मजबूरी—गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Majburi Story: छोटी बहू ने आवाज लगाते हुए ,रमिया जरा इधर सुनना तो, मेरे कमरे की सफाई भी कर देना। जी मालकिन कहते हुए रमिया अपने कामों में लग जाती है। सुनैना को अपनी बहू का रमिया से बात करने का यह तरीका बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा….।
उन्होंने नजदीक जाकर कहा की बेटी बुजुर्ग है रमिया हम बहुत सम्मान देते आए हैं आज तक उनको। अपने परिवार का सदस्य मानते हुए ,मैं उन्हें दीदी बुलाती हूं।
मेरे घर काम करती हैं उससे मुझे सुविधा मिलती है वह गरीब हैं इसका मतलब यह नहीं कि तुम उनसे कुछ भी कहो आंटी भी तो कह सकती हो ना बेटा। बड़े प्यार से सुनैना जी ने कहा अच्छे शब्द अच्छी बातें हमेशा अच्छी लगती है।
हमसे भी वो उम्र में बड़ी है तुम्हारे पति को भी पाला पोसा बड़ा किया है। तुम्हारे मां समान है बहू गुस्साते हुए कामवाली को मैं सर पर नहीं चढाती। काम वाली है काम वाली ही रहेगी मुफ्त में काम नहीं करती बदले में पैसा लेती है…….।
सुनैना को ज्यादा बोलना उचित नहीं लगा क्योंकि बच्चों से बहस अच्छी बात नहीं है खुद की मर्यादा भंग होती है। जिसकी जैसी समझ जिंदगी उसकी वैसे कटती है मन ही मन यह सवाल करते हुए अपने काम में लग जाती हैं। हो सकता है अमेरिका में रहती है सोच बड़ी हो ,लेकिन ऐसी सोच कर क्या फायदा जो किसी की मजबूरी ना समझ पाए। छुट्टियों में आई है चली जाएगी रहना तो मुझे और रमिया दीदी को ही है साथ-साथ।
अंशु मेरे पोते का आज जन्मदिन है मैंने रमिया से कहा कि आज यहीं रुक जाना तुम रात में, थोड़ी मदद हो जाएगी। उसने सहमति में सर हिलाया । समय पर जन्मदिन मन गया, सभी सोने चले गए रमिया भी अपने घर चली गई ।मेरी बहू ने सुबह-सुबह हाय तौबा मचा दिया …….।
क्या हुआ??????आप कहते हैं इनका आदर करें। रात मैंने डायमंड वाला नेकलेस डाला था वह गायब है। सभी सदस्य तो घर में ही है सिर्फ रात को यहीं गई थी पार्टी खत्म होने के बाद।
ऐसे काम करने वाले को अच्छी तरह से मैं जानती हूं कि बड़े घर में किस मनसा से घुसते हैं। जब पेट भूखा हो तो आदमी कुछ भी कर सकता है सब पापी पेट का सवाल है। रमिया डर से कुछ बोल नहीं पा रही थी एक बार हिम्मत करके बोली कि मैंने नहीं लिया है । लेकिन छोटी बहू कुछ सुनने को तैयार कहां थी…….।
अंशु के साथ खेलते हुए अंशु के दादा पांडे जी गरजते हुए। घर में इतने शोर क्यों मचा रहे हो सभी, शोर का कारण क्या है। सारी बातें जानने के बाद पांडे जी कहते हैं तुम लांछन लगा रही हो पहले सच्चाई तो जान लो यह देखो तुम्हारा नेकलेस अंशु बाबा के कपड़े में था। रात हो सकता है थकान की वजह से तुमने खोलकर कपड़े पर रख दिया और ध्यान नहीं दिया। बिना सोचे समझे लांछन लगा दिया।सोच समझकर किसी पर लांछन लगाओ।
रमिया रोते हुए सच कहा छोटी मालकिन आपने सब पापी पेट का सवाल है लेकिन पेट इतना भी पापी नहीं है। इमानदारी पूर्वक अपने सम्मान को बचाते हुए काम करना हमारी मजबूरी है । हम अपने पेट को चलाने के लिए मजबूर है इसीलिए मजदूर है………।
यह भी देखे-वो लड़का-गृहलक्ष्मी की कहानियां