नवरात्र में व्रत-उपवास का जानिए क्या है महत्व: Navratri Vrat
Navratri Vrat: नवरात्रियों में आदिशक्ति को मनाने के लिए कई प्रकार से पूजा और अराधना की जा सकती है। व्रत-उपवास भी पूजा का ही एक अंग है। व्रत का अर्थ है संकल्प या दृढ़ निश्चय। उपवास का अर्थ है कि ईश्वर या इष्टदेव की शरण में आहार या बिना आहार के रहना । व्रत-उपवास करने से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक लाभ मिलते हैं। नवरात्र में किए गए व्रत से हमारा शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है। साथ ही, देवी मां और इष्टदेव की कृपा भी मिलती है।
नवरात्र में क्यों किए जाते हैं व्रत-उपवास
एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं। एक नवरात्र चैत्र मास में, एक अश्विन मास में मनाया जाता है। शेष दो नवरात्र माघ और आषाढ़ मास में मनाए जाते हैं, इन्हें गुप्त नवरात्र माना जाता है। दो ऋतुओं के संधिकाल यानी जब एक ऋतु बदलती है और दूसरी ऋतु शुरु होती है तो उन दिनों में नवरात्र मनाया जाता है।
ऋतुओं के संधिकाल में बीमारियां होने की संभवानाएं काफी बढ़ जाती हैं। इस कारण इन दिनों में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऋतु परिवर्तन के समय खान-पान में किसी प्रकार की गड़बड़ी ना हो, इसलिए नवरात्र में व्रत-उपवास करने की परंपरा बनाई गई है।
व्रत से मिलते हैं ये स्वास्थ्य लाभ
व्रत उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है। नवरात्रि में भूखे रहने से, एक समय भोजन करने या केवल फलाहार करने से पाचनतंत्र को आराम मिलता है। इससे कब्ज, गैस, एसिडीटी अपच, सिरदर्द, बुखार, मोटापा जैसे कई रोगों का नाश होता है। इससे आध्यत्मिक शक्ति बढ़ती है। ज्ञान बढ़ता है। विचार पवित्रता बने रहते हैं और बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण व्रत-उपवास को पूजा पद्धति को शामिल किया गया है।
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