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जीवनसाथी-प्रेम कहानी

11:00 PM May 23, 2023 IST | Sapna Jha
जीवनसाथी प्रेम कहानी
Jeevansathi
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Jeevansathi Story: रुचिता उस दिन सुबह से ही काम में व्यस्त थी। घर की सारी जिम्मेदारी संभालते-संभालते वह जैसे बूढ़ी हो गई थी। काम निपटा कर वह मशीन पर बैठी थी कि तभी फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर देखा तो नंबर अंजान था। उसने फोन उठाया तो दूसरी ओर सुरीली आवाज सुनाई दी, "हैलो रुचिता।"

"हां, मैं रुचिता ही बोल रही हूं।"

"पहचाना?"

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"आवाज तो जानी-पहचानी लग रही है। पर पहचान नहीं पा रही हूं।"

"अरे, मै अनिता बोल रही हूं। तुम्हारी खास फ्रेंड, अब पहचाना?"

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"अनु तुम, इतने सालों बाद (आंखें छलक आईं) तुम्हें मेरी याद आई?"

"तुम्हें कैसे भूल सकती हूं। तुम तो मेरे दिल में हो। ऐसा एक भी दिन नहीं गया, जिस दिन तुम्हें याद न किया हो। सुन, हम जल्दी ही मिलने वाले हैं। एक खुशखबरी देने के लिए तुम्हें फोन किया था। अपने कालेज में रियुनियन है। अपने बैच के सभी लड़कों-लड़कियों को मिलना है। तुम आओगी न?"

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"देखती हूं यार, घर में मम्मीजी से पूछ कर शाम को तुम्हें बताती हूं।"

"ठीक है, आने की कोशिश करना। चलो, फोन करना, भूलना मत।"

रुचिता मशीन की सुई में धागा डालते-डालते कालेज के दिनों में पहुंच गई। एक से बारहवीं तक वह एक ही स्कूल में पढ़ी थी। जब वह ग्यारहवीं में आई, एक नया लड़का उसके क्लास में आया। बहुत ही हैंडसम, जैसे फिल्म का हीरो देख लो।

पहले ही दिन से लगभग सभी लड़कियां उसकी दीवानी हो गई थीं। उनमें रुचिता भी थी। वह जितना खूबसूरत था, उतना ही प्यारा उसका नाम भी था। ऋत्विक, जो सुनते ही मन को भा जाए। सभी लड़कियां अपने मन की बात एक-दूसरे से करतीं। पर रुचिता ने अपने मन की बात अपने मन में ही दफन कर ली थी। उसके घर के सभी लोग रूढ़िवादी और सख्त थे। अगर उसने कभी भूल से किसी लड़के की नोटबुक ली हो या किसी लड़के को अपनी नोटबुक दी हो और घर वालों को इसका पता चल गया हो तो उस दिन घर में बवाल हुआ ही था। इसलिए रुचिता लड़कों से बातचीत की कौन कहे, उनकी ओर देखती तक नहीं थी।

ऋत्विक ने कुछ ही दिनों में रुचिता को छोड़ कर सभी लड़कियों को फ्रेंड बना लिया था। पर वह हमेशा रुचिता की ओर ही ताका करता था। कितनी सौम्य लड़की थी। टैलेंटेड भी उतनी ही। कम बोलने वाली, पर क्लास में जब कभी किसी सवाल का जवाब देती, मन करता उसकी मीठी आवाज सुनते ही रहें। ऋत्विक सोचता कि काश एक बार वह उससे बात करे तो वह उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाए। पर रुचिता ने कभी भी उससे बात नहीं की। वह स्कूल पहुंच कर जब तक रुचिता को देख नहीं लेता था, उसके कलेजे को ठंडक नही पहुंचती थी।

रुचिता के मन की भी यही हालत थी। पर वह किसी से अपने मन की बात कह नहीं सकती थी। स्कूल का एन्युवल फंक्शन था। कार्यक्रम की एंकरिंग लड़कियों की ओर से रुचिता तो लड़कों की ओर से ऋत्विक कर रहा था।

सब से पहले मेहमानों का स्वागत हुआ। रुचिता की सुरीली आवाज, साथ ही माइक में बोलने का गजब का कान्फिडेंस। उसका एक-एक वाक्य शायरी की तरह लगता था, जिस पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठती थी। बोलते-बोलते रुचिता और ऋत्विक की आंखें मिल जातीं। बिना कुछ बोले ही न जाने कितनी बातें हो जातीं। अंदर के भाव आंखों में जैसे तैरते दिखाई देते। एन्युवल फंक्शन का मेन हार्द इस साल का बेस्ट स्टूडेंट घोषित करना था। जब शिक्षकश्री ने माइक हाथ में लिया तो वह नाम सुनने के लिए सभी के कान राह देखने लगे। तभी नाम की घोषणा हुई, "इस साल के बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड रुचिता मेहता के हिस्से में जाता है।"

रुचिता तो खुशी से उछल ही पड़ी थी, उससे अधिक खुशी ऋत्विक के चेहरे पर झलक रही थी। रुचिता ने मम्मी-पापा के साथ जा कर ट्राफी ले ली। वह दिन उसके लिए बहुत ही यादगार था। वह स्टेज से उतर कर अपनी जगह पहुंची तो खुशी में ऋत्विक ने उससे हाथ मिलाते हुए उसे शुभकामनाएं दीं। यह दृश्य रुचिता के पापा की नजर के कैमरे में कैद हो गया। यह देख कर वह सहम उठे। पर वहां वह कुछ कह नहीं सके और चुपचाप अपनी जगह पर बैठे रहे।

पहली बार हुआ स्पर्श रुचिता के दिल को छू गया। मन में लड्डू फूटने लगे। ऐसा ही अनुभव ऋत्विक को भी हुआ। एन्युवल फंक्शन का कार्यक्रम बहुत अच्छी तरह पूरा हुआ। पर दोनों के दिलों में प्यार जाग उठा। रुचिता ने प्यार को पंख नहीं फूटने दिए। उसने अपने इस प्यार को हृदय के एक कोने में छुपा दिया। ऋत्विक ने दो-तीन बार उससे बात करने की कोशिश की, पर वह बात नहीं कर सका। परीक्षा नजदीक थी, इसलिए वह पढ़ाई में व्यस्त हो गया। परीक्षा पूरी होते ही अचानक रुचिता की सगाई और फिर जल्दी ही विवाह कर दिया गया।

रुचिता से प्यार करने की बात ऋत्विक ने अनिता से बताई और उसे देने के लिए एक चिट्ठी भी दी। अनिता जिस दिन रुचिता को चिट्ठी देने पहुंची, उसी दिन उसका ब्याह था और बारात आ चुकी थी। अनिता सीधे रुचिता के कमरे में पहुंची और दरवाजा बंद कर के बोली, "रुचिता, तुम ने अपने विवाह की बात बताने की कौन कहे , निमंत्रण तक नहीं दिया।"

आंखों में आंसू ला कर रुचिता बोली, "क्या करूं यार, मेरे पापा के स्वभाव के बारे में तो तुम्हें पता ही है। मुझे घर से बाहर नहीं निकलने दिया गया। मुझे भी पता नहीं कि मेरा विवाह इतनी जल्दी क्यों किया जा रहा है।"

इतना कह कर रुचिता अनिता के गले लग कर रोने लगी।

"रुचिता, मैं तुम्हारी खास सहेली हूं। अपने दिल पर हाथ रख सचसच बताना कि तुम ऋत्विक से प्यार करती हो?"

"हां, करती थी, जिस दिन से देखा था, उसी दिन से उसे चाहने लगी थी। पर आज मैं उसे किए प्यार को अपने दिल में दफन कर रही हूं। मेरे घर में प्यार शब्द का उच्चारण भी अपराध है। अब मेरे पापा के हाथ से जो लिखा जाए, वही मेरा जीवन है।"

"ऋत्विक ने यह चिट्ठी भेजी है। क्या लिखा है मुझे पता नहीं, तुम पढ़ लेना।"

"ऋत्विक के चिट्ठी भेजने का मतलब है, वह भी मुझे पसंद करता था?"

"हां रुचिता, पूरे क्लास की लड़कियां उसके पीछे पागल थीं, पर वह तो तुम्हारे नाम का दीवाना था। पर अब क्या?"

"सच है, वह मेरे नसीब में नहीं लिखा था। मेरा नसीब तो मुझे कहीं और ले जाना चाहता है। अब यह चिट्ठी ले कर क्या करूंगी। केवल अपना जी जलाऊंगी। ऐसा करना, तुम यह चिट्ठी उसे लौटा देना और उससे कह देना कि रुचिता अब किसी और की अमानत है।"

"अरे एक बार तुम देख तो लो क्या कहना चाहता है तुम से?"

अनिता ने जिद की तो रुचिता ने चिट्ठी ले ली। वह खोलने जा रही थी कि दरवाजा खटका, तो उसने वह चिट्ठी चूड़ियों के डिब्बे में नीचे दबा दी।

रुचिता की बारात आ गई थी। उसका विवाह धूमधाम से हो गया। अपनी विवाह की वेदी में उसने अपने प्यार को होम कर दिया था और रिधम के साथ सप्तपदी के सात वचनों में बंध गई थी। रिधम भी रुचिता को बहुत प्यार करता था। विवाह के दो सालों बाद एक सुंदर बेटी ऋत्वी पैदा हुई। उसके ससुर रिधम को पांच साल का छोड़ स्वर्ग सिधार गए थे और रिधम की भी दुर्घटना में तीन साल की बेटी को छोड़ कर मौत हो गई थी।

रुचिता को उसकी सास बेटी की तरह संभाल रही थीं। रिधम की मौत के बाद उसके बीमा और इकट्ठा की गई रकम को मिला कर करीब पांच लाख रुपए मिले थे। इससे क्या होता? रुचिता कपड़े बहुत अच्छा सिल लेती थी, इसलिए उसने ब्लाउज और ड्रेस की सिलाई का काम शुरू किया, जिसकी कमाई से घर का खर्च चलने लगा। उसके हाथ में सुई चुभ गई तो उसकी तंद्रा टूटी। सिलाई का सामान समेट कर वह सास के कमरे में गई। उसने सास से कहा, "मम्मीजी कल हमारे कालेज में हमारे साथ पढ़ने वाले पुराने विद्यार्थी इकट्ठा होंगे। आप कहें तो मैं भी चली जाऊं। मैं खाना बना कर घर के सारे काम कर के जाऊंगी। ऋत्वी को आप को दो घंटे संभालना होगा।"

"अरे चली जा न बेटा। ऐसे मौके जीवन में बारबार नहीं आते। अब ऋत्वी मेरा ख्याल रखती है। हम दोनो साथ मिल कर खेलेंगे। तुम हम दोनों की जरा भी चिंता मत करो। तुम हो आओ बेटा, दो सालों से तुम्हारे चेहरे से हंसी गायब हो गई है। वहां जा कर तुम्हें थोड़ा अच्छा लगेगा। मैं बाहर बरामदे में चल रही हूं।"

रुचिता ने अनिता को फोन कर के कितने बजे का समय है, पूछ लिया। अगले दिन कालेज का प्रांगण मानों रंगबिरंगी झालरों से भरा था। वहां आए सभी विद्यार्थियों के चेहरे पर उम्र का असर दिखाई नहीं दे रहा था। सभी सालों बाद एक-दूसरे से मिल रहे थे। अनिता कालेज के गेट पर खड़ी रुचिता की राह देख रही थी। थोड़ी देर में रुचिता रिक्शा से आफ ह्वाइट साड़ी पहन कर उतरी। उसे देखते ही अनिता ने दौड़ कर उसे सीने से लगा लिया। बीस साल बाद दोनों मिल रही थीं। उनकी आंखें बरस पड़ीं। बातें करते हुए दोनों हाॅल की ओर बढ़ीं। पुराने दोस्त मिल रहे थे। सभी एक-दूसरे से सुख-दुख की बातें कर रहे थे। दोनों एक जगह किनारे की कुर्सियों पर बैठ गईं। तभी एनाउंसमेंट हुआ कि रुचिता जहां भी हो, वहां से एंकरिंग करने के लिए स्टेज पर आ जाए। रुचिता ने कहा, "अनिता मना कर दे। मैं एंकरिंग नहीं कर पाऊंगी।"

"अरे तुम जाओ तो सही, अपने अंदर का कौशल्य कभी मरने नहीं देना चाहिए। तुम एक बार फिर उसे जीवंत कर के दिखा दो।"

रुचिता उठ कर स्टेज की ओर बढ़ी थी कि तभी ऋत्विक के नाम का एनाउंसमेंट हुआ। रुचिता का दिल धड़क उठा। इतने सालों बाद कैसा लगता होगा वह? उसने अपना स्थान ले लिया। पर ऋत्विक अभी नहीं आया था। उसने प्रोग्राम की शुरुआत की ही थी कि हाॅल में एक सुंदर नवयुवक का प्रवेश हुआ। सभी लड़कियां, जो अब महिला बन चुकी थी, सभी की नजरें उसी पर जा टिकीं। जल्दी से जा कर उसने अपना स्थान संभाल लिया। रुचिता और ऋत्विक की आंखें मिलीं, पर रुचिता ने आंखें झुका लीं। प्रोग्राम की शुरुआत हो गई। रुचिता की मधुर आवाज में अभी भी वही खनक थी। जिन्होंने इस प्रोग्राम का आयोजन किया था, उन आयोजकों को फूलों का गुलदस्ता दे कर स्वागत किया गया। इसके बाद आयोजन के अनुसार प्रोग्राम आगे बढ़ा। सभी के चेहरे पर खुशी समा नहीं रही थी। इनमें से तमाम तो कपल थे। अब पार्टी की शुरुआत हो गई। रुचिता और अनिता अन्य सहेलियों के साथ बातों में लग गईं। ऋत्विक भी वहीं आ कर खड़ा हो गया, "मेरी चिट्ठी का जवाब तो तुम ने दिया नहीं। क्या आज एक दोस्त बन कर बात भी नहीं करोगी?"

रुचिता का दिल जोर से धड़क उठा। वह चिट्ठी तो उसने चूड़ियों के डिब्बे में रख दी थी, वह वहीं रह गई थी। इतने साल बीत गए। वह डिब्बा तो पापा के घर ही था। शायद अब वह वहां भी नहीं होगा। उसे एसी में भी पसीना आ गया। ऋत्विक ने रूमाल देते हुए कहा, "लो पसीना पोंछ लो। मैं तुम्हें कोई सजा नहीं दूंगा। चलो, उधर उस टेबल पर बैठते हैं।"

वे एक जगह बैठ गए। ऋत्विक ने कहा, "रुचिता, तुम्हारे जीवन के बारे में अनिता ने मुझे सब बता दिया है। तुम मेरे जीवन के बारे में नहीं जानना चाहोगी?"

"जानना तो बहुत कुछ था। पर किस्मत का खेल तो देखो, कहां से कहां ले जाता है? तुम्हारा सुखी संसार होगा। शायद एक-दो बच्चे भी होंगे। तुम हैंडसम हो, इसलिए तुम्हारी पत्नी भी सुंदर होगी"

"मेरा एक बेटा है रुचित, पर अब उसकी मां इस दुनिया में नहीं है।" यह कहते हुए ऋत्विक की आंखें भर आईं।

"जिंदगी भी रेल की पटरी जैसी है। कभी कहां सीधी चलती है? जिंदगी भी कितने मोड़ लेती है, तब पूरी होती है।" रुचिता ने कहा।

"सच बात कही। इस जिंदगी के मोड़ अंत तक समझ में नहीं आते।" ऋत्विक ने कहा।

पहली बार रुचिता ने ऋत्विक से इतनी बात की थी। वह मन ही मन खुश था। रुचिता भी खुश थी। दिल की बात कहने वाला उसे एक दोस्त मिल गया था। दोनों ने एक-दूसरे के मोबाइल नंबर लिए और सभी अपने-अपने घर के लिए रवाना हो गए।

अगले दिन रुचिता के भाई-भाभी उसके घर आए। रुचिता उन्हें देख कर खुश हो गई। उसकी भाभी के हाथ में एक चिट्ठी थी। उसने वह चिट्ठी रुचिता को दी तो उसने उसे धड़कते दिल से खोला। उसकी स्याही फीकी पड़ गई थी। रुचिता ने उसे पढ़ा, "रुचिता, तुम्हें देखते ही पहली नजर में मुझे प्यार हो गया है, परंतु अगर मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं तो मैं उस प्यार को अपने दिल में ही रखूंगा। क्योंकि मैं जिसे प्यार करता हूं, उसे हमेशा के लिए खुश देखना चाहता हूं। अगर तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार हो तो मैं तुम्हें पूरे जीवन अपनी पलकों पर बैठा कर रखूंगा। तुम एक बार मुझसे मिलने जरूर आना। नहीं तो तुम्हारा प्यार मेरे दिल में कैद रहेगा।"

रुचिता की आंखों में आंसू थे। उसकी भाभी ने कहा, "इस चिट्ठी की स्याही जरूर फीकी पड़ गई है, पर ऋत्विक के दिल में अभी यह प्यार धड़क रहा है। देखो न, इसीलिए तुम दोनों ने अपने बच्चों के नाम एक-दूसरे के नाम पर रखे हैं। देखो रुचिता, कुदरत ने तुम दोनों को एक जैसा दुख दिया है तो तुम दोनों एक-दूसरे का सहारा बन कर जी सकते हो। ऋत्वी और रुचित को माता-पिता का प्यार मिलेगा। अभी तुम्हारी उम्र पैंतीस साल है। अभी तुम्हें जीवनसाथी की जरूरत है। अगर जीवनसाथी के रूप में पुराना प्रेमी मिल रहा हो तो इसमें गलत क्या है। रिधम के भी तो अंतिम शब्द यही थे कि जो मेरी ऋत्वी को प्यार करे, इस तरह का जीवनसाथी खोज लेना। अपने लिए नहीं तो ऋत्वी के लिए ही विवाह कर लो। रिधम की याद तो तुम्हारे साथ हमेशा ही रहेगी।"

रुचिता की सास ने कहा, "बेटा, मेरी भी यही इच्छा है। मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है बेटा। मैं तो पतझड़ के पत्ते की तरह हूं। तुम ऋत्विक को अपने जीवन में जगह दे दो।"

थोड़ा सोच कर रुचिता बोली, "ऋत्विक को यह बात स्वीकार है। पर मेरी एक शर्त है। उसे मेरे साथ मेरी मम्मी को भी स्वीकार करना पड़ेगा। इस समय तो मैं ही उनकी बेटी और बेटा हूं। उनकी देखभाल की जिम्मेदारी मेरी ही है। अगर उन्हें स्वीकार हो तो मैं तैयार हूं।"

अगले दिन सवेरे ही ऋत्विक और अनिता सगाई की चुनरी ले कर आ गए, साथ में रुचित को भी ले आए थे। ऋत्विक रुचिता की सास के पैर छूते हुए बोला, "आज से आप मेरी मां हैं। मैं आप को कभी दुखी नहीं होने दूंगा।"

रुचिता की सास की आंखें छलक आईं। ऋत्विक में उन्हें रिधम का चेहरा दिखाई दिया। उन्होंने ऋत्विक के सिर पर हाथ फेरा तो उसने उनकी गोद में सिर रख दिया। बहुत दिनों बाद मां का प्यार मिला था।

ऋत्विक और रुचिता पुराने प्रेमी से एक-दूसरे के जीवनसाथी बन गए थे।

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