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वो पीले रंग का कुर्ता पायजामा-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM Apr 11, 2023 IST | Sapna Jha
वो पीले रंग का कुर्ता पायजामा गृहलक्ष्मी की कहानियां
Wo Pile Rang ka Kurta Pajama
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Funny Story in Hindi: मोहनलाल जी थोड़े सख्त मिजाज के व्यक्ति थे। आए दिन उनकी पत्नी निहारिका जी से उनकी खिट- पिट होती रहती थी। वैसे निहारिका जी का स्वभाव सीधा और सरल ही था पर मोहनलाल जी ही थे जो हर बात का गुस्सा अक्सर उन पर निकालते थे।
निहारिका जी ने भी उनकी इस आदत को स्वीकार लिया था। यही वजह थी कि दोनों ने एक दूसरे के साथ अपनी शादी के पचास वर्ष गुजार लिए थे।
मोहनलाल जी एक फैक्ट्री में नौकरी करते थे और शाम तक घर लौटकर आते थे। वहीं निहारिका जी पूरे घर का अच्छे से ध्यान रखतीं। वैसे घर में कुल मिलाकर ये दो लोग ही थे। इनके अपनी कोई संतान ना थी। हां इन्होंने अनाथ आश्रम से एक बच्चे को गोद लिया था पर जल्द ही इन्होंने उस बच्चे को एक सड़क दुघर्टना में खो दिया।
खुद को इस सदमे से बाहर निकालकर कुछ वक्त के बाद दोनों ने एक और बच्चे को गोद लिया, पर शायद इनकी किस्मत में संतान सुख नहीं था। इसलिए एक गंभीर बीमारी के चलते उस बच्चे ने भी अपने प्राण गंवा दिए। फिर इसके बाद इन्होंने किसी बच्चे को गोद लेने के बारे में सोचा ही नहीं।
आज संडे था और मोहनलाल जी घर पर ही थे। तभी निहारिका जी उनके पास आईं और बोलीं, "आप तैयार नहीं हुए अब तक ?"
"कहां जाना है ?" उन्होंने थोड़ा हैरानी से पूछा।

"भूल गए क्या ? आज हम पास वाले गांव में एक फंक्शन के लिए जाने वाले थे…" निहारिका जी ने उन्हें याद दिलाया।
"अरे हां, ध्यान आया। वो राजू की बिटिया की शादी है ना…" वो बोले। राजू इनके यहां काम करने वाला नौकर था।
"हां… कितने मन से उसने हमें अपनी बेटी की शादी में बुलाया है।" निहारिका जी ने कहा।
"मैं अभी तैयार होकर आता हूं।" कहकर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गए।
कुछ ही पलों में वो वापस वहां आए और निहारिका जी पर हल्का सा गुस्सा करते हुए बोले, "तुमने मेरा वो पीले रंग का कुर्ता पायजामा प्रेस नहीं किया ?"
"वो मैं दूसरे कामों में रह गईं थीं। कोई बात नहीं मैं बाद में उसे प्रेस कर दूंगी। आप अभी कोई और कुर्ता पायजामा पहन लीजिए।" उन्होंने कहा।
"तुम जानती थीं ना कि वो मेरा मनपसंद कुर्ता पायजामा है, और मैं आज उसे ही पहनने वाला था। फिर भी तुम उसे प्रेस करना भूल गईं…" उनके स्वर में गुस्सा अब भी झलक रहा था।
"मैंने कहा ना… आगे से ध्यान रखूंगी, और अभी लाइट भी गई हुई है। इसलिए वो प्रेस नहीं हो पाएगा। पास वाली लांड्री की दुकान भी आज बंद है। तो आप कोई और कुर्ता पायजामा पहन लीजिए।" उन्होंने कहा।
"मुझे जाना ही नहीं है शादी में…" वो गुस्से में बोले।
"क्या ? एक कुर्ता पायजामा प्रेस नहीं हुआ तो आप यूं बच्चों की तरह जिद करेंगे…" वो बोलीं। पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
उन्हें यूं देख वो दोबारा बोलीं, "देखिए, वक्त मत बर्बाद कीजिए और जल्दी से जाकर तैयार हो जाइए। वरना बस छूट जाएगी। फिर अगली बस शाम से पहले नहीं मिलेगी और तब तक आधे से ज्यादा फंक्शन छूट जाएगा।"
"मैंने कहा ना… तुम्हें जाना है तो जाओ, मैं नहीं आने वाला तुम्हारे साथ…" बेरुखी से कहकर वो अपने कमरे की तरफ चले गए।
निहारिका जी को उनकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया और एक पल को तो उनका मन किया कि वो उन्हें छोड़कर चलीं जाएं। खैर! फिलहाल कुछ समय के लिए उनके पास इसका विकल्प था। उन्होंने अपना पर्स उठाया और उसी फंक्शन में जाने के लिए अकेली ही घर से निकल गईं।
बस स्टैंड पर उन्हें समय से बस भी मिल गई और वो टिकट लेकर उसमें बैठ गईं। हालांकि इससे पहले कभी भी उन्होंने अपना गुस्सा नहीं जताया था पर आज शायद उनके सब्र का बांध टूट रहा था। वो खिड़की के पास सिर टिकाकर बैठ गईं। पूरे रास्ते वो अपना फोन चेक करती रहीं पर मोहनलाल जी का एक भी काॅल या मैसेज नहीं आया।
तय समय पर वो उसी फंक्शन में पहुंचीं। वहां राजू ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा, "मालकिन, साहब नहीं आए…"
"वो उन्हें कुछ ज़रूरी काम आ गया था।" बात टालने के लिए उन्होंने इतना ही कहा।
"अच्छा, आइए मालकिन। बैठिए।" कहकर राजू उनकी खातिरदारी में जुट गया।
सुबह से शाम हो आई थी पर इस दौरान इन दोनों की आपस में कोई बातचीत नहीं हुई। हालांकि निहारिका जी ने कई बार उन्हें फोन लगाना चाहा पर फिर गुस्से के चलते वो नंबर लगने से पहले ही फोन कट कर देतीं। वहीं मोहनलाल जी ने भी तो अब तक एक बार भी उनकी खबर नहीं ली थी। उन्होंने ये भी नहीं जानना चाहा कि उनकी पत्नी ठीक तरह से फंक्शन में पहुंच भी गई या नहीं।
अब तो रात हो चली थी। वहां पर काफी धमाचौकड़ी मची हुई थी। एक तरफ नाच- गाना चल रहा था तो दूसरी तरफ कुछ रस्में की जा रहीं थीं। पर वहीं इन सबके बीच निहारिका जी का मन अभी भी बेचैन ही था। जहां एक तरफ वो अपने पति से बात करना चाह रहीं थीं, वहीं दूसरी तरफ उनकी नाराज़गी उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी।
वो इन्हीं सब उधेड़बुन में फंसी थीं कि तभी उनके फोन की घंटी बजी। डिस्पले पर अपने पति का नाम देखते ही उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ आई।
पर तभी उन्हें ध्यान आया कि वो तो उनसे रूठी हुईं हैं इसलिए फोन रिसीव करके उन्होंने गंभीर आवाज़ में ही कहा, "हैलो।"
"बाहर आओ।" दूसरी तरफ से मोहनलाल जी ने भी उसी गंभीरता से कहा।
"क्या ?" वो एक पल को कुछ समझ नहीं पाईं।
"अब क्या मैं अकेला अंदर आऊं ? मुझे बाहर तक लेने नहीं आओगी ?" उन्होंने कहा। निहारिका जी को समझते देर नहीं लगी कि उनके पति यहीं पर हैं। अपनी सारी नाराज़गी भूलकर उन्होंने खुशी जताते हुए कहा, "अभी आईं!" उधर दूसरी तरफ दरवाजे पर खड़े मोहनलाल जी के चेहरे पर भी हौली सी मुस्कान तैर गई। फिर उन्होंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
कुछ ही पलों में निहारिका जी वहां आईं। उन्होंने देखा कि उनके पति ने वही पीले रंग का कुर्ता पायजामा पहन रखा था जिसको लेकर दोनों के बीच नोंकझोंक हुई थी। दोनों एक दूसरे को देख हौले से मुस्कुरा दिए।
फिर निहारिका जी ने कहा, "आप तो आने वाले नहीं थे ना…"
"पर तुम्हारे बिना मन भी तो नहीं लगा। वो पूरा घर मुझे खाने को दौड़ रहा था। सच में निहारिका… आज पता चला मुझे कि तुम मेरे लिए क्या हो। तुम नहीं, तो मैं भी नहीं… तुम मेरे लिए सबकुछ हो।" उन्होंने उनकी आंखों में देखते हुए कहा।
ये सुन निहारिका जी की आंखें हल्की सी नम हो गईं। पर तभी वो चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए बोलीं, "अच्छा! और इस कुर्ते पायजामे के बारे में क्या कहना है आपका ? ये आपके लिए ज्यादा जरूरी है या मैं ?"
"तुम्हारे लिए ऐसे सौ कुर्ते पायजामे छोड़ सकता हूं मैं।" उन्होंने कहा।
"सच ?" वो बोलीं।
"मुच…" उन्होंने कहा। फिर वो आगे बोले, "तुम्हारे बिना घर पर मन तो वैसे भी नहीं लग रहा था और लाइट भी आ गई थी। तो सोचा इसी को प्रेस करके पहन चलता हूं।"
"वैसे ये आप पर बहुत जंच रहा है।" वो बोलीं।
"जंच रहा होगा… पर तुम्हारे बिना तो ये कुर्ता पायजामा क्या, मेरा जीवन ही मुझ पर नहीं जंचेगा।" वो बोले।
"इतना प्यार करते हैं आप मुझसे ?" वो उनकी आंखों में देखते हुए बोलीं।
"आज जब तुम मुझसे दूर हुईं तब मुझे एहसास हुआ कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं।" वो भी उनकी आंखों में ही देखते हुए बोले।
बदले में निहारिका जी हौले से मुस्कुरा दीं। तभी मोहनलाल जी ने आगे कहा, "निहारिका, वादा रहा… आज के बाद मैं तुम्हें भरपूर प्यार और सम्मान दूंगा।"
और फिर उन्होंने निहारिका जी को अपने सीने से लगा लिया। अपने पति का साथ पाकर निहारिका जी खुशी से खिल उठीं।
तभी मोहनलाल जी ने कहा, "सुनो! मैंने तुम्हारे लिए एक बहुत छोटी सी कविता लिखी है।"
"अच्छा! सुनाइए तो ज़रा।" कहते वक्त उनके चेहरे पर खुशी बरकरार थी।
उन्होंने कहा-हर जनम में मिले साथ तेरा…
ऐसा हो रिश्ता ये तेरा मेरा!
निहारिका जी का चेहरा बता रहा था कि उनके पति द्वारा उनके ऊपर लिखी गई ये छोटी सी कविता उन्हें बेहद पसंद आई है। उन्हें तो मानो सारे जग की खुशियां ही नसीब हो गईं हों।
इतने में राजू वहां आया। उसकी नज़र मोहनलाल जी पर पड़ी और वो हैरानी मिश्रित ख़ुशी के साथ बोल उठा, "साहब आप!"
"क्यों…? मुझे देखकर अच्छा नहीं लगा ?" मोहनलाल जी यूं ही मज़ाक में बोले।
"कैसी बातें कर रहे हैं साहब ? आपके आने से तो यहां की रौनक और बढ़ गई है।" उसने कहा। ये सुन वो दोनों भी मुस्कुरा दिए।
तभी राजू ने कहा, "वैसे साहब, आपका ये कुर्ता पायजामा बहुत अच्छा लग रहा है।"
"इसी कुर्ते पायजामे की वजह से तो सब अच्छा हो पाया है।" मोहनलाल जी बोल पड़े। उनकी बात राजू की समझ से तो परे थी पर निहारिका जी ये सुन हंसे बिना ना रह सकीं। उन्हें यूं खिलखिलाते हुए देख मोहनलाल जी भी हंस पड़े।

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