खांसी के नए इन्फ्लूएंजा एच 3 एन 2 से रहें सतर्क: H3N2 Virus
H3N2 Virus: कोरोना वायरस की ही तरह आजकल एक नया वायरस सुर्खियों में है। जिससे न सिर्फ बच्चे और बुजुर्ग बल्कि युवा भी संक्रमित हो रहे हैं। विशेषकर मोटापा, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से जूझ रहे बच्चे ज्यादा प्रभावित हैं। इस वायरस का नाम है-इंफ्लूएंजा ए-एच 3 एन 2, जो इंफ्लूएंजा वायरस के टाइप ए के म्यूटेशन के बाद सामने आया नया सबटाइप या वेरिएंट है। इंफ्लूएंजा वायरस का सबटाइप इंफ्लूएंजा ए-एच 3 एन 2 वायरस बहुत ज्यादा सक्रिय हो गया है। वायरस कोरोना की तरह कम्यूनिटी स्प्रैड कर रहा है यानी पूरे देश में बहुत तेजी से फैल रहा है।
यह वायरस फेफड़ों के टिशूज या ब्रोंकाइल लाइनिंग को खराब कर रहा है। हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह वायरस मरीज के शरीर में लंबे समय तक बना रहता है। 3 से 5 दिनों तक तेज बुखार के बाद संक्रमित व्यक्ति को कुछ दिनों तक हल्का बुखार बना रहता है। इसके साथ ही लंबे समय तक खांसी कि शिकायत और खांसते-खांसते सांस फूलने लगती है। मरीज के गले में गले में दर्द होने लगता है। पहले जो खांसी 5-6 दिन में ठीक हो जाती थी, अब वह ठीक होने में 25-30 दिन ले रही है।
कोरोना की तरह इंफ्लूएंजा ए-एच 3 एन 2 वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर दूसरे व्यक्ति में फैलता है। संक्रमित मरीज छींकता या खांसता है, तो ड्राॅपलेट एक मीटर के दायरे तक फैल जाते हैं। और आसपास मौजूद व्यक्ति के सांस लेने पर ड्राॅपलेट उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। या फिर संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने पर वायरसयुक्त ड्राॅपलेट किसी सतह या किसी चीज पर गिरते हैं। जिसे स्वस्थ व्यक्ति के छूने पर हाथ में ट्रांसफर हो जाते हैं और आंख-नाक-मुंह के जरिये उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसे में दूसरा व्यक्ति भी एच3एन2 से संक्रमित हो जाता है।
H3N2 Virus:क्यों है खतरनाक
एच3एन2 वायरस कोरोना की तरह संक्रामक और खतरनाक है। थोड़ी सी लापरवाही के चलते ये वायरस किसी की जान भी ले सकता है। आईसीएमआर के मुताबिक कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीज, छोटे बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं इस वायरस की चपेट में जल्दी आ सकते हैं। इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज लोग यानी टीबी, अस्थमा या पहले फेफड़ों में इंफेक्शन, किडनी, कार्डिएक डिजीज जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को यह वायरस अस्पताल पहुंचा सकता है।
ए-एच 3 एन 2 के लक्षण
ए-एच 3 एन 2 से संक्रमित व्यक्ति में सबसे पहला लक्षण बुखार होता है। अगर किसी व्यक्ति को 5 दिन से ज्यादा बुखार है तो डाॅक्टर को कंसल्ट करना जरूरी है। इसके अलावा ए-एच 3 एन 2 के संपर्क में आये व्यक्ति में लगातार खांसी, गले में खराश, बलगम, नाक बंद होना, लगातार छींकें आना, नाक बहना, सांस लेने में कठिनाई होना, सीने में भारीपन या जकड़न होना, डिहाइड्रेशन के कारण फेफड़ों में घरघराहट, सिर दर्द, बदन दर्द, चिड़चिड़ापन जैसी लक्षण भी दिखाई देते हैं।
उपचार
व्यक्ति ए-एच 3 एन 2 वायरस से संक्रमित है या नहीं, इसका पता लैब टेस्ट से ही चल सकता है। चूंकि 80 प्रतिशत से ज्यादा इंफेक्शन वायरल इंफेक्शन हैं। ठीक तरह जांच करने के बाद ही डाॅक्टर मरीज की स्थिति के हिसाब से सिम्टोमैटिक ट्रीटमेंट दिया जाता है। एंटीबाॅयोटिक दवाओं या अन्य दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल न करके, बुखार और बदन दर्द के लिए पेरासिटामाॅल या एंटी एलर्जी दवाई दी जाती है। स्थिति गंभीर होने पर मरीज को स्टेराॅयड भी दिए जाते हैं।
कैसे करें बचाव
देश में एच 3 एन 2 के बढ़ते मामलों को देखते हुए आईसीएमआर ने इससे बचाव के लिए गाइडलाइन जारी की है। जिस पर अमल करके खतरनाक वायरस से बचा जा सकता है-
- कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर का पालन करें।
- साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। नियमित तौर पर हाथ साबुन और पानी से धोएं। जरूरत हो तो हैंड सेनिटाइजर का उपयोग करें।
- भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें। बाहर जाते समय या संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर मास्क जरूर पहनें। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
- खांसते-छींकते हुए नाक और मुंह को ठीक से कवर करें। नाक और मुंह को बार-बार छूने से बचें।
- सार्वजनिक जगह पर हाथ मिलाने और थूकने से बचें।
- फ्लू होने पर अपने आपको आइसोलेट करें ताकि दूसरे लोग संक्रमित न हो पाएं। जितना जल्दी हो सके, डाॅक्टर को कंसल्ट करें।
- बिना डाॅक्टर की सलाह के एंटीबाॅयोटिक दवाइयां न लें। बुखार और बदन दर्द के लिए पैरासिटामाॅल की टेबलेट ले सकते हैं। कफ ज्यादा हो तो स्टीम लें।
- पूरा आराम करें। थोड़ा ठीक महसूस होने पर बिना डाॅक्टर की सलाह पर दवाई न छोड़ें।
- इंफेक्शन से बचने के लिए वयस्क लोग सालाना इन्फ्लुएंजा वैक्सीन और 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को न्यूमोकोकल वैक्सीन जरूर लगवाएं।
- घर का बना ताजा, गर्म, पौष्टिक और संतुलित खाना खाएं। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए मौसमी और ताजी फल-सब्जियों का सेवन करें। अदरक, लहसून जैसी चीजों को अपने आहार में जरूर शामिल करें।
- शरीर को हाइड्रेट रखें। ज्यादा से ज्यादा पानी और लिक्विड डाइट का सेवन करें। यथासंभव गुनगुना पानी पिएं।
- खट्टे फल, फ्रिज में रखा ठंडा जूस, कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम से परहेज करें। खटाई, दही जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन कम से कम करें।
- रोजाना हल्के व्यायाम जरूर करें ताकि शरीर चुस्त रहे। बाहर न जा पाएं तो घर पर ही योगा, अनुलोम-विलोम, डीप ब्रीदिंग करें।
- तापमान में करवट लेते इस मौसम में यथासंभव फुल लैंथ के कपड़े पहनें।
- घर में नियमित साफ-सफाई, वेंटिलेशन का पूरा ध्यान रखें, झाड़ू की जगह वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करें।
(डाॅ मोहसिन वली, सीनियर फिजीशियन, सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली)