''त्यौहार ऊपर त्यौहार आ रहे हैं''-गृहलक्ष्मी की कहानियां''
Festival Story: त्यौहार तो ऐसे आते हैं जैसे बिन बुलाए मेहमान आते है। बड़बड कर रही किचन में निशा गुस्से से किचन के सिंक में रखे बर्तनों को साफ कर रही थी। तभी वहाँ निशा के पतिदेव आते है और कहते है। अरे क्या हुआ नाश्ता तो तैयार हो गया ना..
हाँ हाँ नाश्ता तैयार हो गया ,खाना भी तैयार हो गया। बस आपको तो सिर्फ खाने से मतलब है। अरे भाग्यवान सुबह-सुबह इतनी किचकिच क्यों कर रही हो आखिर बोल भी दो क्या हुआ। आपको पता भी है अभी सुबह हम जब आँगन बुहारने निकले थे । तब सामने वाली मिश्राइन क्या कह रही थी।
अरे क्या कह रही थी। बता भी दो ,कह रही थी हमारे मिश्रा जी कल हमारे लिए बिन बोले ही पूरे तीन हजार की साड़ी लेकर लाए। परसो करवाचौथ है। इसीलिए ओह्ह हो तो तुम्हें साड़ी लेना है। हे भगवान कब समझ पाऊंगा मैं अपनी धर्मपत्नी को चलो आज ही शाम बाजार चलते है। तुम अपनी करवाचौथ की शापिंग भी कर लेना। और अपनी पसंद की साड़ी भी ले लेना। लेकिन हाँ अभी मैं सिर्फ तुम्हें दो हजार ही दे सकता हूँ। क्या सिर्फ दो हजार कुछ सोचते हूए हाँ हाँ वो भी बहुत है मेरे लिए। शाम को निशा अपने पति के साथ बाजार जाती है। पूजा के समान ही पूरे हजार रूपये के आ गये,अब हजार रूपये की साड़ी खरीद लेती हूँ। ऐसा कहकर वह साड़ी दुकान पर जाती है।
दुकान पर जाते ही अरे भाईसाहब कुछ अच्छी सी लाल,गुलाबी रंग की साड़ी दिखा दो,जी बहन जी अभी दिखाता हूँ। कितने तक की दिखाऊँ दो हजार तीन हजार अरे कहाँ आसमां में उड़ा रहे हो भैय्या जी सिर्फ हजार तक ही चलेगी, और अगर हो सके तो आठ सौ ,पाँच सौ तक भी चलेगी। ये तो हमारी ही दुकान है आते रहते है।
महीना दो महीनो में। त्यौहार एक ही बार थोड़े ही आता है। उसके बाद भी तो त्यौहार है।जी बहन जी बात तो सही है। अचानक अपने बाजू की सीट में उसे एक पर्स दिखता है। वह पर्स उठाकर देखती है। पर्स में ढेरो नोट की गड्डिया देखकर वह हतप्रभ रह जाती है। वह तुरंत ही दुकान मालिक के पास जाकर वह पर्स देती है ।और कहती है भाईसाहब मुझसे पहले भी और कोई आया था। हाँ एक अम्मा जी आई थी अपनी बहु के पहली करवाचौथ की साड़ी लेकर गई है। तभी निशा कहती है ।मुझे लगता है ये उसी अम्मा का पर्स होगा। जो भूल गई है। आप देखिए शायद वो ज्यादा दूर नही गई हो तो किसी लड़के को भिजवाकर उन्हें बुलाकर उनका ये पर्स दे दीजिए।
शायद उन्हे और भी चीजे लेनी होगी जो वो इतना पैसा लेकर बाजार आई है।
जी बहन जी मैं अभी देखता हूँ।
वह दुकानदार अपना काऊंटर छोड़ खुद जाने लगता ही है कि तभी पीछे से वह अम्मा अपने बेटे के साथ दुकान वापस आ रही होती है। दुकानदार तुरंत उस अम्मा के पास जाकर वह पर्स देता है ।और कहता है लो अम्मा जी इतनी नोटो से भरी गड्डिया लेकर बाजार नही आया करते ।
आज हमारी पुरानी ग्राहक निशा बहन जी ने यह पर्स देखते ही दे दिया ।वरना कोई दूसरा होता तो कब का लेकर रफूचक्कर हो गया होता। बहुत बहुत धन्यवाद बेटा दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो बेटा इस बूढ़ी अम्मा की आज तुमने इज्जत रख ली।
मुझे ही नही अम्मा जी हमारी निशा बहन जी को भी आर्शीवाद दे दीजिए। जिसके कारण आपको आपका यह पर्स मिल सका। अच्छा बेटा उसे भी ढेर सारा आर्शीवाद, अच्छा क्या लेने आई है वो करवाचौथ की साड़ी लेने आई है । लो दो हजार उसे अच्छे से अच्छा साड़ी दिखा देना बेटा और कहना इस बूढ़ी अम्मा का आर्शीवाद है उसे।
ये आप ही खुद दे दो उसे अम्मा, नही बेटा हम अगर जाकर उसे देने लगे तो वह कभी नहीं लेगी।
क्योंकि हमारे बाल ऐसे ही इतने सफेद नही हुए है।
ईमानदार व्यक्ति कभी दूसरे का कुछ दिया नही लेता चाहे उसके सामने हीरे -मोती रख दो।
जैसा आप ठीक समझो अम्मा जी फिर वह अम्मा अपने बेटे के साथ फिर वापस चली जाती है। और दुकानदार अपने काऊंटर में आकर बैठ जाता है। और अपने काम वाले लड़के को आवाज लगाकर कहता है हमारी जो निशा बहन आई है उन्हें तुम दो से तीन हजार की साड़िया दिखाओ। तभी निशा कहती,अरे नही भाई साहब हजार भर की ही देखने दो अभी तो हमने उतना पकड़ा भी नही है।
अरे बहन जी ये आपने जो पर्स वापस किया ये उसी अम्मा जी का आर्शीवाद समझ कर रख लो
उसी ने आपकी ईमानदारी पर खुश होकर दो से तीन हजार की साड़ी पसंद करने को कहा है।
अरे भाई साहब यह सब की क्या जरूरत थी। यह तो हमारा फर्ज था। लेकिन हर कोई आपके जैसे अपने फर्ज को याद नही रखता बहन जी।
निशा और उसके पति तीन हज़ार की साड़ी और करवाचौथ के पूजा का समान लेकर खुशी-खुशी घर आते है।…