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महंगाई और ज़ायका - गृहलक्ष्मी कहानियां

श्रीमति जी के द्वारा खाना परोसते ही बेटा पप्पू जो वैसे तो पूरी तरह से पप्पू ही है,लेकिन यहाँ अपनी दिमाग दौड़ा गया, और बड़ी ही चालाकी से यह कहते हुए खिसक गया कि-
07:00 PM Apr 06, 2024 IST | Reena Yadav
महंगाई और ज़ायका   गृहलक्ष्मी कहानियां
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Hindi Story: श्रीमति जी के द्वारा खाना परोसते ही बेटा पप्पू जो वैसे तो पूरी तरह से पप्पू ही है,लेकिन यहाँ अपनी दिमाग दौड़ा गया, और बड़ी ही चालाकी से यह कहते हुए खिसक गया कि-

      ” मम्मी मैनें अपने दोस्त के घर पर खाना खा लिया हैं।मैं नहीं खाऊगा”।

      फंस गए बेचारे श्रीमान जी जिनके लिए वहाँ से भागना आसान ना था और खाना खाना किसी युद्ध से कम भी ना था। बेचारे क्या करते चुपचाप बैठ गए।कैसे कहते बिना प्याज के सलाद और सब्जी बेस्वाद लगते है।ऊपर से सब्जी भी कौन सी,टिन्ड़े और लौकी की,और फिर बनाया किस ने है ?  व्हाट्स‌अप, फेसबुक व गूगल विश्वविद्यालय की नियमित छात्रा एवं पाक कला में माहिर है श्रीमति जी ने।

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      ‎किसी जमाने में जिन सब्जियों के भाव फर्श पर हुआ करते थे आज अर्श पर है।इस मंदी के दौर में हम जैसे साधारण घरों में लौकी,टिन्ड़े के अलावा कुछ और सब्जियों की कल्पना करना भी बेमानी है।अपने आप को सान्तवना देते हुए एवं स्वयं को सभी ओर से घिरा पा अचानक श्रीमान जी के मस्तिष्क के चक्षु खुले और उन्होंने अचार मांगने का निर्णय लिया,किन्तु जैसे ही उन्हें श्रीमति जी की तिरछी नजरों का ख्याल आया श्रीमान जी ने अचार मांगने का प्लान स्थगित कर दिया।

      उन्हें सूझ ही नहीं रहा था वे क्या करे? अगर वे कहते हैं

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      ” खाना खा कर आए है या खाना नहीं खाएगे” तो ढेरों सवालों की झड़ी लग जाएगी, जिसका जवाब देना उनके लिए उतना ही मुश्किल होगा जितना प्याज के बढ़ते भाव और मंहगाई को रोकना। सरकार भले ही बढ़ते महंगाई के साथ देश चला सकती हैं परन्तु एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार के लिए इस बढ़ती महंगाई के साथ घर और बीवी चलाना एक विकट समस्या हैं।

      ‎खाने की टेबल पर श्रीमति जी के चहरे पर मुस्कान देख श्रीमान जी असमंजस में पड़ गए। कहीं मैडम जी की छोटी सी मुस्कान बड़ी महंगी ना पड़ जाए। इस मुद्रास्फीति के दिनों में यदि श्रीमति जी जान मांग ले तो देना सस्ता पड़ेगा,लेकिन यदि भूले से भी 1 किलो प्याज मांग ले तो क्या होगा….?प्याज के भाव अभी 80 रूपए से 100 रुपए किलो है।नहीं….नहीं….ऐसा नहीं हो सकता।यह सब सोच श्रीमान जी के पसीने छूटने लगे।

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      वस्तुस्थिति को देखते हुए श्रीमान जी को राजकपूर साहब पर फिल्माया गाना  याद आने लगा

      “दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनियाँ बनाई”

      वे सोचने लगे यदि आज के दौर में यह गाना लिखा जाता तो जरूर कुछ इस प्रकार होता –

      ” प्याज बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को प्याज बनाई… उस पर बढ़ती हुई ये महंगाई…”

      ‎श्रीमान जी खाना निगलते हुए अपनी ही कल्पनाओं में खोए हुए थे कि श्रीमती जी ने पूछा –

       ” खाना कैसा बना हैं? बिना प्याज के टेस्टी सब्जी बनाने की रेसेपी मैंने यू ट्यूब चैनल  पर देख कर बनाई है। यह सुन श्रीमान जी पुनः विचाराधीन हो गए।आज जहाँ नेट,डेटा पैक का ग्राफ लोगों में बढ़ता जा रहा है,वहीं ना जाने कैसे MTNL और BSNL का लेखचित्र गिरता जा रहा है।जो समझ से परे है।

प्रश्न का जवाब ना पा श्रीमति जी दोबारा 4G की स्पीड पर गुर्राती हुए बोली-

“सब्जी कैसी बनी है ?”श्रीमान जी जो moved out of coverage area थे,तुरंत signal पकड़ते हुए बोले-

” खाना ज़ायकेदार बना है ।” मुंह और हाथ की जंग समाप्त होते ही बिलासपुर वाली मौसी जी का फोन आ गया,मामा जी नागपुर जा रहे हैं और उनके लिए खाना रेलवे स्टेशन पहुँचाना हैं ।

      ‎इस महंगाई के जमाने में रिश्तेदारी निभाना भी एक कठिन प्रक्रिया है,बिल्कुल वैसा ही जैसे पांच रुपए के समोसे को जबरदस्ती five star hotel में पचास रुपए में खाना और उस पर नहीं चाहते हुए भी tip देना। पूरे मान सम्मान के साथ मामा जी के लिए खाना पहुंचाना है यह जान श्रीमान जी के माथे पर चिंता की लकीरे खिंच गई,क्योंकि मामा जी ठहरे खाने के शौकीन उनके लिए विशेष मसालेदार खाना बनाना होगा और स्टेशन भी जाना होगा जिसमें पेट्रोल भी जलेगा कुल मिला कर श्रीमान जी के जेब पर कैंची का चलना निश्चित है। यह सब जान श्रीमति जी के चेहरे पर भी थोड़ी सी सिकन आ गई।आखिर महगांई जो इतनी बढ़ी हुई है।परन्तु तुरंत ही श्रीमति जी अपने आप को सामान्य करती हुई अपना काम निपटा पूर्ण रूप से श्रध्दापूर्वक कुशल गृहणी की तरह ऐसे अतिथि के आदर सत्कार की तैयारी में जुट गई जो घर आये वगैरह ही घर का बजट बिगाड़ने वाले है। पूरे तामझाम और आवभगत के साथ खाना पहुंचा जब श्रीमान जी घर लौटे तो उन्होनें क्या देखा…? श्रीमति जी बचा हुआ खाना बड़े सलीके से सहेज कर रख रही हैं।

     श्रीमान जी यह ‎सोच कर प्रसन्न हो गए कि चलो मामा जी की कृपा और श्रीमति जी की मितव्ययिता की वजह से बचा हुआ खाना ही सही लेकिन मसालेदार और लजीज खाना तो खाने मिलेगा।वरना इस महंगाई ने तो मुँह का जा़यका ही बिगाड़ रखा है।

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