कनेर-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Kahani: "ए लड़की……चाय कितने की दी"?
ये रौबदार शब्द सुनते ही सर झुकाये हुए चाय बना रही उस लड़की ने जैसे ही अपना चेहरा ऊपर उठाया …
तो पाया काले पठानी सूट में एक युवा खड़ा था। चौड़ा माथा ,नीली आंखे, लम्बा क़द और पीठ पर बैगपैक लटकाये,।
उसकी आवाज़ बड़ी सर्द थी ,लड़के का उसका मासूम चेहरा देखकर गुस्सैल स्वर ठंडा पड़ने लगा…..
पर लड़की का दिमाग़ गर्म हो गया और जब उसके गुलाब से होंठ खुलने को आतुर हुए
तो आगन्तुक का मुँह खुला का खुला राह गया औऱ वो अपनी पलकें झपकाना ही भूल गया
पुराने काश्मीरी फेरन में लिपटी उस लड़की के चेहरे में ,कुछ तो बात थी….उसका चम्पई रँग जैसे दूध में केसर घुला हो और बड़ी-बड़ी आँखे बिन कहे बहुत कुछ बोल जातीं ।
ए…….लड़की नहीं कुछ नाम भी है मेरा, ठीक से बात नहीं कर सकते तुम ,वो तुनक कर बोली।
दस रुपये से लेकर पच्चीस तक की है।
पर ये बताओ… तुम्हें तमीज़ नहीं बात करने की ….?
अरे चाय खरीद रहे हो तो मेरी भी लागत लग रही है कोई मुफ्त में नहीं लेरही पैसे तुम्हारे……
कनेर…..ये क्या करती तुम?
अरी चन्दा ….हेलीकॉप्टर …..गाहक ख़ुदा के माफ़िक होता ए……अन्दर से आती आवाज़ ने उसकी सोच पर विराम लग गया।
माफ़ करना साब बिन मॉंबाप का बच्ची ए ….उस बुजुर्ग रहमत बाबा ने दोनोँ हाथ जोड़ दिए और आफ़ताब उसकी लकड़ी की दुकान से चाय पीकर थोड़ी साथियों के लिये लेकर घने जँगल में लंबे डग भरते हुए ग़ुम हो गया …..
पर वो जँगल के साथ कनेर में भी ग़ुम हो गया था,धीरे धीरे अब वो अपने साथियोँ के साथ उधर चाय पीने आने लगा….
आए दिन होनेवाली मुलाकातों और उसके अच्छे व्यवहार के सामने अकडू कनेर के तेवर भी नरम पड़ने लगे।
अब लकड़ी की बेंच पर लड़कों का झुण्ड चाय पीते पीते रहमत बाबा से थोड़ा खुलने लगा था।
"बाबा ये लड़की आपकी बेटी है"आफ़ताब ने फुसफुसा कर पूछा।
रहमत -"ओये लाले दी जान बेटी से बढ़कर ऐ मेरे जिगरी यार की अमानत ए…..इसका बाप मेरा बड़ा जिगरी यार था….सीना ठोंकते हुए फ़ौजी था मेरा यार फौजी।"
आफ़ताब-था का क्या मतलब है चाचा….
अब नहीँ है ,लड़ाई में घायल हुआ और ऊपरवाले को प्यारा हो गया….उसकी वर्दी आई थी घर और ये कनेर इसकी माँ ,की गोद में महीने भर की ही थी।
ये खबर सुनकर वो सदमें में आ गयी और चल बसी,बस आख़िरी बखत में जिम्मेदारी दे गई इसकी।
दुकान के पास ये दरख़्त देखरहे हो कनेर का इसी के नीचे ये झूले मे पड़ी रहती थी।इसीलिये मैंने इसका नाम कनेर रखा ।
इसका चेहरा उतना ही पाकीज़ा जो है ,कहकर रहमत का मन ,थोड़ा उदास हो गया।
उसदिन आफ़ताब के मन में और प्यार भर गया कनेर के लिये,उसने उसे यही बताया था कि पढ़ने आया हूँ इधर और घर का खाना याद करता हूँ।
कनेर भी अब कभी कभी कोई अच्छी चीज बनाती तो उसके लिये बचा रखती।
वक़्त की कोख़ में प्रेम का बीज पड़ गया था और अंकुर फूटने लगे थे।अब कनेर अपने रूपरँगपर ध्यान देने लगी।
उसके आसपास आफ़ताब नाम की खुशबू जैसे हवा में घुली घुली सी थी।कुछ खोई खोई और शरमाई सी रहने लगी वो कभी तुनकमिजाज
समझी जानेवाली लड़की।
आफ़ताब भी बाहर जाता तो अपना सामान उसके पास रख जाता।हाँ इस बार जाने से पहले एक अँगूठी भी लाया था और रहमत बाबा को देकर बोला, कुछ दिनों के लिए जा रहा हूँ बापस आते ही इसे पहनाकर शादी करूँगा
ये मेरे माँ की है,जल्द ही कनेर मेरी शरीक ए हयात बनेगी"।
रहमत को भी इस रिश्ते से कोई एतराज न था अंदर खड़ी …कनेर के .इतना सुनते ही ,गालों पर सैकड़ों जैसे गुलाब की धनक उतर आई।
आफ़ताब जा चुका था दो दिन के लिए,कनेर भी खाली समय काटने की गरज़ से जँगल की नदी पर कपड़े धोने चली गयी।
और ताज़ा हवा के झोंकों के कारण एक झपकी लेने लगी पास बने घाट पर।
इतने में एक जानी पहचानी आवाज़ कान के परदे से टकराई……
सब ओके आधा बम का जखीरा बूढ़े की झोपड़ी में है और उसकी टपरी पर चाय पीने के बाद आठ बजे हम सब अपने इलाके पर निकल पड़ेंगे…..
उसके बाद धमाके और तबाही और ठहाके गूँज उठे वीरानी में
उफ़्फ़… कनेर के पैरों में जान न थी,खुशहाल जिन्दगी बच्चे क्या कुछ नहीं चाहती थी वो ज़िन्दगी से ।उसकी हाँ बाकी थी बस…
वो मरे मरे कदमों से लौट आई,रातभर दुविधा में झूलती रही एकतरफ प्यार था तो दूसरी तरफ फ़र्ज़।
सुबह उसने अपने टीन के बक्से को खोला ,एकलौती तसवीर माँ बाप की देखी फ़ौजी की वर्दी पर उंगलियों को फिराया।
बोली बाबा मेरे कर्म काले है….परछाईं काली ही होती है… बाबा पर चिंता मत करो इसबार मेरा कद काया से बड़ा निकलेगा।
फिर वो कहीँ चली गयी।दुकान पर दरख़्त से कुछ तोड़कर आँचल में बांधा और खाने की तैयारी करने लगी ।
दोपहर तक आफ़ताब अपनी टोली के साथ हाज़िर हो गया,रहमत बाबा ने कहा ,बेटा..मेरी ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं ।
चाहो तो . खाना खाकर आज ही सगाई पक्की कर लो।
आफ़ताब ने भी हाँ कह दिया फर्श पर दस्तरख्वान बिछा था शरमाई सी कनेर ने पहला मिठाई का टुकड़ा आफ़ताब के मुँह में दिया।
रहमत ने उसके दोस्तों के और कुछ मिनटों में ही उन सबका मुँह कड़वा होकर सिर चकराने लगा,और धीरे धीरे गिरने लगे दम तोड़ते आफ़ताब ने पूछा ये क्या ?
कनेर ने कहा कनेर के फूल देवता पर चढ़ते हैं पर उसके बीज जहरीले भी होते हैं ,और जानलेवा भी ,मेरा नाम कनेर है।
तो देश के दुश्मन को कैसे जाने दूँ बाबू…
आफ़ताब फटी फटी आँखों से उसे देखते हुए गिर पड़ा ,पास छुपी हुई पुलिस से सबको अपने कब्जे में ले लिया और अस्पताल भेज दिया।
थोड़ी देर में रहमत की झोपड़ी विस्फोटों से दहल उठी,
आफ़ताब बच तो गया पर अपंग हो गया था,उसे उम्रकैद की सज़ा हुई उसके कुछ साथी खत्म हो गए।
इंस्पेक्टर साहब ने कनेर की सिफारिश की ईनाम के लिए और उस फ़ौजी की परछाईं ने कहा मुझे भी उम्रक़ैद मिले और आफ़ताब के पास खड़ी हो गयी।