जानिए क्या होती है स्लो पेरेंटिंग और क्या हैं इसके फायदे व नुकसान: Slow Parenting
Slow Parenting: बच्चे का पालन-पोषण करना कोई आसान काम नहीं है। हर बच्चा अलग होता है और इसलिए हर पैरेंट का बच्चे को हैंडल करने का अपना एक अलग तरीका होता है। हो सकता है कि पेरेंटिंग को लेकर हर पैरेंट कपल की अलग राय हो। किसी भी पैरेंट कपल को पूरी तरह से सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता। जहां एक बच्चे के लिए कुछ चीजें काफी अच्छी तरह से काम करती है, वहीं दूसरे बच्चे के लिए कुछ अलग तरीके अपनाने की जरूरत हो सकती है। यही कारण है कि हर पैरेंट का अपना एक अलग पेरेंटिंग स्टाइल होता है।
इन्हीं पेरेंटिंग स्टाइल में से एक है स्लो पेरेंटिंग । यह एक ऐसा कॉन्सेप्ट है, जो वास्तव में बच्चों को धीमी गति और सरल जीवन जीने देने के बारे में है, ताकि वे अपनी गति से दुनिया की खोज कर सकें। यह बच्चों को अपने लिए काम करने, स्वतंत्र रूप से खेलने और दूसरों के निर्देश पर बहुत अधिक भरोसा न करने की अनुमति देता है। जहां कुछ लोग स्लो पेरेंटिंग को अच्छा मानते हैं, वहीं कुछ लोग इसके पक्ष में नहीं हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको स्लो पेरेंटिंग के बारे में विस्तारपूर्वक बता रहे हैं-
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स्लो पेरेंटिंग क्या है?
स्लो पेरेंटिंग एक ऐसा पेरेंटिंग स्टाइल है, जिसमें बच्चों को खुद बढ़ने, दुनिया का पता लगाने और अपने फैसले लेने का मौका दिया जाता है। उन्हें किताबों से प्राप्त सैद्धांतिक ज्ञान के बजाय प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस के माध्यम से सिखाया जाता है। हालांकि, यहां यह भी समझना जरूरी है कि स्लो पेरेंटिंग में स्लो का मतलब यह नहीं है कि बच्चे को कुछ भी ना सिखाया जाए। वास्तव में इसका अर्थ है कि हर काम को उचित गति से किया जाए। यह एक ऐसा कॉन्सेप्ट है, जो क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी पर फोकस करता है। जब पैरेंट्स अपने बच्चे का पालन पोषण इस पेरेंटिंग स्टाइल से करते हैं तो वे बच्चे पर अतिरिक्त दबाव नहीं डालते हैं। वास्तव में, यह पैरेंट्स को वर्तमान में और खासतौर से, उस पल में मौजूद रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
ऐसे पैरेंटस अपने बच्चों को हर चीज़ बेस्ट देने के चक्कर में नहीं उलझते। इसके बजाय, वे अपने बच्चों को खुद यह पता लगाने की अनुमति देते हैं कि वे कौन हैं। कभी भी ऐसे पैरेंट्स अपनी इच्छाएं बच्चों पर नहीं थोपते हैं।
जो पैरेंट्स स्लो पेरेंटिंग स्टाइल को फॉलो करते हैं, वे यह जानते हैं कि बच्चे का डेवलपमेंट लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह एक यात्रा है, जिसमें बच्चा खुद अपने एक्सपीरियंस से काफी कुछ सीखता है और चीजों को बेहतर तरीके से समझता है। अगर आसान शब्दों में कहा जाए तो स्लो पेरेंटिंग का मतलब बच्चों को बिना किसी शर्त के ढेर सारा ध्यान और प्यार देना है।
स्लो पेरेंटिंग के फायदे
चूंकि आज के समय में पैरेंट्स अपने बच्चों को हर जगह जीतते हुए देखना चाहते हैं, इसलिए वे स्लो पेरेंटिंग के पक्ष में बहुत अधिक नहीं हैं। हालांकि, स्लो पेरेंटिंग के कई फायदे हैं-
- यह बच्चे को आत्मनिर्भर बनाता है। बच्चा अपनी जरूरतों के प्रति अधिक जागरूक हो जाता है। इतना ही नहीं, वह उन्हें पूरा करना भी सीख जाता है।
- जब बच्चा खुद चीजों को एक्सप्लोर करता है तो यह उसे अधिक आत्मविश्वासी बनाता है। यह पेरेंटिंग स्टाइल उसे अपने घर की सीमा से परे की दुनिया के बारे में अधिक जागरूक बनाता है। इसका एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि जब बच्चा नई सिचुएशन में आता है, तो वह उन्हें बेहतर ढंग से संभालता है।
- यह बच्चे की क्रिएटिविटी में भी सुधार करता है। वह नई चीजों व सिचुएशन को एक्सप्लोर करने से कतराता नहीं है। उसे अपनी स्वयं की समस्याओं से निपटने के बारे में समझ आता है। वह समस्याओं को हल करने के नए तरीके खोजने में सक्षम हो पाता है। स्लो पेरेंटिंग बच्चे को अपनी समस्याओं को सुलझाने की प्रक्रिया में अधिक क्रिएटिव बनाती है।
- ऐसे बच्चे जीवन में तनाव को भी संभालना सीख जाते हैं। चूंकि बचपन से उन्होंने खुद को हैंडल करना सीखा है, इसलिए नेगेटिव सिचुएशन भी उन्हें तनावग्रस्त नहीं बनाती हैं।
स्लो पेरेंटिंग के नुकसान
जहां स्लो पेरेंटिंग के कई फायदे हैं, वहीं इसके नुकसान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है-
- स्लो पेरेंटिंग स्टाइल में बच्चे के गलत संगत में पड़ने की संभावना कई गुना होती है। चूंकि बच्चे को पूरी आजादी दी जाती है, इसलिए बच्चा एंटी-सोशल एक्टिविटीज या गलत लोगों के संपर्क में आ सकता है।
- कई बार बच्चा ऐसी सिचुएशन में शामिल हो सकता है, जो उसके लिए इतनी जोखिम भरी हो कि उसे संभालना उसके लिए मुश्किल हो। अगर बच्चा उतना मैच्योर नहीं है तो उसके लिए सिचुएशन को अकेले संभाल पाना संभव नहीं हो पाता।
- ऐसे में कई बार बच्चा नशे का आदी हो सकता है। वह चीजों को खुद समझने व एक्सपेरिमेंट करने के चक्कर में गलत हरकतों का आदि हो सकता है। चूंकि स्लो पेरेंटिंग स्टाइल में पेरेंट्स बच्चे को पूरी आजादी देते हैं। ऐसे में उन्हें कई बार इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि उनका बच्चा गलत आदतों का शिकार हो चुका है।
- स्लो पेरेंटिंग स्टाइल में बच्चे पर किसी भी तरह की बाउड्रीज नहीं होती हैं। यह कभी-कभी बच्चे के लिए काफी नुकसानदायक भी साबित हो सकता है।