राजस्थान का कुंभलगढ़,जहां है दुनिया की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी दीवार: Kumbhalgarh Fort
Kumbhalgarh Fort: हम सभी ने ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बारे में तो सुना है। इसके बारे में हमने यह तक सुना है कि यह चांद से दिखाई देती है। लेकिन कभी आपने सुना है ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया के बारे में। जी हां राजस्थान के कुंभलगढ़ किले की दीवार को ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया कहा जाता है। यह एक वर्ल्ड हैरिटेज साइट है। साल 2013 में यूनेस्को ने राजस्थान के छ किलों को वर्ल्ड हैरिटेज साइट्स में जोड़ा था। कुंभलगढ भी उन्हीं किलों में से एक है।
जो कि झीलों की नगरी उदयपुर से 64 किमी राजसामंद शहर में है। इस किले का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 15 वीं शताब्दी में करवाया था। जो कि 15 साल में पूरा हुआ। मुगलों के आक्रमण मेवाड़ पर होते रहे। ऐसा माना जाता है कि अकबर ने भी इस दीवार को तोड़ने की कोशिश की थी लेकिन वह नाकामयब रहा। राजाओं के जमाने में इस गढ़ में लगभग 15,000 लोग रहा करते थे। इस किले के अंदर 360 से अधिक मंदिर हैं। किले की दीवार से अरावली पर्वत श्रृंखला 10 किलोमीटर दूर तक दिखाई देती है। किले की दीवार से 13 पहाड़ियों से घिरी है। यह किला समुद्र की सतह से 1,914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
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Kumbhalgarh Fort: क्या है खासियत
इस दीवार की लंबाई 36 किमी है और चौड़ाई 15 से 25 फीट है। कहा जाता है कि इस पर एक साथ 8 घोडे दौड़ सकते हैं जबकि चीन की दीवार पर एक साथ केवल 5 घोड़े दौड़ सकते हैं। यह दीवार अरावली की पहाडि़यों से घिरी है। आप इसकी दीवार को पूरा एक साथ नहीं देख सकता क्योंकि इसका बहुत सा हिस्सा पहाड़ के पीछे की तरफ है।
कुछ रोचक बातें
दीवार कुंभलगढ़ किले की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी। अगर आप राजस्थान के इतिहास को जरा भी जानते होंगे तो आपने पन्ना धाय की कहानी सुनी ही होगी। पन्ना धाय राणा सांगा के बेटे उदयसिंह की धाय मां थीं। उन्होंने अपने बेटे चंदन की बलि देकर मेवाड़ राज्य के कुलदीपक राजकुमार उदयसिंह की हिफाजत की। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था। इसके अलावा महाराणा सांगा और पृश्वीराज का बचपन भी यहीं बीता है। मुगल बादशाह अकबर से हल्दी घाटी का युद्ध करने वाले महाराणा प्रताप का जन्म भी यहीं हुआ था। इसके अलावा जब वे युद्ध हार गए थे तो यहीं आकर रहे थे। ऐसे में हम कह सकते हैं कि बहुत से इतिहास के पन्ने यहां छिपे हैं।
अजब गजब कहानियां
किलों और महलों में कुछ रहस्मयी कहानियां भी छिपी होती हैं। कहा जाता है कि राणा सांगा जब इस दीवार का निमार्ण करवा रहे थे तो बहुत अड़चनें आ रही थीं। जब उन्होंने बुलाकर किसी पंडित से इस समस्या के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह दीवार तब बन सकेगी जब कोई स्वैईच्छा से बली देगा। इस बात को सुनकर राजा सोच में पढ़ गए तब पंडित ने कहा कि मैं ही बली दूंगा। इस तरह से दस दीवार का निमार्ण हुआ।
कब जाएं
इस गढ़ को आप बारिश या सर्दियों के मौसम में देख सकते हैं। मानसून के दिनों में तो यह किला बादलों से घिर जाता है। इसमें ऊपर की ओर बादल महल है। इन बादलों की वजह से इसका नाम बादल महल रखा गया है। यहां आपको इस दीवार के अलावा बहुत से जैन और हिंदू मंदिरों के दर्शन होंगे। इसके अलावा आप यहां जाकर जान पाएंगे कि आखिर क्या वजह थी कि इस छोटे से शहर में बना यह विशाल किला कोई जीत क्यों नहीं पाया। इसका मेन दरवाजा हनुमान मंदिर है। जिसकी दरवाजे पर नुकीले कीलें लगी हैं। जो इस वजह से बनाई गई थी कि अगर कोई दुश्मन हाथियों के लश्कर के साथ हमला करे तो उसकी कीलें उनकी सूंड में घुसें। वहीं किले में समतल जगहों पर खेती की भी व्यवस्था थी। इसके अलावा पानी को भरने के लिए जलाश्य भी बनाए गए थे। ताकि अंदर से भी गढ़ को बंद कर लिया तो बेसिक जरुरतों के लिए कोई परेशानी न हो।
एक अलग कल्चर आपको नजर आएगा
अगर आपको राजस्थान का एक कल्चर जानना है, तो आपको कुंभलगढ़ जरुर देखना चाहिए। अगर आप दिल्ली से रोड ट्रिप से आते हैं तो हर दस कोस पर बोली और खान-पान में भी फर्क नजर आएगा। उदयपुर से राजसामंद के रास्ते में आपको ऐसे कुंए मिलेंगे जहां आज भी बैलों की मदद से पानी निकाला जाता है। चीन की दीवार को देखना तो आपके लिए थोड़ा महंगा हो सकता है। लेकिन ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया को देखना आपकी जेब के लिए बहुत भारी भी नहीं होगा। यहां की मनुहार को जानने के लिए एक बार जरुर पधारें कुंभलगढ़।