For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

बिखरे पन्ने-गृहलक्ष्मी की कहानी

01:00 PM Mar 20, 2023 IST | Sapna Jha
बिखरे पन्ने गृहलक्ष्मी की कहानी
Bikhre Panne
Advertisement

Hindi Kahaniya: समय के साथ आधुनिकता के पेड़ पर पनपते नन्हे कपोल अपनी पहचान बनाने के लिए आतुर हो रहे थे। मौसम की अठखेलियां आसमान का खुलापन ऊंचे स्वर के शब्दनाद इंग्लिश धुन पर रॉक संगीत का उन्माद जैसे इन्हीं वस्तुओं में सारे जहां की खुशी समाहित हो।

महानगर का शोरगुल सुपर्णा को अब उम्र के साथ बर्दाश्त नहीं होता लेकिन जवान होती कृतिका अपने पंख खोल आसमान में विचरण करने के लिए बेताब थी।
छोटी सी टीशर्ट, खुले बालों के साथ तैयार हो आईने में खुद को निहार रही थी।
दो कमरों का सोलह साल पुराना फ्लैट सीलन भरी दिवारे दीवार पर लगी पारिवारिक फोटो फ्रेम भी सीलन के कारण खुल चुकी थी।

सीलन के साथ-साथ चाय की महक घर को एक सुकून का एहसास करवा रही थी। सुपर्णा ने टी.वी पर चल रहे रॉक म्यूजिक को कम करते हुए,
चाय का कप टेबल पर रखते हुए कहा- "कृति मौसम खराब हो रहा है,तुम कहां जा रही हो,
आज तो कोई क्लास भी नहीं है तुम्हारी...?"
"ओहो,मां...आज सैटरडे है,फ्रेंड के साथ लॉन्ग ड्राइव पर जा रही हूं, तुम भी ना..  हर बात पर सवाल बहुत करती हो मॉम,मोना की मां तो कभी उसे रोकती- टोकती नहीं है,
एक आप हो।
कहते हुए कृतिका मां के गले में बाहें डाल अपने जाने की स्वीकृति पाने की रिश्वत दी।
मां उस के मनोभाव को समझते हुए प्यार से उसके हाथों को छुड़ाते हुए बोली- "बेटा मौसम सही नहीं है और अब शाम भी होने वाली है,कब जाओगी और कब आओगी!
"मॉम यार तुम अपना टी.वी सीरियल देखो ना, क्यों मेरी लाइफ में इंटरफेयर करती हो,
आई एम ट्वेंटी प्लस, मैं अब बच्ची नहीं हूं कि तुम्हारेदुपट्टे से बंधी रहूंगी।"
कहते हुए उसने मां का दुपट्टा पकड़कर लहरा दिया।
तभी नीचे से बाइक का हॉर्न सुनाई दिया कृतिका ने दीवार पर टंगी अपनी पर्स उठाई एक बार फिर मुड़कर आईना देखा और बालकनी से उसे देखकर बोली- "वेट-वेट मैं आ रही हूं।
और पीछे छोड़ गई एक सेंट की महक जो सुपर्णा  को अब और भी ज्यादा ही चुभ रही थी।
कमरे में छाई खामोशी और सेंड की खुशबू न जाने कितने सवाल उसके सामने लिए खड़ी थी।
सुपर्णा ने बालकनी से देखा तब- तक वह उस लड़के को देख पाती उसके पहले ही कृतिका बाइक पर सवार होकर निकल चुकी थी।सुपर्णा बालकनी में पड़े कपड़ों को समेटते हुए अंदर आ गई।
दीवान पर बैठ चादर पर पड़ी सिलवटों को सही करते-करते
अतीत के साए में कहीं खो सी गई थी।
आज वह कृतिका को रोक रही थी। लेकिन उस दिन सुबोध ने भी उसे कितना रोकना चाहा था।
जब वह उसे नौकरी करने से मना कर रहा था।
वह हमेशा कहता- "सुपर्णा तुम यह जॉब मत करो, तुम्हारा बॉस तुम्हें आए दिन परेशान करता है, तो क्यों नही तुम दूसरा जॉब सर्च करती।"
लेकिन...!
मैंने सुबोध की बात ना मानकर अपने सुख की खातिर अपने बॉस की बात मान ली थी।

Advertisement

मेरा बॉस रितेश भी मुझे इसी तरह रोज बाइक पर लेने आता।
सारी मल्टी के लोगों को मेरे और मेरे बॉस के संबंधों के बारे में पता चल चुका था ।
घर में रोज लड़ाई- झगड़ों की वजह से सास-ससुर जल्दी चल बसे।
सासू मां स्कूल टीचर थी। सारी जिंदगी उन्होंने पैसा कम कमाया।
पर पद और नाम तो बहुत कमाया था।
सभी आदर से उन्हें आंटी बोलते थे।
यह बात उन्हें अंदर ही अंदर खा गई थी कि मेरी बहू मेरे विचारों से बिल्कुल विपरीत है।
वह हमेशा कहती- "अरे..हमें मत पूछो कम से कम अपने बच्चों और पति को तो पूछो...!,
ताकि जीते जी मैं यह दिन ना देख सकूं।"
लेकिन तब मेरे दिमाग पर सिर्फ
रितेश का भूत सवार था।
इन सब बातों के चलते मेरे और मेरे पति के संबंधों में दरार आ चुकी थी।
दोनों बेटियां भी हमेशा लड़ाई- झगड़ों को देखकर ही बड़ी हुई।

अब वह भी अपनी लाइफ अपने मुताबिक जीना चाहती थी।
जूही बड़ी बेटी मल्टीमीडिया का कोर्स करने के लिए एजुकेशन लोन लेकर दिल्ली चली गई।
सुबोध भी बिना तलाक के ही अलग रहने लगे। उन्होनें अपने होठ हमेशा के लिए सील लिए थे।
जब बहुत जरूरत होती तभी बात करते अन्यथा नहीं।

Advertisement

वह खुद ही अपना खाना बनाते जॉब करते
मां-बाबा तो चल बसे थे।वह बस जी रहे थे।
जब जूही दिल्ली में थी तब सिर्फ एक बार फोन आया था।
मिलना चाहता हूं उस वक्त मैं अपने ईगो पर सवार थी।
बोली- "क्या समस्या है फोन पर ही बता दो।"
तब उन्होंने कहा था कि जूही को तुम्हारी सख्त जरूरत है,वह गलत संगत में पड़ गई है और डिप्रेशन की शिकार हो गई है,तब मेरा कलेजा बैठ सा गया था।
मैंने उसे फोन किया पूछा- "बेटा क्या हुआ...तुम अपने पापा से सभी बातें शेयर करती हो.. मुझसे क्यों नहीं,
क्या मैं तुम्हारी मां नहीं हूं।"
मां की दर्द भरी आवाज सुन जूही खिलखिला कर बोली- "यार मॉम.. तुम्हें कब से फैमिली सिकनेस होने लगी, जब से मैं समझदार हुई हू,तब से देख रही हू कि तुम तो हमेशा ही अपनी खुशियां ढूंढने में लगी रहती थी,उस समय परिवार रूपी पेड़ के पत्ते बिखर रहे थे, तब तुम्हारा ध्यान पापा और हमारी तरफ कहां था,आपने कभी हमें भावनात्मक स्पोर्ट नहीं दिया।
पापा हमेशा दूर रहकर भी मुझसे मेरी प्रॉब्लम पूछते रहे,
आप नहीं.... ,और हां, मैं ठीक हूं मैं अपनी प्रॉब्लम खुद सॉल्व कर सकती हूं‌"।
कहते हुए जूही ने फोन काट दिया।

सुपर्णा ने उस वक्त तैश में आकर आनन-फानन दिल्ली का टिकट बुक कर दिल्ली पहुंच गई।

Advertisement

जूही के हॉस्टल पहुंची तो पता चला कि अब वह हॉस्टल में नहीं रहती।
वह बार,बार जूही को फोन लगा रही थी,लेकिन हर बार जूही फोन  काट देती।
बहुत कोशिशों के बाद जूही ने फोन उठाया।
"मां फोन क्यों कर रही हो ...?"
"मैं दिल्ली आई हूं,तुमसे मिलना चाहती हूं ,एड्रेस भेजो..!"
मां को दिल्ली में पाकर जूही बेचैन हो गई।
उसने अपने आपको संभालते हुए बेमन से घर का एड्रेस सेंड किया।

सुपर्णा उसी एड्रेस पर जा पहुंची। एक पॉश कॉलोनी में  बड़े,बड़े फ्लैट,स्विमिंग पूल, पार्किंग में बीएमडब्ल्यू ,ऑडी ,मर्सिडीज़ लग्जरी गाड़ियां देखकर वह दंग रह गई।खुद को बहुत ही हीन महसूस कर रही थी। साधारण कपड़े उसकी दशा बया कर रहे थे।
तभी वॉचमैन ने पूछा- "किससे मिलना है,वह उस रिच माहौल को देखकर नि:शब्द हो चुकी थी।

उसने मोबाइल की स्क्रीन खोलकर वॉचमैन को एड्रेस दिखाया।
उसने सलाम करते हुए उसे ऊपर से नीचे तक देखा मन में कई सवाल सोचते हुए उसने d-block सेकंड फ्लोर की ओर इशारा किया।
सुपर्णा को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी स्वर्ग में किसी कीड़े का प्रवेश हो रहा हो।
वह तेज कदमों से डी ब्लॉक की ओर बढ़ गई।
लिफ्ट में एक मादक सेंड की खुशबू महक रही थी।
शायद उससे पहले कोई इस लिफ्ट से जा चुका था वह बारहवें माले पर पहुंची पूरा कॉरिडोर इनडोर फ्लावर से सजा हुआ था। लोग इतने व्यवस्थित और इतने पैसे वाले भी हो सकते हैं सोच रही थी कि अचानक उसका पैर एक गमले से टकरा गया वह संभलकर चारों और देखने लगी।
एड्रेस में जो नंबर था उस नंबर के दरवाजे की डोर बेल उसने घबराहट में बजा दी।
बेल की धुन मधुर संगीत की स्वर लहरियों से सजी थी।
उसे एक सुखद एहसास होने लगा।तभी जूही ने दरवाजा खोला।
सभी साजो सामान से सुसज्जित फ्लैट देखर वह दंग रह गई।
सांवली सी जूही जो दिखने में औसत थी उसने बाल कॅलर करवा रखे थे छोटी सी शॉर्ट्स पहने थी।  होठ और नाभि पर उसने टॉप्स गोद रखे थे।
गर्दन के पीछे और हाथों पर टैटू बनाए हुए थे। काली-काली जांघें देखकर वह सहम सी गई।
क्या जूही पहले ऐसी थी।
उसने मां को  बेमन से बैठने को कहा बोली- "आप यहां क्यों आई हो...?
"बेटा तेरे पापा ने बताया कि तू डिप्रेशन में है,बस तेरी बहुत चिंता हुई इसीलिए मैं आ गई।"

"मेरे डिप्रेशन में होने से आपको क्या फर्क पड़ता है।"
कहते हुए उसने फ्रिज से ठंडी बीयर निकाली और साइड टेबल पर पड़े सिगरेट के पैकेट से सिगरेट निकालकर लाइटर से जलाकर कश लेते हुए मां के सामने बैठ गई।काले होठों से निकलता सिगरेट का धुआं ड्राइंग रूम में एक अजीब उन्माद पैदा कर रहा था।
जूही मां की ओर अजनबी सी नजर डालते हुए बोली- "तुमने तो मुझे पढ़ने भेजा था ना,क्या..एडमिशन के पैसे दिए थे मुझे...!,
लोन भरना था, क्या करती...पापा बेचारे क्या करते, उनकी तो तनख्वाह ही इतनी है कि उनका खुद का गुजारा ठीक से नहीं होता।"
कहते हुए उसने एक बीयर का घुट पीया।
वह मां की तरफ देखते हुए बोली-"मॉम आप यहां नहीं रह सकती,आप आज रात की बस से वापस चले जाओ।"
"बेटा क्या तूने शादी कर ली है..?जूही की बात पूरी होने से पहले ही सुपर्णा ने सवाल किया।

"व्हाट नॉनसेंस मॉम, आप क्या शादी-वादी की बातें कर रही हो...! ,आज के जमाने में शादी कौन करता है भला, सब कुछ लिविंग में मिल जाता हैं, जस्ट चिल मॉम ,और हां,आपने शादी के बाद क्या किया, सब जानते हैं ना! आप ना तो एक अच्छी वाइफ बन सकी और ना ही एक अच्छी मॉम,क्या आप चाहती हैं कि मैं भी वही सब दोहराऊ ,नहीं मॉम नहीं.. मुझे मेरे खर्चे के लिए पैसे चाहिए, और मुझे मेरा लोन चुकता करना था, और वैसे भी यहां की नाइटलाइफ अलग होती है, लोग रातों को पबो में जाते हैं लाइफ इंजॉय करते हैं मुझे भी पैसे कमाने का जरिया किताबों की डिग्री से नहीं अपने आत्मविश्वास से मिला है,यह फ्लैट मेरे लिविंग पार्टनर का है।"
"तो... डिप्रेशन क्यों....?"
मां ने उसकी मदहोश होती नजरों को देख पूछा।
"मॉम मेरा यहां कुछ नहीं है, वह मुझे सऊदी अरब भेजना चाहता है, पार्टी से उसने डील कर रखी है,
बट..मैं अब ,थक गई हूं मॉम,
इस राह से वापस आना चाहती हूं, पर मेरे सारे रास्ते बंद हो चुके हैं, उसने मुझ पर बहुत खर्च किया है,मैं उसे इतना पैसा लौटा नहीं सकती ,मैं लौटकर कैसे आऊ,
सो आई एम वेरी डिप्रेस्ड, तुम जाओ यहां से....!"
कहते हुए मॉम को निहारने लगी। समय के साथ आधुनिकता का पेड़ इतना विशाल हो गया था कि इसकी घनी काली छांव ने हमारी सबकी जिंदगी को अंधकार में डूबो दिया था।  सुपर्णा सोच भी ना सकी कि उसे यह दिन भी देखना पड़ेगा।
आज अपने परिवार को बिखरता देख उसे अपने आप पर मलाल हो रहा था।
सोच में पड़ गई। "काश!
मैं उस वक्त समझ जाती।
उस वक्त सुबोध ने मुझे कितना समझाया था लेकिन उस वक्त तो मेरे सर पर रितेश  सवार था।
यदि उस समय  सुबोध की बात मान लेती तो शायद आज यह दिन ना देखना पड़ता‌।
वह वापस लौट आई थी लेकिन उसकी रातों की नींद उड़ चुकी थी। जूही की अवस्था एक जल बिन मछली की तरह थी वह बेबस थी। लेकिन जूही ने अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया था।
उसकी तंद्रा भंग हुई वह खामोश दीवान पर बैठी थी तभी उसे याद आया कि रात की दवाई खानी है उसे लीवर सिरोसिस हो गया था।और समय के साथ रितेश ने भी उससे अपना काम निकल जाने के बाद किनारा कर लिया था।
उसने घड़ी देखी रात के दो बज रहे थे। कृतिका अभी तक  आई नहीं थी।
उसने बालकनी से झांका चारों और  सन्नाटा बिखरा पड़ा था कुत्तों के रोने की आवाजें रात के सन्नाटे को चीरती हुई उसके कानों के पर्दे चीर रही थी।
वह बेचैन होकर बार-बार नीचे झांक रही थी तभी मोटर बाइक की लाइट उसकी आंखों पर पड़ी शायद कृतिका आ गई थी। वह लड़का उसे उतारते वक्त हग करके चला गया।
कृतिका के कदम डगमगा रहे थे। कृतिका ने चाबी से दरवाजा खोला एक अजीब सी बदबू उसके जिस्म से आ रही थी जब गई थी तब सेंट की खुशबू और अब...?

मां को सामने खड़ा देख अचानक बोली- "मॉम तुम सोई नहीं...?
सुपर्णा की आंखों से आंसू  बहने लगे।
अपने परिवार के सदस्यों को इस कदर बिखरता देख वह बिलख पड़ी। उसने कभी सोचा नहीं था कि बीता हुआ अतित भविष्य को खराब कर सकता है।
इस आधुनिकता की दौड़ में अपने परिवार रूपी किताब के पन्ने कुछ इस तरह बिखर जाएंगे ऐसा उसने कभी ख्वाबों में भी सोचा नहीं था।
कृतिका मां को बिलखते देख बोली-"मॉम आप मत रो, काश... आपने पहले ही इस घर को पापा को जूही को हम सब को संभाल लिया होता, अपनी ख्वाहिशों की खातिर आपने पापा की बात नहीं मानी,इसीलिए हम एक परिवार होकर भी अलग-अलग बिखरे पड़े हैं। सुपर्णा कांपते हाथों से कृतिका के चेहरे को हाथ में लेकर बोली- "क्या अब सब कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता क्या...?"
"मां सब ने अपनी-अपनी राहें बना ली है,

क्या तुम अपनी राह से वापस लौटी थी..?,बोलो, नहीं ना ....फिर हमसे उम्मीद क्यों....?"

सुपर्णा की नजरों में बेचैनी छटपटाहट और विवशता साफ झलक रही थी। रात के अंधेरे में उसे जिंदगी भी काली नजर आ रही थी। अब वह चाहते हुए भी अपने जिंदगी के पन्ने समेटने में विवश थी जो वक्त की आंधी में बिखर चुके थे।सिर्फ एक उम्मीद के सहारे जी रही थी कि कल का सूरज शायद कुछ अच्छा लेकर आए।
इस ढलती उम्र में वह एक बार फिर से अपने परिवार रूपी माला को एक धागे में पिरोने में सफल होना चाहती थी। यहीं सोच लाइट बंद कर वह दीवान पर लेट गई और सोने के कोशिश करने लगी ।लेकिन नींद अब कोसो दूर थी।समय रेत की तरह मुट्ठी से फिसल चुका था। कुत्तों के रोने की आवाजें अब और करीब आती हुई उसे महसूस होने लगी।वह इस काली रात के बाद उम्मीद के नए सूरज का इंतजार करने लगी।

यह भी देखे-किसी ने क्या खूब कहा है…

Advertisement
Tags :
Advertisement