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कुम्भ का अर्थ: Kumbh Meaning

08:00 AM Jan 17, 2023 IST | grehlakshmi hindi
कुम्भ का अर्थ  kumbh meaning
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Kumbh Meaning: कुम्भ का नाम लेते हीं हमारे जहन में एक मेले का चित्र उभरता है, जिसमें साधु-संतों का जमावड़ा, स्नान करते लोग दिखाई पड़ते हैं। किंतु आस्था के इस मेले जिसे कुम्भ कहा जाता है, इसका अर्थ हम नहीं जानते, कुम्भ के इस गुढ़ अर्थ को आइए जानते हैं लेख से।

कुम्भ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ कलश होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्त्व है। कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रुद्र्र, आधार को ब्रह्मïा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को संपूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है। यह चारों वेदों का संगम है। इस तरह कुम्भ का अर्थ पूर्णत: औचित्य पूर्ण है। वास्तव में कुम्भ हमारी सभ्यता का संगम है। यह आत्म जाग्रति का प्रतीक है। यह मानवता का अनंत प्रवाह है। यह प्रकृति और मानवता का संगम है। कुम्भ ऊर्जा का स्त्रोत है। कुम्भ मानव-जाति को पाप, पुण्य और प्रकाश, अंधकार का एहसास कराता है। नदी जीवन रूपी जल के अनंत प्रवाह को दर्शाती है। मानव शरीर पंचतत्त्व से निर्मित है यह तत्त्व हैं-अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश। ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिह्नï है।
कुम्भ यानी घड़ा। घड़ा पृथ्वी और गर्भ की तरह गोल होता है, जिसके भीतर गहराई और अन्धकार दोनों होते हैं। गहराई और अन्धकार प्रतीक हैं रहस्य का, अनंतता का, सृजनशीलता का। जिस तरह स्त्री और पृथ्वी के गर्भ में जीवन पलता, पनपता और आकार लेता है उसी तरह कुम्भ भी अपने भीतर ऊर्जा को स्थान देता है, उसे विकसित करता है। इस आकार में चीजें सरलता से ऊर्जा पाती हैं और किसी अन्य आकार के बनिस्बत लम्बे समय के लिए सुरक्षित रखीं जा सकती हैं। यही कारण है कि गांधारी ने अपनी संतानों की उत्पत्ति के लिए घड़े के आकार को चुना, जिनसे सौ कौरवों का जन्म हुआ।
कलश में रखा जल सरलता एवं शीघ्रता से आस पास की ऊर्जा को ग्रहण करने की क्षमता रखता है, यही कारण है कि हम हवन पूजा एवं धार्मिक अनुष्ठानों में जल से भरे कलश को पास रखते हैं। मन्त्रों एवं आस- पास की आध्यात्मिक ऊर्जा से जल और पवित्र हो जाता है जिसे हम देवताओं पर या पेड़ों पर पूजा उपरांत डालना शुभ मानते हैं। इतना ही नहीं सूर्य को जल देने से पहले भी हम हाथों में कलश लेकर पहले मंत्र पढ़ते हैं ताकि जल शुद्ध हो जाये और अर्पित किया जा सके। पूजा उपरांत मंदिर या चौकी में रखे जल को भी इंसान के ऊपर व घर -दुकान की दीवारों पर छिटकना शुभ माना जाता है। कुम्भ को अपनी क्षमताओं के कारण बहुत पवित्र माना जाता है इसीलिए देवी-देवताओं के चित्रों एवं हर क्षेत्र के पारम्परिक लोक चित्रों में भी इसके आकार का विशेष महत्त्व है।
कुम्भ अर्थात मिट्टी का घड़ा (मटका) मनुष्य के शरीर को पार्थिव पृथ्वी तत्त्व प्रधान कहते हैं। कुम्भ को अर्थात घड़े को मानव देह का प्रतीक माना गया है क्योंकि शरीर मिट्टी से निर्मित है तथा मृत्यु के पश्चात मिट्टी में ही विलीन होता है। हम सभी के मटके (कुम्भ) भी कच्चे ही हैं क्योंकि हमें अपने रूप संपत्ति कर्तव्य इत्यादि का अथवा इनमें से किसी एक का अहंकार होता है। साथ ही हमारा मन कामक्त्रोधादि अनेक स्वभाव दोषों से ओतप्रोत होता है। इस प्रकार अपने अनेक पापों, वासनाओं एवं कामक्त्रोध आदि विकारों से ओतप्रोत देहरूपी कुम्भ को रिक्त करने का सर्वोत्तम स्थल तथा काल है कुम्भ मेला।

Kumbh Meaning: कुम्भ का माहात्म्य

Kumbh Meaning

कुम्भ हमारी संस्कृति में कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। पूर्णता: प्राप्त करना हमारा लक्ष्य है, पूर्णता का अर्थ है समग्र जीवन के साथ एकता, अंग को पूरे अंगी की प्रतिस्मृति, एक टुकड़े के रूप में होते हुए अपने समूचे रूप का ध्यान करके अपने छुटपन से मुक्त। इस पूर्णता की अभिव्यक्ति है पूर्ण कुम्भ। अथर्ववेद में एक कालसूक्त है, जिसमें काल की महिमा गायी गयी है, उसी के अन्दर एक मंत्र है, जहां शायद पूर्ण कुम्भ शब्द का प्रयोग मिलता है, वह मन्त्र इस प्रकार है-
पूर्ण: कुम्भोधिकाल आहितस्तं वै पश्यामो जगत्
ता इमा विश्वा भुवनानि प्रत्यङ् बहुधा नु सन्त:
कालं तमाहु, परमे व्योमन्।

इसका मोटा अर्थ है, पूर्ण कुम्भ काल में रखा हुआ है, हम उसे देखते हैं तो जितने भी अलग-अलग गोचर भाव हैं, उन सबमें उसी की अभिव्यक्ति पाते हैं, जो काल परम व्योम में है। अनन्त और अन्त वाला काल दो नहीं एक हैं; पूर्ण कुम्भ दोनों को भरने वाला है। पुराणों में अमृत-मन्थन की कथा आती है, उसका भी अभिप्राय यही है कि अन्तर को समस्त सृष्टि के अलग-अलग तत्त्व मथते हैं तो अमृतकलश उद्भूत होता है, अमृत की चाह देवता, असुर सबको है, इस अमृतकलश को जगह-जगह देवगुरु बृहस्पति द्वारा अलग-अलग काल-बिन्दुओं पर रखा गया, वे जगहें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं, जहां उन्हीं काल-बिन्दुओं पर कुम्भ पर्व बारह-बारह वर्षों के अन्तराल पर आता है बारह वर्ष का फेरा बृहस्पति के राशि मण्डल में घूम आने का फेरा है। बृहस्पति वाक् के देवता हैं मंत्र के, अर्थ के, ध्यान के देवता हैं, वे देवताओं के प्रतिष्ठापक हैं। यह अमृत वस्तुत: कोई द्र्रव पदार्थ नहीं है, यह मृत न होने का जीवन की आकांक्षा से पूर्ण होने का भाव है। देवता अमर हैं, इसका अर्थ इतना ही है कि उनमें जीवन की अक्षय भावना है। चारों महाकुम्भ उस अमृत भाव को प्राप्त करने के पर्व हैं।
ऐसी मान्यता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पहले ब्रह्मïाजी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था। दश्वमेघ घाट और ब्रह्मïेश्वर मंदिर इस यज्ञ के प्रतीक स्वरूप अभी भी यहां मौजूद हैं। इस यज्ञ के कारण भी कुम्भ का विशेष महत्त्व है। कुम्भ और प्रयाग एक दूसरे के पर्यायवाची है।

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