संघर्ष की अद्भुत गाथा कहती आधी आबादी, हम किसी से कम नहीं: Successful Women
Successful Women: जीवन में बहुत कुछ अलग करने के लिए आपको बहुत ज्यादा कुछ प्रयास करने की जरूरत नहीं होती। बस आप जिस क्षेत्र में हैं उसमें बेहतरीन कर जाएं। आपके और समाज की उन्नति के लिए इतना भर काफी है। इस अंक की हमारी यह तीनों नायिकाएं भी अपने क्षेत्र की निपुण हैं।
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पिता की विरासत को आगे बढ़ाया
इंडियन स्टेटिकल इंस्टीट्यूट बैंग्लोर में प्रोफेसर के तौर पर अपनी सेवाएं देने वाली मधुरा के लिए उनका काम ही उनका जीवन है। वे फूड सिक्योरिटी, एग्रीकल्चर और रुरल डवलपमेंट के लिए प्रतिबद्ध हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डाक्ट्रेट करने वाली मधुरा अपने पिता की छवि को मानों फिर से जी रही हैं। इनके पिता एमएस स्वामीनाथन एक कृषि वैज्ञानिक थे। भारत में हरित क्रांति को सफल बनाने में उनके सहयोग को नकारा नहीं जा सकता। इस क्रांति में उन्होंने एक नायक की भूमिका निभाई थी। जमीं से जुड़े रहना और समाज के कमजोर लोगों के उत्थान के लिए सोचना मधुरा को अपने पिता से विरासत में मिला है।
मधुरा भारत में खाद्य व्यवथा को लेकर जो कार्य कर रही हैं उस संदर्भ में 8 किताबें भी लिख चुकी हैं जिसमें 'द पब्लिक ड्रिस्ट्रीब्यूशन फूड इन इंडिया', 'फाइनेंशिल लिबराइजेशन एंड रूरल क्रेडिट', 'दलित हाउसहोल्ड इन विलेज इकोनॉमी' शामिल हैं। भारत सरकार की फूड सिक्योरिटी पैनल की वह लंबे समय तक सदस्य भी रही हैं। इसके अलावा यूनाइटेड नेशन की साल 2013-2015 की इकोनॉमिक और सोशल काउंसिल की कमेटी का हिस्सा भी रही हैं। इस के जरिए वे भारत और एशियाई क्षेत्र का दृष्टिकोण ग्लोबल मंच पर रखने में सफल रहीं। उनका मानना है कि विश्व भर में खाद्य और पोषण की सुरक्षा करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। वे किसानों के हित में सोचती हैं और उनके विकास को लेकर सजग रही हैं। वे उन्हें अन्नदाता कहती हैं। वे पिछले दिनों अपने एक बयान की वजह से सुॢखयों में आई थीं। उन्होंने कहा था कि यह किसान हैं अपराधी नहीं। इनके लिए जेलें तैयार की जा रही हैं इन्हें रोकने के लिए बैरीकेट्स लगाए गए हैं। इस तरह का व्यवहार नहीं होना चाहिए। अगर आपको मेरे पिता एमएस का सम्मान जारी रखना है तो आपको किसानों को साथ लेकर चलना होगा। इससे पता चलता है कि वो बेशक बाहर से पढ़ाई पूरी करके आई हैं लेकिन गरीबों के अधिकारों के लिए वे सजग हैं। उनकी रुचियों में गरीबी और असमानता, मानव विकास, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण ऋण, महिला और कार्य, बाल श्रम और शिक्षा पर काम करना शामिल है। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, हेलसिंकी और इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च में भी पढ़ाया है। उनकी रिसर्च उन्हें जमीनी हकीकत से जोड़ती चली गई।
लोक गायिका से ऑल इंडिया रेडियो तक का सफर
पहाड़ हर किसी को अपने मोहपाश में बांधने का माद्दा रखते हैं, वहीं यहां की लोकगायिकी की बात ही अलग है। लोक जीवन को अपनी आवाज में सजाने का काम करने वाली माधुरी हर उस महिला के लिए आदर्श हैं जो सपने देखना चाहती हैं। यह उत्तराखंड की एक लोक गायिका हैं। इसके इतर वह ऑल इंडिया रेडियो में संगीतकार बनने वाली भारत की पहली महिला हैं। इतना ही नहीं वह संगीत शिक्षिका बनने वाली उत्तराखंड की पहली महिला संगीतकार हैं। यानी कि उत्तराखंड में वो अपने समय से परे कुछ ऐसे अनूठे काम में लगी हैं जो उनसे पहले किसी और महिला ने नहीं किए। अपने कार्यों की वजह से उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया जा चुका है। साल 2019 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा 2022 में भारत के चौथे सबसे उल्लेखनीय नियमित नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया।
वे पिछले कई सालों से उत्तराखंड के लोकसंगीत और प्रसाार के लिए कार्य कर रही हैं। वे महिलाओं को गाया वादन में प्रेरित करने के बाद उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं। जब उन्होंने संगीत का अपना सफर शुरू किया था उस समय उनके शहर में इसे पसंद नहीं किया जाता था। लेकिन माधुरी अपने मन का क्या करती? उनके मन को तो संगीत से ही सुकून मिलता था। वैसे भी उनके शब्दों में मानें तो पहाड़ की तरह मजबूत होती हैं पहाड़ की महिलाएं। वह अगर कुछ ठान लेती हैं तो अपने मजबूत इरादों की वजह से उसे हासिल कर लेती हैं। स्वतंत्रता सेनानी की बेटी माधुरी ने 1969 में स्कूल खत्म करने के बाद इसी स्कूल में संगीत शिक्षिका के तौर पर सेवा करने करने की शुरुआत की। इसके बाद इलाहाबाद संगीत समिति से संगीत का प्रशिक्षण लिया। अपने आगे की पढ़ाई को प्राइवेट जारी रखा। पढ़ाई के साथ-साथ अपने खाली वक्त में आकाशवाणी नजीबाबाद में काम करना शुरू किया। अपने प्रोग्राम के जरिए उन्होंने लोककथा, गीत-संगीत का प्रचार किया। उन्हें मालूम था कि वो जिस रास्ते पर चल रही हैं वो इतना आसान नहीं है लेकिन उन्होंने ठाना और बहुत कुछ करके दिखा दिया। वे कहती हैं लोग मुझे मेरे चेहरे से नहीं मेरी आवाज से पहचानते हैं। लोग जब मुझसे मिलते हैं और कहते हैं अच्छा आप माधुरी दीदी हो। बस एक कलाकार को और क्या चाहिए। मैंने संगीत की सेवा की और इस सेवा के बदले मुझे बहुत कुछ जीवन ने दिया।
बॉलीवुड में गीतों और कहानियों के पीछे का चेहरा
अपनी रचनात्मकता के बल पर बॉलीवुड में कौसर मुनीर ने अपनी एक अलग ही जगह बनाई है। वे बॉलीवुड में एक गीतकार और स्क्रीन राइटर हैं। मुंबई में जन्म लेने वाली कौसर ने सेंट जेवियर कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में अपना ग्रेजुएशन किया है। उन्होंने एक्टर निर्मल पांडे से शादी की थी लेकिन अफसोस की वो शादी ज्यादा नहीं चल पाई। इसके बाद साल 2001 में उन्होंने नवीन पंडित के साथ अपने जिंदगी को एक नये सिरे से शुरू किया। इसके साथ ही शुरुआत की कुछ नए सपनों की। मुनीर ने मीडिया में काम करना शुरू किया और कुछ रिसर्च से संबंधित कामों से भी जुड़ी। लेकिन कहते हैं कोई एक मौका आपके जीवन को बदलने का काम करता है। मुनीर के लिए वो मौका 'जस्सी जैसी कोई नहीं' सीरियल के साथ आया। इस सीरियल को उन्होंने लिखा। यह एक अलग तरह का सीरियल था जो साबित कर रहा था कि खूबसूरत लोगों की दुनिया में कुछ लोग अपनी बुद्धि के बल पर दुनिया को जीने का और उसे जीने का माद्दा रखते हैं। जस्सी भी ऐसा ही एक किरदार था। इसके बाद उन्होंने फिल्म 'टशन' का सॉन्ग फलक तक लिखा है। इसके बाद फिल्मों की और सीरियल्स की फेहरिस्त बहुत लंबी है। वो सलमान के साथ भी काम कर चुकी हैं। 'एक था टाइगर' का गीत माशाल्लाह उन्होंने ही लिखा है। उनकी सफलता का एक ही मंत्र है वो मौके को मिलने के बाद एक बेहतरीन खिलाड़ी बन उसे जीत जाती हैं। इसी की बदौलत आज उन्होंने एक गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर खुद को स्थापित किया है।
इतना ही नहीं आईसीसी मेंस टी-20 वर्ल्ड का ऑफिशल एंथम 'लिव द गेम लव द गेम' भी लिखा था। यह एंथम हर किसी की जुबां पर था। हां, लेकिन बॉलीवुड में एक महिला गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर का स्थापित होना इतना आसान भी नहीं था। लेकिन हां, जब आपके पास मेहनत करने का जज्बा और रचनात्मकता भरपूर होती है तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। मुनीर भी ऐसी ही हैं वो शब्दों से खेलने का हुनर बखूबी जानती हैं। अजुर्न कपूर और परिणिती चोपड़ा की फिल्म 'इश्कजादे' का टाइटल भी उन्होंने ही लिखा था। वे कहती हैं आदित्य चोपड़ा ने खुद कहा था कि यह टाइटल बहुत अच्छा है। मेरे लिए उस समय यह बहुत बड़ी बात थी। वो अपनी प्रेरणा गुलजार साहब को मानती हैं। बस बचपन में जो गाने उन्हें पसंद आते थे वो वे लिख लिया करती थीं। शायद यहीं से उनकी भाषा का विस्तार हुआ।