कालगणना की पद्धतियां तथा राजे व ऋषि: kaal ganana
kaal ganana: प्रथम अध्याय में आपने महाराज मनु से लेकर श्री राम तक में उनके पूर्वजों की जानकारी पा ली है। श्री राम के प्रथम पूर्वज से ६५वें वंशज का जिक्र पढ़ा। सरयू नदी पर मनु महाराज ने तप किया फिर नगर बसाया , यह थी अयोध्या। अयोध्या को ही उन्होंने अपनी राजधानी बनाया । उनके सभी वंशज राजाओं-महाराजाओं ने अयोध्या को ही अपनी राजधानी बनाकर , यहां से राज पाठ चलाया।
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सतयुग तथा बाद की कुछ जानकारियां
प्राचीन काल गणना पद्धति के तीन मुख्य प्रकार थे।
प्रथम प्रकार-
युग गणना पद्धति:
सत, त्रेता, द्वापर, कलि आदि युगों की कल्पना पर अधिष्ठित।
दूसरा प्रकार-
मन्वन्तरकाल गणना पद्धति:
स्वयंभुव, स्चारोचित आदि चौदह मन्वन्तरों की कल्पना पर अधिष्ठित।
तीसरा प्रकार-
सप्तर्षि युग की कल्पना: आकाश में स्थित सप्तऋषि ग्रहों की स्थिति के माध्यम पर आधारित तथा खगोल शास्त्र से सम्बन्धित।
युग गणना पद्धति
युग गणना पद्धति के अनुसार ब्रह्म का एक दिन एक हजार पर्यायों में विभाजित किया गया है। इनमें से हर एक पर्याय निम्नलिखित चार युगों से बनता है-
कृत युग: 17, 28, 000 वर्ष
त्रेता युग: 12, 96, 000 वर्ष
द्वापर युग: 8, 64, 000 वर्ष
कलियुग: 4,,32,,000 वर्ष
जोड़ = 43, 20, 000 & 1000
= 43, 20, 00, 000 वर्ष एक विद्वान ने तो ऐसा भी कह दिया, 'लगता है कि यह काल गणना अतिश्योक्तिपूर्ण है।Ó सुप्रसिद्ध इतिहासकार जयचन्द्र विद्यालंकार के अनुसार युगाब्धि तथा काल विभाजन इस प्रकार होना चाहिए, वैवस्वत मनु से महाभारत युद्ध तक 94 पीढ़ियां।
इसके अंतर्गत प्रथम पीढ़ी से 40वीं पीढ़ी राजा सगर तक कृत युग (सतयुग) की समाप्ति, राम दशरथी 65वीं पीढ़ी के साथ त्रेतायुग का अन्त, कृष्ण के देहावसन 95वीं पीढ़ी के साथ द्वापर युग की समाप्ति तथा वर्तमान समय तक कलियुग का काल होना।इस काल मर्यादा के अनुसार कृत युग 40&16=640 वर्ष, त्रेतायुग 41 से 65 पीढ़ी तक अर्थात 25 पीढ़ियों के लिए 16 वर्ष प्रति पीढ़ी के हिसाब से 25&16=400 वर्ष। द्वापर युग 66 से 95 की पीढ़ी तक अर्थात राम से कृष्ण तक 30&16=480 वर्ष तथा महाभारत युद्ध के पश्चात। यह युद्ध चौदह सौ इसवीं पूर्व माना जाता है। यह युद्ध ठीक गणना के अनुसार 1420 ईस्वी पूर्व हुआ निर्धारित किया जाता है और इस प्रकार युगों की काल गणना आगे दी है।
कृत (सत) युग: 2950 ई. पूर्व से 5300 ई. पूर्व
त्रेता युग: 2500 ई. पूर्व से 1900 ई. पूर्व
द्वापर युग: 1950 ई. पूर्व से 1425 ई. पूर्व
कलियुग: 1425 ई. पूर्व से अब तक
प्रसिद्ध ऋषि जो कृत युग में तत्पर रहे, कुछ राजा भी
जैसा कि पहले कहा है, कृत युग को ही दूसरा नाम सतयुग मिला, जिसे कहीं-कहीं सत्ययुग भी कहा गया है। इस सत युग में जो अति प्रसिद्ध ऋषि हुए तथा विश्व को अपने समय में भी दिशा-निर्देश दिया करते थे। उनके बताए मार्गों पर ही त्रेता, द्वापर युग चले। कहीं-कहीं कलियुग में भी उनके उपदेशों का पालन होता है। ऐसे अति प्रसिद्ध ऋषियों तथा राजाओं की सूची निम्नलिखित सर्वमान्य है।