कुछ तो खास है हमारे बनारस नगरी में—गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Story in Hindi: उस शहर की बात ही कुछ और होती है जहां आदमी आंखे खोलता है। ऐसा ही शहर है मेरा बनारस। यह वह शहर है जिसके कण—कण में भगवान शिव का वास है। अडभंगी शिव के मिजाज वाले इस शहर के लोग भी उतने ही अडभंगी है। न नफासत न दिखावा। चाहिए तो बस मस्ती भरी सुबह से लेकर देर शाम तक का जीवन सफर। ये वह शहर हेैं जहां मौत का भी उत्सव मनाया जाता है। अप्रेैल की नवरात्री में मणिकर्णिका घाट पर जहां एक तरफ चिता जलती है तो दूसरी तरफ गणिकाओं का मंत्रमुग्ध कर देने वाला नृत्य।
वे जानते है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य मौत है तो फिर क्यों नहीं जीवन को निर्विकार भाव से जीया जाए। शिव के त्रिशूल पर बसे इस शहर में नटराज की नृत्य संगीत परंपरा को आत्मसात करने वाले बनारस घराने के महान्विभूतिओं ने पूरे दुनिया में बनारस का डंका बजाया हैं।
पंडित रविशंकर ,गोपीकृष्ण, पंडित किशन महाराज,सितारा देवी,राजन साजन मिश्रा,बिसमिल्ला खान,छन्नू महराज आदि अनगिनत कलाकारेां ने इस शहर का मान बढाया है। पंचगंगा घाट पर कबीर दास केा गुरूमंत्र यही मिला था। मानव कल्याण के लिए अपना पहला उपदेष गौतम बुद्व ने इसी शहर में दिया था। महान नाटककार आगाहश्र कशमीरी की जन्मस्थली इसी शहर में है। महान् उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद इसी शहर के नगीना थे। मुंह में पान घुलाकर पूरी दुनिया को अपने ठेंगे पर रखने वाले इसी शहर के वासिंदे हेै। स्त्रियों के सुहाग का प्रतीक बनारसी साडी इसी शहर की शान है। और तो और प्रकृति ने भी इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए सुबहे बनारस का तोहफा दिया है जिसका लुफ्त उठाने दूर दूर से लोग आते है। अलसुबह जब सूरज की किरणें मंदिरों के ऊपर पडती है तो लगता है मानो सारे मंदिर स्वर्ण से नहा उठे हो। कार्तिक पूर्णिमा के दिन जब देर शाम इस शहर की 80 घाटों पर एक साथ दिये जलाये जाते है तो ऐसा लगता है आसमान के सारे तारे घाटों पर उतर आये हो। इस अद्भुद छटा को देखने लाखों लेाग हर साल बनारस आते है। जीवन मृत्यु के झंझटों से मुक्त कर देने वाली काशी में यूं ही शिव मरणोपरांत कानों में तारक मंत्र नहीं फूंकते। कुछ तो खास हैं हमारी बनारस नगरी।
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