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औरत, मां होने की रूढ़िवादी सोच पर जानें क्या कहती हैं फाल्गुनी वसावड़ा: Falguni Vasavada

02:35 PM May 13, 2023 IST | Manisha Jain
औरत  मां होने की रूढ़िवादी सोच पर जानें क्या कहती हैं फाल्गुनी वसावड़ा  falguni vasavada
Falguni Vasavada
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Falguni Vasavada: अरे…अपने बारे में पहले सोच रही है…अपने बच्चे को घर पर छोड़कर ऑफिस जा रही है…मां बन गई है फिर भी इसे अपने करियर की पड़ी है…इसे खाना बनाना नहीं आता है…ये कैसी मां है…ये अच्छी मां तो बिल्कुल नहीं है।

हमारे समाज में 'गुड मदर' यानी की अच्छी मां को उम्मीदों के बोझ तले दबा दिया गया है। क्या मां का मां होना काफी नहीं है? क्यों मां के लिए खुद को सबसे पीछे रखना जरूरी है? अगर अपने बच्चों को खाता देख मां का पेट भर जाए तो वह अच्छी मां है लेकिन अगर वह कभी अपनी पसंद का खाना बनाकर खाने लगे तो उसे गिल्ट में ही डाल दिया जाता है।

अगर कोई औरत अपनी मर्जी से मां नहीं बनना चाहती है या फिर किसी और वजह के चलते वह मां ना बनने का फैसला लेती है तो उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए जाते है। आखिर क्यों? इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने के तहत आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा से, जो मदरहुड की परिभाषा को बदल रही हैं।

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डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा ने मदरहुड गिल्ट, मां बनने के बाद करियर में आने वाले बदलावों, किसी औरत के मां न बनने के फैसले और भी इससे जुड़े कई पहलुओं पर बात की। डॉक्टर फाल्गुनी सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर , TedX स्पीकर , डबल गोल्ड मेडलिस्ट हैं, दो दशकों से लेक्चरर हैं और एक बेमिसाल महिला और आजकल MICA अहमदाबाद में लेक्चरर हैं।

ये स्टीरियोटाइप्स बदलने की जरूरत है

Falguni Vasavada
Falguni Vasavada Thoughts

डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा ने कहा कि "माँ के बारे में हमारी फिल्में हों, टीवी हो या सोसाइटी, सभी जगह यही धारणा है कि मां को खुद को पीछे रखना चाहिए, जो कि गलत है। फिल्मों में तो वही दिखाया जाता है जो असल में समाज में हो रहा है। जिस तरह से जेंडर के आधार पर सभी की भूमिकाएं बांट दी गई थी, महिलाएं घर संभालेंगी, पुरुष बाहर जाकर पैसा कमाएंगे, वैसे ही एक मां के लिए यही माना जाता है कि उसे खुद को सबसे पीछे रखना चाहिए। अगर कोई औरत 'मां' है तो उसके दोस्त नहीं हो सकते हैं, उसे अपने बच्चों का पेट पहले भरना चाहिए, इस तरह की स्टीरियोटाइप्स आज भी चली आ रही हैं। ये स्टीरियोटाइप्स बदलने की जरूरत है क्योंकि असल में यही सबसे बड़ी प्रॉब्लम है।

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मां को देवी की पदवी दी गई है, लेकिन उसके बदले जो जरूरत से ज्यादा उम्मीदें एक मां से की जाती हैं जैसे कि एक मां कभी थक नहीं सकती है, कभी आराम नहीं कर सकती है। एक तरह से यह जो छलावा है मां के साथ, क्या ये कहीं तक भी जायज है, क्योंकि मां भी उसी से बनी है, जिससे भगवान ने पिता या बच्चों को बनाया है।

मां को देवी या सुपर ह्यूमन बनने की जरूरत नहीं

घर में जैसे बाकी इंसान हैं, उन्हीं की तरह मां भी एक इंसान है, सबसे पहले इस बात तो समझना जरूरी है। मां भी एक इंसान है जिसे 'सांस' लेने की जरूरत है, खाने की जरूरत है। साथ ही उससे भी गलतियां हो सकती हैं और हो सकता है कि उसे भी कुछ चीजें ना आती हों। किसी भी मां को सब कुछ पता हो यह जरूरी नहीं है। वह भी सीख रही है। उसे भी गलतियां करने का हक है। वह पहली बार मां बनी है, यह सफर उसके लिए भी नया है। मां को सब कुछ आना चाहिए, सब पता होना चाहिए, उससे कोई गलती नहीं होनी चाहिए, ये जो स्टैंडर्ड सोसाइटी ने सेट कर दिए हैं उन्हें अगर 2023 में चैलेंज नहीं किया जाएगा तो कब किया जाएगा? मां होने का मतलब यह नहीं है कि आपको खाना बनाना आना चाहिए,आपको सफाई करना चाहिए, ये लाइफ स्किल्स हैं ये सबको आने चाहिए। सिर्फ़ मां को क्यों?

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यह गिल्ट क्यों होता है हर माँ में?

डॉक्टर फाल्गुनी कहती है कि महिलाओं में किसी भी विटामिन या न्यूट्रिशन की कमी हो सकती है लेकिन अगर गिल्ट की मात्रा को चेक करना संभव होता तो वो जरूरत से बहुत ज्यादा निकलेगी और डॉक्टर आपको इस बात की सलाह देंगे कि उसे कैसे कम किया जाए? पहले यह समझना जरूरी है कि यह गिल्ट क्यों होता है…इसके पीछे वजह ये है कि बचपन से हमने अपनी मां को , दादी को, नानी को या घर की और महिलाओं को घर के हर काम के लिए भागते हुए देखा है। अगर अचार का सीजन चल रहा है तो वो अचार डालेंगी, चिप्स बनाएंगी, पापड़ बनाएंगी। आपने हमेशा भागती दौड़ती मां ही देखी है|

कभी आराम करती हुई मां नहीं देखी है। इसी वजह से हम सभी के मन में और खासकर जो महिलाएं नई मां बनती हैं उनके मन में मां की एक छवि बन गई है और जब भी वह उस छवि से थोड़ा भी अलग हटती हैं तो गिल्ट महसूस होता है। मां के ऊपर जो परफेक्ट होने का प्रेशर है जो अपने बच्चे को , परिवार को अकेले संभालने का प्रेशर है, उसी की वजह से ये गिल्ट है। अगर किसी नई मां को विदेश में नौकरी मिल जाती है तो सब उससे यही सवाल पूछेंगे कि बच्चे को किस के भरोसे छोड़कर जा रही हो? बच्चे की टेक-केयर की जब बात आती है तो उसमें मां और पापा के रोल को बहुत अलग कर दिया गया है। इस अपराधबोध को कम करने के लिए हम सभी को काम करना होगा।

फाइनेंशियली किसी पर निर्भर ना होना जरुरी है

इस पूरी आइडियोलॉजी को हमें कहीं पर ब्रेक करना होगा। किसी भी औरत के सैटल होने का मतलब शादी बिल्कुल नहीं है बल्कि फाइनेंशियली किसी पर निर्भर ना होना है। अगर ये कहा जाता है कि मां बने बिना कोई औरत पूरी नहीं है तो ये भी गलत धारण है। मदरहुड एक च्वॉइस है। हो सकता है कि कोई महिला मां बनना न चाहती हो या फिर किन्हीं बायलॉजिकल वजहों से वह मां नहीं बन पा रही है, दोनों अपनी जगह पर सही हैं। आप की शादी नहीं हुई है या फिर शादी हुई है पर आप मां नहीं हैं, तब भी आप अपने आप में पूरी हैं।

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