For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

कुम्भ का ज्योतिषीय कारण: Kumbh Festival

09:00 AM Jan 21, 2023 IST | grehlakshmi hindi
कुम्भ का ज्योतिषीय कारण  kumbh festival
Advertisement

Kumbh Festival: हिन्दू धर्म का एक बेहद महत्त्वपूर्ण पर्व कुम्भ धार्मिक, पौराणिक, सामाजिक व ज्योतिष हर रूप में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कुम्भ पर्व सिऌर्फ भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में किसी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण माना गया हैं। इस पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु एक स्थान पर एकत्रित होकर स्नान करते हैं। कुम्भ का पर्व प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में लगता है तथा हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। वहीं हरिद्वार और प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुम्भ भी होता है। वर्षों से बेहद हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले इस धार्मिक पर्व कुम्भ के इतिहास के बारे में कुछ भी ठीक-ठीक कह पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन इतिहास में कुम्भ के मेले का सबसे पुराना उल्लेख महाराजा हर्ष के समय का मिलता है, जिसको चीन के ऌप्रसिद्घ बौद्ध भिक्षु ह्रेनसान ने ईसा की सातवीं शताब्दी में आंखों देखी वर्णन का उल्लेख किया है। इस पौराणिक कथाओं के बारे में तो बहुत कुछ सुना व पढ़ा गया है लेकिन इसके ज्योतिषी महत्त्व से अभी तक लोग अनजान है। तो चलिए जानते हैं कुम्भ का ज्योतिषीय महत्त्व-

Kumbh Festival: समय का है विशेष महत्त्व

कुम्भ पर्व का आयोजन एक विशेष समय के दौरान किया जाता है। ज्योतिष की नजर में इस समय का अपना एक विशेष महत्त्व है। जब भी गुरु स्थिर राशि होता है। बता दें कि दूसरी वृष राशि, पांचवी सिंह राशि, आठवीं वृश्चिक राशि व ग्यारहवीं कुम्भ राशि को स्थिर राशि कहा जाता है। उस समय कुम्भ के महामेले का आयोजन किया जाता है। ग्यारहवीं कुम्भ राशि में जब गुरु कुम्भ राशि में होता है तो भव्य महाकुम्भ आयोजित होता है। यह भव्य महाकुम्भ मेला हरिद्वार में लगता है।
गुरु की स्थिति हमेशा बदलती है लेकिन जब गुरु स्थिर राशि में प्रवेश करता है तो उस दौरान कुम्भ पर्व आयोजित किया जाता है। यूं तो हर तीन साल में गुरु राशि बदलता है और हर राशि में एक साल रहता है। गुरु स्थिर हो गया है तो चेले उसके पास जा सकते हैं। इसलिए इसे महामेला कहते हैं।

गुरु का महत्त्व

ज्योतिष में सभी ग्रहों में से गुरु ग्रह को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। यह व्यक्ति की बुद्धि व विवेक का नियामक है। ज्योतिष में गुरु की दृष्टि को गंगाजल के समान पवित्र व महत्त्वपूर्ण माना गया है। जिस व्यक्ति को गुरु का आशीर्वाद व उसकी कृपा दृष्टि प्राप्त होती है, उसके जीवन में कभी दुखों का आगमन नहीं होता। गुरु का महत्त्व इसी से समझा जा सकता है कि व्यक्ति की कुंडली के जिस स्थान पर गुरु की दृष्टि होती है, वह भाव व्यक्ति का तर जाता है।

Advertisement

समझें स्थिति

Kumbh Festival
Kumbh Festival 2023

गुरु के महत्त्व को जानने के पश्चात ग्रहों की चाल को समझकर कुम्भ के विशेष समय का आकलन किया जाता है।
पहला– जब सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में तथा गुरु वृष राशि में आते हैं, तो प्रयाग में भव्य महाकुम्भ होता है।
दूसरा– जब कुम्भ राशि में गुरु हो एवं सूर्य मेष राशि में होता है, तब हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन होता है।
तीसरा– सिंह राशि में गुरु और सूर्य एंव चन्द्र कर्क राशि में भ्रमण करते हैं, तब नासिक (पंचवटी) में कुम्भ मेले का आयोजन होता है।
चौथा– जब तुला राशि में सूर्य आये तथा गुरु वृश्चिक राशि में भ्रमण करें, इस योग में उज्जैन में कुम्भ के पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उज्जैन में कुम्भ को सिंहस्थ कहा जाता है क्योंकि इस समय गुरु सिंह राशि में होता है।

महत्त्वपूर्ण है स्नान

कुम्भ मेले के दौरान स्नान को विशेष महत्त्व दिया गया है। धार्मिक व ज्योतिष दोनों की ही नजर से, कुम्भ के दौरान स्नान करने से सभी तरह के पाप धुल जाते हैं। यहां तक कि जिन लोगों के जीवन में शनि की साढ़ेसाती चल रही हो या फिर राहु की महादशा का नकारात्मक प्रभाव उनके जीवन पर हो, उन्हें भी कुम्भ के महापर्व में स्नान अवश्य करना चाहिए। वहीं जिन लोगों का गुरु नीच राशि में हो, या फिर वक्रीय हो उनके लिए भी कुम्भ स्नान विशेष रूप से फलदायी माना गया है। इससे उनके जीवन में आने वाले कष्टों का निवारण होता है।
ज्योतिषाचार्य मनोज जुयालसे बातचीत पर आधारित

Advertisement

Advertisement
Tags :
Advertisement