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Importance of Hindi: हिंदी लेखन में अनुवादक की अनिवार्यता कितनी जरूरी है

02:15 PM Sep 14, 2022 IST | Geeta Kainthola
importance of hindi  हिंदी लेखन में अनुवादक की अनिवार्यता कितनी जरूरी है
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Importance of Hindi: हम भारतीयों के लिए हिंदी बोलना, घर जैसी बात है, एकदम सहज और सरल. हिंदी बोलने के लिए हमें किसी खास आवरण और लहजे की आवश्यकता नहीं होती है. शायद यही वजह है कि हमारे यहां ज्यादातर लोग अभिव्यक्ति के लिए हिंदी को प्राथमिकता में रखते हैं, लेकिन बात जब रोजगार की आती है तो हिंदी में विकल्प के तौर पर पत्रकारिता, शिक्षण, लेखन और अनुवाद ही मुख्यतः दिखाई पड़ते हैं. यह कुछ गिने-चुने क्षेत्र हैं जहां आप हिंदी भाषा में विशेष डिग्री लेकर काम कर सकते हैं. देखा जाए तो युवाओं में पत्रकारिता और स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाने को लेकर एक अलग आकर्षण है, लेकिन अनुवादक कोई-कोई ही बनना चाहता है. उनमें भी वो जो सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं. जबकि पत्रकारिता हो या साहित्य, अनुवादक की अनिवार्यता हर जगह है.

विश्व पटल पर जब पहली बार गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ का अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार मिलता है तो साहित्य जगत में जैसे उथल-पुथल सी मच गई. सबसे पहला प्रश्न यही उठाया गया कि क्या हिंदी साहित्य में इससे पहले अच्छी किताबें नहीं लिखी जा रही थीं! निसंदेह लिखी जा रही थीं लेकिन उन्हें डेजी रॉकवेल जैसा बेहतरीन अनुवादक नहीं मिल पाया. आइए जानते हैं हिंदी दिवस पर अनुवाद अनुवादक की भूमिका पर साहित्य में विशेष दर्जा रखने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों की क्या राय है-

Importance of Hindi
मधु कांकरिया, (लेखिका, साहित्यकार और उपन्यासकार)

हिंदी साहित्य में एक अनुवादक की क्या भूमिका है?

विश्व पटल पर भारतीय पुस्तकें आएं उसके लिए जरूरी है कि उनका समुचित रूप से अनुवाद हो! आप देखिए कि जितनी भी पुस्तकें विश्व पटल पर समायोजित हुईं या आईं वे बेशक अनुदित पुस्तकें थीं, चाहे वे रविन्द्रनाथ टैगौर की गीतांजलि हो या अभी हाल ही में आई गीतांजलि श्री की ‘रेत समाधि’ हो. यदि इन पुस्तकों का अनुवाद नहीं हुआ होता तो क्या वे सरहद पार तक पहुंच पातीं, तो आज यह बहुत जरूरी है कि बहुत अच्छा लिखना जरूरी नहीं, उसके साथ उसकी मार्केटिंग और अनुवाद भी जरूरी है. ताकि वे पुस्तकें भी विश्व पटल तक पहुंच पाएं.

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एक अनुवादक की क्या की क्या चुनौतियां हैं?

अनुवादक की चुनौतियां बहुत होती हैं क्योंकि हर भाषा का अपना एक सौन्दर्य होता है. और, हर भाषा में ऐसे शब्द होते हैं जो संस्कृति के वाहक होते हैं. तो! जब तक अनुवादक को उस भाषा या संस्कृति की विशेष जानकारी न हो वो अनुवाद प्राण ही होगा. जैसे हिंदी भाषा में एक शब्द है ‘पाणिगृहण’ तो क्या उसका समुचित अनुवाद हो सकता है. वैसे ही एक शब्द है ‘खडाऊ’. क्या उसका अनुवाद ‘वुडन चप्पल’ की तरह हो सकता है. इसी तरह ढेरों शब्द हैं, इन शब्दों का आप अनुवाद कैसे करेंगे, जब तक आप यहां कि संस्कृति-लोक संस्कृति. रीति-रिवाज से परिचित नहीं होंगे. इसलिए अनुवादक के सामने ढेरों चुनौतियां होती हैं.

हिंदी साहित्य में एक अनुवादक की क्या भूमिका है?

अनुवादक बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। हिन्दी का विपुल और श्रेष्ठ साहित्य स्तरीय अनुवाद में अंग्रेज़ी में आता, तो हिन्दी के हिस्से बुकर पुरस्कार बहुत पहले आ गया होता। हिन्दी के विकास और विस्तार में भी अनुवाद की भूमिका है। क्योंकि अनुवाद का काम दोतरफ़ा है। हिन्दी में भी श्रेष्ठ अनूदित हो और हिन्दी का लिखा अन्य भाषाओं में। ऐसे में अनुवाद का काम बहुत जिम्मेदारी भरा है। अनुवाद एक गतिशील विधा है। देश-काल और भाषिक बदलावों का प्रभाव ग्रहण करती है। इसलिए ज़रूरी है कि पहले से अनूदित क्लासिक का भी नया अनुवाद हो।

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कविता, कथा, कहानी और व्यंग्य की भांति, अनुवाद को भी हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा माना जाए या ये केवल पत्रकारिता में इस्तेमाल होने वाली विधा है?

मेरी नज़र में अनुवाद केवल पत्रकारिता में काम आने वाली विधा नहीं है। आप देखिए, शरतचन्द्र या रवीन्द्रनाथ हमारी हिन्दी में किस तरह आए? क्या बांग्ला से हिन्दी में बग़ैर अनुवाद के हमें ये मिल सकते थे? गोर्की की अमर कथाकृति “माँ” हम रूसी भाषा से अनुवाद के बग़ैर हिन्दी में पढ़ नहीं सकते। इसलिए अनुवाद की हिन्दी पढ़ने वालों के लिए ज़रूरत बनी रहेगी। इसलिए एक साहित्यिक विधा के रूप में इसकी अनिवार्यता भी असंदिग्ध है।

एक अनुवादक की क्या-क्या चुनौतियां हैं?

अनुवादक के सामने अनेक संकट हैं। केवल टेक्स्ट का अनुवाद साहित्य में कारगर नहीं सिद्ध होता। आपको उन अर्थछवियों तक भी पहुँचना होता है, जिसके ज़रिये मूल भाषा में कोई किताब ऊँचाई हासिल कर इस योग्य बनती है कि उसका अन्य भाषाओं में अनुवाद हो। इस प्रकार के श्रम के लिए काफ़ी रिसर्च और संसाधन के साथ समय की भी दरकार है। अकसर अनुवादकों को संसाधन यानी उचित भुगतान और पर्याप्त समय नहीं दिया जाता। इससे अनुवाद की स्तरीयता प्रभावित होती है। एक सजग अनुवादक इस समस्या से लगातार दो-चार होता है। हिन्दी में तो यह बहुत ज़्यादा विकट है।

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