हृदय है क्योंकि वे ही ईश्वर को देख पाएंगें।
- धन्य हो तुम जो मेरे लिए इतना कष्ट सहते हो, तुम्हें भी स्वर्ग में सब कुछ प्राप्त होगा। ईस्टर के पर्व ने भले ही क्रिसमस जितनी ख्याति न पाई हो परंतु इससे उसके महात्म्य में कोई कमी नहीं आई। इस त्योहार को भी ईसाई पूर्ण श्रद्धा व उत्साह से मनाते हैं। इस पर्व की तिथि सदा एक नहीं रहती। मार्च के तीसरे सप्ताह में पूर्णिमा के पश्चात् पहले रविवार को ईस्टर मनाया जाता है। गिरिजाघरों में उपासना की जाती है व भव्य जुलूस निकाले जाते हैं। ईस्टर से पूर्व के चालीस दिन उपवास काल कहलाते हैं। इन दिनों खान-पान का संयम बरता जाता है व श्रद्धालुगण अपनी इच्छानुसार व्रत भी रखते हैं। यह समय उस बुधवार से आरंभ होता है जिसे 'राख का बुधवारÓ कहते हैं।
ईस्टर पर्व पर ईसा के पुनर्जागरण के प्रतीक रूप भी बनाए जाते हैं। उबले अंडे सुंदर चित्रकारी अथवा नाना प्रकार के उपायों से सुसज्जित किए जाते हैं जिन्हें बच्चों में बांटा जाता है।
ईसाई धर्मावलंबी अपने ईस्ट मित्रों को दावतें देते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के सुस्वादु व्यंजनों के बीच केक अवश्य रहता है। बाजार में बिकने वाले ग्रीटिंग कार्ड्स पर भी प्राय ईस्टर एग को ही दर्शाया जाता है।
गिरजाघरों में इस दिन विशेष रूप से प्रवचन दिए जाते हैं व प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं। ईसाईयों की मान्यता है कि प्रभु ईसा ही उन्हें प्रत्येक दुख व कष्ट में संबल प्रदान करते हैं।