आओ करें भारत की खिचड़ी यात्रा: Khichdi
Khichdi: मसाले के साथ दाल और चावल की एक गर्म कटोरी या प्लेट अगर पेट भरने को मिल जाए तो फिर कहना ही क्या। देश में शायद ही कोई जगह ऐसी होगी, जहां खिचड़ी को चाव से न खाया जात हो। हां, यह जरूर है कि जैसे-जैसे भारत की भौगोलिक स्थिति बदलती है, संस्कृति और खानपान में बदलाव आता है, खिचड़ी को बनाने और उसे खाने के तरीके भी बदल जाते हैं। कम समय में तैयार और स्वाद व पौष्टिकता से भरपूर खिचड़ी को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से पुकारा और बनाया जाता है। लेकिन जैसे ही पहला चम्मच आपके मुंह में जाता है, वैसे ही यह व्यंजन अपना स्वाद और खासियत बता देता है।
Khichdi: कैसे बनी खिचड़ी?
खिचड़ी शब्द संस्कृत शब्द ‘खिचा’ से आया है, जिसका अर्थ है चावल और फलियों का व्यंजन। ज्यादातर, खिचड़ी चावल और दाल से बनाई जाती है, लेकिन कुछ अन्य क्षेत्रीय विविधताएं भी ,हैं जैसे बाजरा खिचड़ी और मूंग खिचड़ी। हिंदू संस्कृति में, यह बच्चों द्वारा खाए जाने वाले पहले ठोस खाद्य पदार्थों में से एक है। इसके अलावा, खिचड़ी को एंग्लो इंडियन डिश ‘केडगेरी’ के पीछे की प्रेरणा माना जाता है। एक डिश जिसमें पकी हुई मछली, उबले हुए चावल, अजवायन, उबले अंडे, करी पाउडर, मक्खन या क्रीम आदि डाले जाते हैं।
प्राचीन इतिहास
खिचड़ी का सबसे पहला संदर्भ भारतीय महाकाव्य ‘महाभारत’ में पाया जा सकता है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह घटनाएं 9वीं और 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच हुई थीं। कहा जाता है कि ‘महाभारत’ में द्रौपदी ने पांडवों को वनवास के दौरान खिचड़ी खिलाई थी। सुदामा की कहानी में भी खिचड़ी का जिक्र है। ग्रीक राजा सेल्यूकस ने 305-303 ईसा पूर्व के बीच भारत में अपने अभियान के दौरान उल्लेख किया कि दालों के साथ चावल भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
खिचड़ी और मुगल
इतिहासकारों के अनुसार, मुगलों के कारण ही खिचड़ी उपमहाद्वीप में प्रमुखता से बढ़ी। अकबर खिचड़ी का बहुत शौकीन था। अन्य मुग़ल बादशाहों में, जहांगीर को पिस्ता और किशमिश से समृद्ध एक मसालेदार खिचड़ी का बहुत शौक था। रमजान में औरंगजेब को खिचड़ी बहुत पसंद थी और बहादुर शाह जफर को मूंग की दाल की खिचड़ी खाने में इतना मजा आता था कि दाल को ‘बादशाह पसंद’ के नाम से जाना जाने लगा।
खिचड़ी और ब्रिटिश राजघराना
खिचड़ी महारानी विक्टोरिया के साथ-साथ इंग्लैंड भी गई थी। उन्हें खिचड़ी का स्वाद तब आया जब उनके उर्दू ट्यूटर मुंशी अब्दुल करीम ने उन्हें खिचड़ी खाने को दी। लेकिन उन्हें चावल में मिली हुई मसूर की दाल पसंद थी, जिसका सूप अक्सर उन्हें परोसा जाता था। इस तरह दल को ‘मलिका मसूर’ के नाम से जाना जाने लगा।
आज, भारत में हर क्षेत्र की क्लासिक डिश खिचड़ी है। बच्चे के पहले भोजन के रूप में इसे परोसने से लेकर बीमार व्यक्ति के लिए आसानी से पचने योग्य और पौष्टिक भोजन तक, खिचड़ी विविध अवसरों का एक हिस्सा है।
खिचड़ी एक, नाम अनेक
मोंगखासर, बली, काले उड़द की खिचड़ी, छोलिया खिचड़ी, भोजपुरी खटुआ खिचड़ी, तिल की खिचड़ी, खर्ची, गढ़वाली खिचड़ी, साबुत मूंग की खिचड़ी, हरियाली मटकी खिचड़ी, शैम्ब्रे, भाजा दाल खिचड़ी, बोरा शाऊल खिचड़ी, बाजरे की खिचड़ी, गलहो, भागलपुरी खिचड़ी, साबुत मसूर की खिचड़ी, गट्टा खिचड़ी, जदोह और मणिपुरी खिचड़ी आदि।