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गौतम बुद्ध-बौद्ध धर्म के संस्थापक-जीवन परिचय

02:00 PM Nov 29, 2023 IST | Guddu KUmar
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक जीवन परिचय
Gautam Buddha-Founder of Buddhism-Biography
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गौतम बुद्ध भारत के महान आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। उनका जन्म 563 ई.पू., भारत में हुआ था। वे भगवान विष्णु के नवें अवतार माने जाते हैं। वे बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। यह धर्म भारत के साथ नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश व कई दूसरे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में फैला। उनका जन्म भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। उनका जन्म एक राजसी परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था।

Gautam Buddha-Founder of Buddhism-Biography
Gautam Buddha-Founder of Buddhism-Biography

उन्होंने अल्पायु में ही सभी सांसारिक सुख त्याग दिए व आध्यात्मिक यात्रा आरंभ की। फिर उन्हें बुद्ध (जो प्रबुद्ध हो गया हो) की उपाधि दी गई। वे शाक्यमुनि व तथागत नाम से भी जाने गए। गौतम बुद्ध के जीवन की तीन महत्त्वपूर्ण घटनाएं हैं-उनका जन्म, उनका प्रबुद्ध होना व उनका परिनिर्वाण (नश्वर शरीर से मुक्ति)। ये सभी घटनाएं पूर्णिमा के दिन ही घटीं। यही दिन ‘बुद्ध पूर्णिमा’ या ‘बुद्ध जयंती’ के रूप में मनाया जाता है। यह अप्रैल/मई माह में पड़ता है।

गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी (नेपाल) में हुआ। उनके पिता शाक्य वंश के राजा ‘सुद्धोधन’ थे। कपिलवस्तु उनकी राजधानी थी। गौतम की माता का नाम महारानी ‘महामाया’ (महादेवी) था। एक बार उन्होंने विचित्र स्वप्न देखा। उन्होंने देखा कि छः सफेद दांतों वाला अद्भुत हाथी, दाईं ओर से उनके शरीर में प्रवेश कर रहा है। इसके कुछ दिन बाद ही वह गर्भवती हो गईं।

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Birth and early years of Gautam Buddha
Birth and early years of Gautam Buddha

भविष्यवाणी की गई कि रानी महामाया की संतान कोई सामान्य संतान नहीं होगी। अप्रैल-मई माह में पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ। राजा-रानी उन्हें प्यार से सिद्धार्थ (जो अपना लक्ष्य पाता है) कहते थे। जन्म का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। अनेक साधु-संतों ने नवजात शिशु का भविष्य बताते हुए कहा कि या तो वह चक्रवर्ती सम्राट होगा या फिर बहुत ही प्रख्यात संन्यासी। दुर्भाग्य से, पुत्र को जन्म देने के कुछ दिन बाद ही मां की मृत्यु हो गई। मां की बहन ने ही सिद्धार्थ का पालन-पोषण किया। सिद्धार्थ बहुत शांत व अनुशासित बालक थे। उन्हें अध्यात्म में विशेष रुचि थी। उन्हें सबसे श्रेष्ठ शिक्षा दी गई। उनके पास जीवन के सभी सुख व विलास के साधन उपलब्ध थे।

Birth and early years of Gautam Buddha
Birth and early years of Gautam Buddha

सोलह वर्ष की आयु में उनका विवाह यशोधरा से हुआ। शीघ्र ही उनके यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। सिद्धार्थ के जीवन में कोई अभाव नहीं था, फिर भी वे उन सुखों का आनंद नहीं ले पाते थे। धीरे-धीरे वे संसार से विरक्त होने लगे। उन्हें एहसास हुआ कि केवल धन का संग्रह ही उनके जीवन का लक्ष्य नहीं था।

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सिद्धार्थ लोगों को कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करते देख द्रवित हो उठे। उन्होंने निर्णय लिया कि वे संन्यास ले लेंगे। वे राजगृह आ गए व भिक्षु बनकर भिक्षा से गुजारा करने लगे। कुछ दिन बाद, वहां के लोगों ने उन्हें पहचान लिया। राजा बिंबसार ने अपनी गद्दी भी उन्हें देनी चाही, किंतु सिद्धार्थ ने मना कर दिया। उन्होंने राजा को वचन दिया कि वे प्रबुद्ध होने के बाद वहां अवश्य आएंगे।

Spiritual journey of Gautam Buddha
Spiritual journey of Gautam Buddha

सिद्धार्थ ने दो गुरुओं से शिक्षा लीं, किंतु मन का असंतोष नहीं गया। फिर वे अन्न-जल त्यागकर गहन ध्यान में लीन हो गए। तब भी कुछ नहीं हुआ। एक दिन गौतम बुद्ध को एहसास हुआ कि प्रबोध पाने के लिए तप का कठोर मार्ग अपनाने व शरीर को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने मध्यम पथ अपनाने का निर्णय लिया। फिर वे शारीरिक शक्ति पाने के लिए नियमित रूप से भोजन करने लगे।

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माना तो यह गया है कि इसके बाद वे पुनः बोधगया (भारत में) एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न हुए। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वास्तविक ज्ञान पाने तक ध्यान से नहीं उठेंगे। उनचास दिन तक गहरे ध्यान के बाद उन्होंने प्रबोध पा लिया। अब वह वृक्ष ‘बोधि वृक्ष’ के नाम से जाना जाता है। प्रबुद्ध होने के बाद वे तपुस व मल्लिका नामक दो व्यापारियों से मिले, वे दोनों उनके शिष्य बन गए।

Spiritual journey of Gautam Buddha
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उन्होंने वाराणसी में गंगा नदी के किनारे शिष्यों को पहला उपदेश दिया। शिष्यों ने उन्हें गौतम बुद्ध कहकर पुकारा। शीघ्र ही शिष्यों की संख्या बढ़ी व संघ (एक संन्यासियों का समूह) का निर्माण हुआ। गौतम बुद्ध लोगों को जीवन के सत्यों, दुखों के कारण व आनंददायक जीवन जीने के उपायों का ज्ञान देते थे। लोग दूर-दूर से उनके वचन सुनने के लिए आने लगे। शीघ्र ही वे एक आध्यात्मिक गुरु व मार्गदर्शक के रूप में विख्यात हो गए। उन्होंने शिष्यों को चार आर्य सत्यों का परिचय दिया।

Spiritual journey of Gautam Buddha
Spiritual journey of Gautam Buddha

यही सिद्धांत बौद्ध धर्म के आधार बने। वे अपनी शिक्षाओं के प्रचार के लिए संघ के साथ अनेक स्थानों पर गए। अनेक लोगों के मन परिवर्तित हुए व उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। इन्हीं यात्राओं के दौरान, वे पिता के राज्य में भी गए, रिवाज के अनुसार वहां भी शिष्यों के साथ भिक्षा मांगी। राजा सुद्धोधन यह देखकर उदास हो गए।

उन्होंने पुत्र व संघ को शाही दावत का निमंत्रण दिया, किंतु गौतम ने पिता का निमंत्रण ठुकरा दिया। बाद में गौतम के पिता व परिवार के कुछ दूसरे सदस्य भी संघ में शामिल हो गए व उनके शिष्य बन गए। गौतम बुद्ध के प्रवचन बहुत ही प्रभावशाली थे। वे चाहते थे कि लोगों के जीवन से दुख व पीड़ा का समूल नाश कर दें। उन्होंने मानव-जाति के कल्याण के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

Spiritual journey of Gautam Buddha
Spiritual journey of Gautam Buddha

अनेक व्यक्ति उनके विरुद्ध षड़यंत्र भी रचते थे। उनका चचेरा भाई देवदत्त भी उन्हीं में से एक था, वह संघ का नेतृत्व करना चाहता था। उसने तीन बार गौतम बुद्ध की हत्या करने का प्रयास किया। पहले उसने धनुष-बाण चलाने वालों का एक दल भेजा, किंतु वे गौतम बुद्ध का प्रवचन सुनकर उनके अनुयायी हो गए।

Spiritual journey of Gautam Buddha
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दूसरी बार देवदत्त ने पहाड़ी से उस स्थान पर भारी पत्थर लुढ़का दिया, जहां गौतम बुद्ध तपस्या कर रहे थे, किंतु यह प्रयास भी असफल रहा। तीसरी बार, देवदत्त ने हाथी को मदिरा पिलाकर गौतम पर छोड़ दिया, किंतु हाथी ने उन्हें कोई हानि नहीं पहुंचाई।

अस्सी वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने घोषणा की कि वे इस शरीर को त्यागकर परिनिर्वाण प्राप्त करने जा रहे हैं। वे कुशीनगर के वनों (कुशीनगर, भारत) में चले गए। कुंडा नामक लोहार ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। इसके बाद वे बुरी तरह से बीमार पड़ गए।

Last years of Gautam Buddha's life
Last years of Gautam Buddha's life

लोगों ने लोहार पर आरोप लगाया कि उसने उनके भोजन में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था। किंतु गौतम ने कहा कि उस भोजन का उनके रोग से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने लोहार को भी सांत्वना दी। यद्यपि वही उनका अंतिम भोजन था। इसके बाद उन्होंने शिष्यों से कहा कि यदि वे चाहें तो अपने संशय उनके सामने रख सकते हैं।

Last years of Gautam Buddha's life
Last years of Gautam Buddha's life

शिष्यों ने कहा कि उन्हें कोई संशय नहीं है। उन्होंने अपने शिष्यों को उपदेश दिया कि वे हमेशा धर्म के पथ पर चलें। फिर वे गहरे मौन में चले गए, नश्वर शरीर को त्यागकर परिनिर्वाण पा लिया। वह दिन भी पूर्णिमा का दिन था।

गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्यों व अष्टांगिक पथ द्वारा मानव-जाति के कष्टों को मिटाने के लिए पूरा जीवन लगा दिया। उनके चार आर्य सत्य हैं:

(i) संसार पीड़ा, दुखों व कष्टों से भरा है।

(ii) इच्छाएं व अपेक्षाएं ही इस दुख का कारण हैं।

(iii) इच्छाओं के त्याग से निर्वाण पाया जा सकता है तथा

(iv) अष्टांगिक पथ के अनुसरण से निवार्ण का पथ पा सकते हैं।

Gautam Buddha's teachings
Gautam Buddha's teachings

अष्टांगिक पथ: सम्यक् ज्ञान, सम्यक् प्रवृत्ति, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका साधन, सम्यक् प्रयास, सम्यक् चेतना व सम्यक् ध्यान। बौद्ध धर्म जन्म व पुनर्जन्म के सिद्धांत में भी विश्वास रखता है। उन्होंने सिखाया कि आत्मा अमर है। यह निर्वाण पाने तक विविध शरीरों में वास करती है। बौद्ध ग्रंथ ‘त्रिपिटक’ में उनके प्रवचन संकलित हैं। ये पाली भाषा में लिखे गए हैं। जीवन चक्र, सफेद कमल पुष्प व गौतम बुद्ध की विविध मूर्तियां बौद्ध धर्म के तीन सूचक हैं। उन्होंने संसार को ज्ञान दिया कि वे जीवन के यथार्थ को स्वीकारें व दुखों के मूल को जानें।

Gautam Buddha's teachings
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गौतम बुद्ध अपने परिनिर्वाण के इतने वर्ष पश्चात भी लोगों के जीवन को प्रेरित करते आ रहे हैं। उनका जीवन व उपदेश, मानव-जाति के लिए सदैव ही प्रेरणास्रोत रहे हैं। हमें एक सफल व प्रसन्नतापूर्ण जीवन जीने के लिए उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहिए।

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