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" घर की इज्ज़त "-गृहलक्ष्मी की कहानियां

07:30 PM Apr 25, 2024 IST | Sapna Jha
  घर की इज्ज़त   गृहलक्ष्मी की कहानियां
Ghar ki Izzazt
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Kahani in Hindi: "अरे ज़रा ऊपर लगाओ इसे और वो गुलाब के फूलों की दो मालाएं भी बना कर रख लो अभी , और मेहमानों वाले कमरे को भी साफ करना शुरु करो और सभी चीज़ें नई रखना उसमें पर्दे , बिस्तर , तस्वीरें और बिजली भी ठीक कर देना अरे भाई जरा जल्दी - जल्दी हाथ चलाओ , अभी कितना सारा काम और करना रह गया है " घर के मुखिया जगत नारायण सभी लोगों को दिशा - निर्देश देते हुए काम के बारे में बताते हुए अपने मन में ही खुश हो रहे थे। उनकी पत्नी नीलम जी यह सब देखकर मुस्कुरा रहीं थीं और रसोई घर में पकवानों को बनाने में व्यस्त थीं। कुछ अपने ख्यालों को अपने विचारों के पंख देने में खोई हुई थीं। विभिन्न प्रकार की मिठाईयां और पकवान आज इस घर में बन रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे कोई बड़ा त्यौहार या फिर कोई बड़ी खुशखबरी इस घर की दहलीज को पार करके आ रही हो। सभी घर को किसी दुल्हन की तरह सजाने में लगे हुए थे , क्योंकि दिन ही कुछ खास था क्योंकि आज इस घर में इस घर के " दामाद जी " मतलब इस घर की बेटी के पति पंकज जी आने वाले थे वो भी अपनी पत्नी " आकांक्षा " के साथ में शादी के पूरे तीन साल बाद पहली बार बस उन्हीं के आदर सत्कार में पूरा परिवार पिछले एक हफ्ते से लगा हुआ था जिससे " दामाद जी " के सम्मान में कोई कमी नहीं रह जाए जिससे उनकी बेटी के ससुराल में उनकी बेटी और उसके मायके के " घर की इज्ज़त " बनी रहे।

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" पंकज और आकांक्षा दोनों रेलगाड़ी में बैठ चुके हैं और कुछ ही घंटो में यहां आ जाएंगे रेलवे स्टेशन पर उनको लेने के लिए किसी को भेज देना " चाय पीते हुए जगत नारायण अपनी पत्नी नीलम जी से कह रहे थे। नीलम जी भी उनकी बातों को सुनकर अपनी सहमति दे रहीं थीं। और कुछ विचार - विमर्श भी करने लगीं थीं। तभी दीवार पर लगी हुई घड़ी की तरफ देखकर नीलम जी कहती हैं - " जी सुनिए समय हो गया है , आप स्वयं ही " दामाद जी " और आकांक्षा को लेने के लिए रेलवे स्टेशन पर चले जाना , मैं कुछ बचा हुआ काम कर लेती हूं और फिर उनके स्वागत की तैयारी में भी लगना है। घर के " दामाद जी " का स्वागत कुछ ऐसे हो रहा था जैसे स्वयं ईश्वर उनके घर में आ रहा हो उन्हें आशीर्वाद देने। ससुराल वाले पंकज जी के स्वागत के लिए अपनी पलकें बिछा कर बैठे हुए थे। जगत नारायण जी " दामाद जी " और अपनी बिटिया आकांक्षा को लेकर घर पहुंच जाते हैं। घर के अंदर आने से पहले उन दोनों की आरती और गुलाब के फूलों की माला पहनाकर उनका स्वागत पूरा परिवार करता है। और फिर उनकी सेवा में लग जाता है। " दामाद जी " को खुश देखकर सभी लोग संतुष्ट हो जाते हैं। उनके " घर की इज्ज़त " बनी रहे इसकी कोशिश में लगे रहते हैं।

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पंकज आज स्वयं को एक सियासत का महाराजा होने का अनुभव कर रहा था। इतना प्यार और इतना आदर सत्कार देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था मगर कुछ अजीब भी माना कि वह इस घर की बेटी का पति है इस घर का " दामाद जी " है , मगर उसके घर में कभी भी उसकी पत्नि आकांक्षा का कभी ऐसे सत्कार शादी के बाद नहीं हुआ घर का कोई भी काम हो सभी उससे ही करवाते हैं , अगर " दामाद जी " को ससुराल में इतना मान - सम्मान मिलता है तो एक बहु को उसकी ससुराल में इतना मान - सम्मान क्यों नहीं मिलता है ? क्या बहू अपने ससुराल की " घर की इज्ज़त " नहीं होती है ?

आकांक्षा और पंकज का आदर सत्कार हो चुका था अब उन्हें वापिस रेलवे स्टेशन पर छोड़ने के लिए जगत नारायण स्वयं जाते हैं। वह पंकज जी से हाथ जोड़कर कहते हैं - " बेटा जितना हम कर सकते थे हमने किया है , कोई गलती हुई है तो हमें माफ करना बेटा हमारे " घर की इज्ज़त " अब आपके पास है " दामाद जी " । पंकज उनके पैरों को स्पर्श करके कहता है - " नहीं पिताजी , सब बहुत अच्छा रहा। मैं भी आपका बेटा ही हूं। " दोनों रेलगाड़ी में बैठ जाते हैं , रास्ते भर पंकज कुछ सोचता रहता है कभी आकांक्षा की तरफ तो कभी खिड़की से बाहर देखता है। आकांक्षा यह सब देखकर परेशान होने लगती है और पंकज से पूछती है मगर पंकज उसे कुछ भी नहीं बताता है। जैसे - जैसे समय आगे बढ़ने लगता है रेलगाड़ी की रफ्तार और आकांक्षा के दिल की धड़कन भी तेजी से बढ़ने लगी थी। कुछ अजीब से सवाल भी आकांक्षा के मन में आने लगे थे।

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ससुराल पहुंचकर आकांक्षा ने देखा कि ससुराल के सभी लोग गुलाब की मालाएं और आरती की थाली लिए हुए खड़े थे उसने मन में सोचा " कि यह सब पंकज के लिए होगा " मगर कुछ ही पलों के बाद सब उसकी और पंकज की आरती करने लगते हैं और उन्हें मालाएं पहनाते हैं पूरा घर आकांक्षा का आदर सत्कार करने लगता है उसे एक सियासत की महारानी की तरह मानते हैं , उसकी सास कहती हैं - " आकांक्षा बेटा जितना हम कर सकते हैं हमने किया अगर कोई कमी रह गई हो तो हमें माफ करना तुम हमारे घर की बहू हो इस " घर की इज्ज़त " हमारे अपने " दामाद जी " हो तुम "। पंकज ने हमें यह सब करने का विचार दिया , हम सबको बहुत अच्छा लगा। हमनें इस पर अमल भी किया। यह सब सुनकर आकांक्षा की आँखें नम हो जाती हैं , फिर पूरा परिवार उसे अपने गले से लगा लेता है। सिर्फ बेटे ससुराल में " दामाद जी " क्यों , बेटी भी ससुराल में " दामाद जी " बन सकती हैं। सिर्फ बेटी ही नहीं बहु भी " घर की इज्ज़त " होती है।

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