For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

मर्द को दर्द...होता है-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM Apr 09, 2023 IST | Sapna Jha
मर्द को दर्द   होता है गृहलक्ष्मी की कहानियां
Mard ko Dard hota hai....
Advertisement

Funny Story: लकी!... डॉक्टर रजत ने हेडफोन कानों में लगाये हुए अपने भतीजे लकी यानि अनिमेष से उसे  कॉफी का मग पकड़ाते हुए कहा हाँ चाचू .....लकी ने अपने टॉल हैंडसम चाचू की तरफ़ ध्यान से देखते हुए कहा।
बेटा कुछ भी हो जाये , पर तुम न  शादी ज़रूर करना,ये कहते हुए उनकी आँखों में पीड़ा उतर आई थी आँसुओं के रूप में ।
और नज़र ठहर गयी अपनी स्वर्गीय माँ जानकी जी की अंतिम दिनों की  तस्वीर पर,जिनके चेहरे पर अकड़ तो वैसी ही विराजमान थी ,पर साथ मे बेचारगी भी झलकने लगी थी।
क्या चाचू....लकी ने थोड़ा चिढ़े स्वर में तुनकते हुए कहा ...
"इसी बवाल से तो पीछा छुड़ाकर आपके पास आया हूँ और अब आप भी वही  राग अलाप  रहे  हो मुझे इस सब आफत में नहीं पड़ना ।

मैं उन्मुक्त रहना चाहता हूँ ,मेरे रोल मॉडल आप हैं।"वो थोड़े गर्व से बोला।
मनमौजी लकी चाचू का दुलारा भी था और उन्हें आदर्श भी मानता था।
ज़रूरत से ज़्यादा उनके समक्ष चाहें वो लकी तो या कोई भी उनके  परिवार का सदस्य अच्छा बनने की कोशिश हो या नाटक अवश्य करता।
प्रथम दृष्टया किसी को भी रजत के  खूबसूरत जीवन से जलन हो सकती थी ।
शहर के पॉश एरिया में छः सौ वर्ग गज  में फैले हुए  अत्याधुनिक सर्वसुविधा सम्पन्न  बंगले का अकेला उपभोक्ता।
ऊपर से अविवाहित  इस अधेड़ उम्र में भी ऐसी आकर्षक देहदष्टि की चालीस पार से ज़्यादा के न लगते।
पूरे समाज और रिश्तेदारों के बीच में आदर्श और सम्मान से नाम लिया जाता कि भई बेटा भी तो प्रभु रजत जैसा वरना निसंतान रखे।
हर रिश्तेदार यह चाहता कि रजत उनके किसी बच्चे को गोद ले लें तो उसकी एक नहीं सात पुश्तों की जिंदगी सँवर जाये।
मगर रजत सभी से एक निश्चित दूरी बनाकर रखते यह उनकी आवश्यक भी थी और मज़बूरी भी,बस लकी ही था,जो मौका पाकर उनके पास भाग आता था,अपनेपन का एकमात्र सिरा।
कमरे में पसरी चुप्पी को तोड़ते हुए लकी ने आँखे उठाकर देखा तो उसे अपने सुपरस्टार चाचू की आँखों में आँसू नज़र आये।
क्या यार चाचू तुम रोते भी हो, बिल्कुल अच्छे नहीं लगते ,दादी की मौत पर तो तुम्हें रोते हुए देखना सामान्य लगा पर अब अच्छा नहीं लगता।
वो परेशान होकर बोला घर में मम्मी शादी का  राग अलापा करती हैं और इधर आप भी शुरू हो गए,तभी तो जान बचाकर आपके पास आ गया कि कम से कम आप तो मुझे समझोगे ही।
बेटा.....भाभी सही कह रहीं हैं सच कहूँ तो तुम भाग्यशाली हो कि वो तुम्हारी दादी की तरह स्वार्थी नहीँ हो रहीं हैं।
स्वार्थी...और दादी रजत के ये शब्द लकी के कानों के लिए  आश्चर्य से कम न थे।
उसने गौर से रजत की आँखों में झाँका तो उधर दफ़न सच्चाई उमड़ कर आँसुओं की शक्ल में बाहर आने लगी।
रजत चाचू  जो कि श्रवणकुमार का पर्याय माने जाते थे,दादी ने उन्हें जैसे चाहा प्रयोग किया और चाचू ने उफ़्फ़ न की।
पर चाचू माँ तो ममता का सागर होती है ,वो अपनी  सन्तान के लिए स्वार्थी कैसे हो सकती है।
ये सच है पर कड़वा है कि मेरा घर सँसार सिर्फ अम्मा के कारण ही न बस सका।
माँ भी स्वार्थी हो सकती है लकी....
अब हैरान होने की बारी लकी की थी,वो रजत को बच्चों की तरह गले लगाकर बोला ,चाचू जब ज्वालामुखी फट गया है तो इस लावे को बह ही जाने दीजिए न...
रजत ने  दर्द उड़ेलना शुरू कर लिया जब तुम्हारी मम्मी ब्याह कर आईं थीं तो वो घर की पहली बहू थीं सम्पन्न परिवार की  बड़ी बहू परन्तु छोटी हैसियत के मायके की बेटी।
अम्मा ने उन पर तानाशाही दिखाने में कोई कमी न की पर जब बात भैया के स्वाभिमान की आई तो वो भाभी को लेकर अलग हो गए।
इस तरह पाँच बेटों में तीन  ने ये हवेली छोड़कर अपनी नीड़ अलग बना ली और इधर का रुख भी न किया दोबारा।
मैंने भी उम्र के कच्चेपन में कुछ गलतियां जरूर कीं अपने बड़े भाई और भाभियों के सम्मान में मात्र अम्मा को उनके लिए रोते देखकर।
बाबू काम के सिलसिले में बाहर रहते और जब अम्मा इस हवेली में अकेली पड़ गईं तो उन्हें असुरक्षा ने घेर लिया।
मैं उन्हें सारे सुख अपनी तरफ से देने की लालसा में पढ़ाई में लग गया और शहर का प्रख्यात हार्ट सर्जन बन गया।
पर  जब भी कोई रिश्ता  मेरे लिए आता अम्मा उसमें कमियाँ ही खोजतीं,कभी लड़की तो कभी खानदान और तो कभी दहेज़।
उनका दम्भ कभी इस बात को स्वीकार ही न कर पाया कि मेरी भी उम्र हो रही थी। धीरे-धीरे रिश्ते आना कम होने लगे।
और अम्मा को कोई फ़र्क़ भी नहीं पड़ रहा था,फिर जब पचास के आस- पास पहुँचा और अम्मा जब और भी  शिथिल होने लगीं ।

तो कुछ रिश्ते आये ,मज़बूर,तलाकशुदा या ऐसी लड़कियों के जिनमेँ कुछ कमी हो,अम्मा ने तब भी यही कहा कि हाय मेरा क्या होगा?
अंततः मैंने उन्हें वचन ही दे दिया कि मैं शादी करूँगा ही नहीँ,उस दिन के बाद अकेलापन ही मेरी नियति बन गया,न होली का रँग है न दीवाली की रोशनी और न ही कोई  हाल पूछने वाला।
ये ख़ालीपन  बहुत काटता है  बेटा,आज वाकई मँझले भैया की याद आती हैं,"कि अम्मा एक दिन इस हवेली में उल्लू बोलेंगे और देखना अम्मा वो दिन देखने के लिए तक ज़िंदा रहीं।
अब लगता है काश मैं भी अम्मा की बांधी लक्ष्मण रेखा पार कर लेता और तुम्हारे छोटे चाचू  की तरह कोर्ट मैरिज करके सूचना दी होती तो आज मेरा दर्द बाँटने वाला परिवार तो  होता मेरे साथ,ये वीरान हवेली का एक रोशन कमरा मेरा भाग्य न होता।
अन्तिम क्षणों में अम्मा के मेरे लिए दुःखी होने से क्या मेरी उम्र और मरी उमंगे लौट आतीं ?अब लोग इंतज़ार में हैं मेरे मरने के या  उनके किसी बच्चे को मेरे गोद लेने के फैसले के ।
कभी कभी निजी स्वार्थ में बड़े बच्चों के अरमानों की समाधि पर राज करते हैं लकी....ख़ालीपन बहुत शोर करता है एक उम्र के बाद समझ गया चाचू,और  चार दिन बाद  लकी ने फ़ोन  करके कहा,"मम्मी मैं अब शादी के लिए तैयार हूँ।

Advertisement

Advertisement
Tags :
Advertisement