मां के चले जाने के बाद-गृहलक्ष्मी की कविता
Hindi Kavita: कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद
कि स्वीकारा नहीं जाता
जाने क्यों यह बदलाव?
नहीं होती हैं रौनकें कोई
न बचपन खिलखिलाता है
भले ही उम्र कितनी हो बेटियों की
तन से कम मगर मन से तो
बेटियां बूढी-सी बन जाती है।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद।
नहीं रास्ता निहारता कोई
ना सन्मार्ग बताया है कोई
बस किए गए श्रम में भी
नुक़्स निकालता हर कोई।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद।
उस अध्याय का बंद होना
कितना अज्ञानी बना जाता है
मासूमियत वाले शब्दों की जगह
जब छल-कपट से बचने का उत्तर
हर पन्ने में ढूंढना पड़ता है।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद….
वो जिद और वो मान-मनौव्वल
पल में छूमंतर हो जाता है
जिससे सुबह-शाम हर पहर का
गहरा नाता हुआ करता था।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद…
जो बेटियां कभी मां से अपनी
हर दु:ख-सुख साझा कर लेती है,
वही गहरे जख़्मों के टीस को
मुस्कानों से ढकने की कोशिश करती है।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद…
बचपन के अपने हर खिलौनों के
टूटने का सबसे पहले ज़िक्र
मां से ही कर जाती थी
मां के जाते ही बस
किसी के हाथों का खिलौना बन
खुद को टूटने से बचाने की
होड़ में ताउम्र ही लगी रह जाती है।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद…
मां के होने पर अपने घर क्या
मायके का भी कोने-कोने पर
जो हक़ अपना भी समझा करती है
जाते ही मां के जब
मां की आंचल को याद कर
गीली हाथों से अपने बैग से
अपना तौलिया मायके में निकालती है।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद….
जो बात-बात पर हंसी-ठिठोली
कितनी बातें कहती-सुनती तब
अब तो साफ चेहरे को भी कई बार धोकर
डबडबाई आंखों के आंसुओं को छुपाती है।
कितना कुछ बदल जाता है
जीवन में बेटियों के
बस एक मां के चले जाने के बाद।
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