बड़ी उम्र में शादी करना नहीं है आसान, स्वास्थ्य पर पड़ता है असर: Late Marriage Effects
Late Marriage Effects: पिछले दिनों आईसीएमआर ने महिलाओं के लिए यह गाइडलाइन जारी की थी कि उन्हें समय पर शादी और 30 साल से पहले अपनी फैमिली पूरी कर लेनी चाहिए, वरना कई समस्याएं होने की आशंका रहती है। अपने कैरियर के पीछे या आधुनिकता की दौड़ में जल्दी मां न बनने की जिद के कारण वर्तमान में महिलाओं में अपने एग फ्रीजिंग या प्रिजर्व करवाने और बाद में फैमिली प्लांनिग करने का ट्रेंड बढ़ रहा है। हालांकि हमारे देश के बड़े अस्पतालों में एग-फ्रीजिंग की सुविधा है लेकिन इसमें कितनी सफलता मिलती है- यह पूर्णतया नहीं कहा जा सकता। यह भी जरूरी नहीं कि 4-5 साल बाद प्रिजर्व करवाए हुए एग्स की गुणवत्ता सही रहे। ऐसे में महिला को आर्टिफिशियल प्रेगनेंसी तकनीक-आईवीएफ जैसी एसिस्टिड रिप्रोडक्टिव टैक्नीक (एआरटी) का सहारा लेना पड़ता है। कुछ महिलाएं सेरोगेसी मदरहुड का भी सहारा लेती हैं। लेकिन यह प्रक्रिया भी अब आसान नहीं रह गई है। वर्तमान में सरकार आईवीएफ कराने या सेरोगेसी मां बनने के लिए गाइडलाइन जारी की है जिसके चलते ये आर्टिफिशियल प्रेगनेंसी तकनीक अब आसान नहीं होगी।
प्राकृतिक तौर पर देखें तो 25 साल की उम्र के आसपास महिलाओं की फर्टिलिटी का पीक टाइम होता है। यानी जब महिलाओं के एग्स की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है, प्रेगनेंसी होने की संभावना ज्यादा होती है और परिणाम अच्छे आते हैं। आमतौर पर महिलाओं को मासिक धर्म 12-15 साल की उम्र में शुरू होते हैं। महिला को साल में 12 बार माहवारी होती है, तो प्राकृतिक रूप से उसके अच्छी क्वालिटी के अंडे निकल जाते हैं। बाॅयोलाॅजिकली महिला के अच्छी क्वालिटी के अंडे पहले इस्तेमाल हो जाते हैं।
फर्टिलिटी पर पड़ता है असर
30 साल से ज्यादा होने पर महिलाओं की फर्टिलिटी क्षमता कम होनी शुरू हो जाती है और 35 साल के आसपास गर्भ ठहरने की संभावना बहुत कम रह जाती है। पीरियड कम होने लगते हैं या बहुत ज्यादा होने लगते हैं। यह इनफर्टिलिटी का संकेत होता है। महिला के माइटोपोन्ड्रिया जैसे जननांग बूढ़े हो जाते हैं और इस उम्र तक महिला के बच्चेदानी में अंडों की मात्रा बहुत कम रह जाती है। जिससे न केवल गर्भधारण करने में कठिनाई होती है, बल्कि गर्भपात होने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही होने वाले बच्चे में भी जन्मदोष होने का खतरा रहता है।

इतने साल से जब महिला को महावारी लगातार हो रही होती है, तो हार्मोन्स का प्रभाव यूटरस, ओवरी सब पर पड़ने लगता है। इससे कई बार यूटरस में कमजोरी भी आ जाती है। क्योंकि जब महिला गर्भावती होती है, तो यूटरस और ओवरी को कुछ आराम मिल जाता है। जब महिला बड़ी उम्र तक 30-35 साल तक अगर गर्भवती नहीं होती, तो यूटरस में फ्राइब्रायड्स बन जाते हैं, एंडोमिटरोसिस या खून की गांठें बन जाती हैं जिसकी वजह से महिला में फर्टिलिटी कम हो सकती है। क्योंकि बड़ी उम्र में नाॅर्मल डिलीवरी होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं क्योंकि जननांगों के टिशूज में लचीलापन कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में सिजेरियन की संभावना काफी बढ़ जाती है।
ऑटो इम्यून डिजीज बढ़ने का रहता है डर
उम्र बढ़ने के साथ हार्मोनल बदलावों और खुद पर ध्यान न देने पर महिलाओं के शरीर में मोटापा बढ़ने लगता है। इससे बढ़ी उम्र में शादी करने पर महिलाओं में कई तरह की समस्याएं बढ़ने लगती है जैसे- पीसीओडी, ओबेसिटी, जेस्टेशनल डायबिटीज, ब्लड प्रेशर। इनसे डिलीवरी के समय प्री-टर्म डिलीवरी, सिजेरियन जैसी जटिलताएं होने की संभावना रहती है। जैसे-महिला को डायबिटीज होने पर गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका असर होता है, तो उसका साइज भी बढ़ जाता है। नाॅर्मल डिलीवरी में तो मुश्किल होती ही है, बच्चे में जन्मजात दोष होने और आगे चलकर चाइल्डहुड ओबेसिटी, डायबिटीज होने का खतरा रहता है।
एक्सरसाइज न कर पाने का होता है असर

वर्किंग होने या बड़ी उम्र में एक्सरसाइज करने में आलस के कारण महिलाओं को कई तरह की जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है। नीचे बैठकर काम करने या एक्सरसाइज करने के बजाय ऑफिस जाॅब या टेबल-चेयर पर बैठ कर आराम से काम करने के बढ़ते चलन के कारण गर्भावस्था में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। ऊपर से अच्छा खानपान, हाई कैलोरी डाइट लेने की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे का साइज सामान्य से अधिक होता है। एक्सरसाइज की कमी और बच्चे का आकार बढ़ने की वजह से डिलीवरी के समय बच्चे का सिर पैल्विक एरिया में न जा पाने के कारण नाॅर्मल डिलीवरी न होने का खतरा बना रहता है।
एडजस्ट करने में आती है दिक्कत
कम उम्र में महिलाओं के अंदर दूसरे के अनुरूप ढलने की क्षमता ज्यादा होती है। बेशक कई महिलाओं में अपरिपक्वता देखने को मिलती है। आज के जमाने में महिलाएं कम उम्र में घर का काम करने में ज्यादा हाथ नहीं बंटाती, सोशल सर्कल में ज्यादा व्यस्त रहती हैं। शादी के बाद ससुराल में आने पर पारिवारिक बंधन में बंधने में उन्हें कई तरह की समस्याएं आने लगती हैं। वो सोचती हैं कि कहां वो फ्री-बर्ड थी, लेकिन शादी उनके लिए बंधन के समान हो जाती है।

अमूमन देखा गया है कि 25-30 उम्र के बीच की महिलाएं दूसरों की अपेक्षा सबके साथ एडजस्ट हो सकती हैं। लेकिन 30 साल के बाद की जो महिलाएं अपने प्रोफेशन में कामयाबी हासिल कर लेती हैं, तो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाती हैं। साथ ही अपने फैसले खुद लेने के कारण उनको लगता है कि उन्हें कोई भी निर्णय लेने का हक है। कई बार तो उन्हें अपने जीवनसाथी के साथ एडजस्ट करना भी मुश्किल आ सकती है।
जेनरेशन गैप होने पर सामंजस्य बिठाने में दिक्कत
बड़ी उम्र में बच्चा पैदा होने पर से जैनरेश्न गैप की समस्या भी आती है। जब तक बच्चा बड़ा होता है तो आप उस समय 50-55 साल के हो जाते हैं। आपके और बच्चे के विचारों में ज्यादा गैप हो जाता है। पेरेंट्स -बच्चों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता थोड़ी कम हो जाती है। बच्चों को लगता है कि पेरेंट्स पिछले जमाने के हैं, वो हमारे विचारों और कामों को समझने में सक्षम नहीं है। इसके बजाय युवावस्था में होने के कारण पेरेंट्स बच्चे के साथ अधिक सामंजस्य बिठा पाते हैं।
बॉन्डिंग की कमी

कई मामलों में यह भी देखा जाता है कि बड़ी उम्र में जब पति-पत्नी दोनों अपने कैरियर में कामयाबी के शिखर पर होते हैं। तो बच्चे के लिए वो अपना काम नही छोड़ना चाहते और मेड या परिवार के दूसरे सदस्यों के पास बच्चे को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे बच्चों-पेरेंट्स के बीच बाॅन्डिंग थोड़ी कम हो जाती है। जबकि असलियत यह है कि बच्चे की अच्छी परवरिश एक टीमवर्क के माध्यम से ही की जा सकती है। अच्छी फैमिली और बच्चे की अच्छी शारीरिक-मानसिक रूप से समुचित विकास में संयुक्त परिवार की अहम भूमिका रहती है।
पड़ता है मनोवैैज्ञानिक असर
देर से बच्चा पाने की चाहत के कारण महिला-पुरुष दोनों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव बहुत पड़ता है। कई कपल्स शादी के तुरंत बाद गर्भधारण होेने पर जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार न होने के कारण गर्भपात करवा लेते हैं। अगर बाद में गर्भधारण नहीं हो पाता, तो उनमे एंग्जाइटी, डिप्रेशन और नकारात्मकता आ जाती है।
बच्चे का मानसिक विकास होता है प्रभावित

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जन्म के बाद बच्चे का मानसिक विकास पहले 2 साल में होता है, उतना पूरी जिंदगी में नहीं हो पाता। इस अवधि में बच्चे को नया सिखाने के लिए जितना प्रोत्साहित किया जाता है, बच्चे के न्यूरांस का कनेक्शन ज्यादा विकसित होता है और उसकी मेमोरी अच्छी बनती है। इसलिए बच्चे के लिए समुचित वातावरण की भूमिका रहती है। बच्चे को नया सीखने और विभिन्न कौशल सीखने के लिए पेरेंट्स उन्हें प्रोत्साहित करते हैं, वरना ऐसे बच्चे दूसरों के मुकाबले पिछड़ जाते हैं। इस उम्र में बच्चे का पेरेंट्स और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ समन्वय और सोशल इंटरएक्शन जरूरी है।
क्या करें महिलाएं
बाॅयोलाॅजिकली देखे तो जब भगवान ने गर्भधारण के लिए महिला को रिप्रोडक्टिव उम्र का समुचित समय दिया है, तो महिलाओं को उस पर अमल करना चाहिए। शारीरिक रूप से शादी और फैमिली प्लानिंग देर से करने पर महिलाओं को शारीरिक रूप से कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसे देखते हुए महिलाओं को इस दिशा में जागरूक होने की जरूरत है। अगर उन्हें मनपसंद और मनोवैज्ञानिक स्तर पर अनुकूल जीवन साथी मिलता है, तो कम उम्र में ही शादी कर लेनी चाहिए। साथ ही कैरियर की खातिर या दूसरे कारणों की महत्व देने के कारण 30 साल के बाद प्रेगनेंसी में जच्चा-बच्चा दोनों को रिस्क रहता है। डाॅक्टर भी उन्हें पहली प्रेगनेंसी 30 साल पहले करने की सलाह देते हैं क्योंकि बाद में गर्भधारण न होने की आशंका बनी रहती है।
(डाॅ भारती कालरा, कंसल्टेंट गाइनी और औब्सटेट्रिक्स, भारती अस्पताल, करनाल)