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मैं ना भूलूंगी बीकानेर-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी

01:00 PM Jan 21, 2024 IST | Sapna Jha
मैं ना भूलूंगी बीकानेर गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Mein na Bhulugi Bikaaner
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 Hindi Short Story: हरियाणा के जिले  फरीदाबाद में मुझे हालांकि सत्ताइस साल हो चुके हैं पर आज भी मैं अपने पेत्रिक निवास बीकानेर की वो चौक की चौपाल आज भी नहीं भूली हूँ। मैं सबसे ज्यादा गणगौर उत्सव को मिस करती हूँ। बीकानेर में राजा महाराजाओं के समय से इस उत्सव का आयोजन होता आ रहा है। अभी भी होली के सोलह दिन बाद तीज पर मेला लगता है। सांस्कृतिक रूप से संपन्न राजस्थान से आज भी राजाओं और राजवाडो की गंध आती है। होली जलने के अगले दिन से सोलह दिन का गनगौर उत्सव मनाया जाता है। जिसमें कुँआरी कन्याएं होली की राख को छान कर पानी डाल कर सोलह पिंडलियाँ बना कर मिट्टी के बर्तन में रख कर रोजाना गीतों के साथ गुलाल से पूजती हैं। ये शिव पार्वती की ही पूजा होती है जिसे हर कन्या अच्छे वर की चाह के लिये करती है। फ़िर सोलहवें दिन गनगौर की तीज आती है जिसमें सुहागन भी सोलह सिंगार करती हैं और व्रत करके अपने सुहाग की कामना दिन गनगौर की तीज आती है जिसमें सुहागन भी सोलह सिंगार करती हैं और व्रत करके अपने सुहाग की कामना करतीं हैं। और फ़िर किसी जलाशय में मिट्टी के बर्तन, जिसमे पूजा की थी, उसका विसर्जन कर दिया जाता है। उसी दिन शाम को पाँच फुट लम्बी राजसी गणगौर और इसर को सिर पर रख कर जूना गढ़ किले से निकाला जाता है। सोने के आभूषणों से लदी दोनों मूर्ति की सवारी बड़े गाजे बाजे से महल से निकलती है। पुराने लोगोँ के घरों में भी लकड़ी की मूर्ति अपनी हैसियत के अनुसार होती है जिसे वो उस दिन सिर पर रख कर राजसी गण गौर की रेस में हिस्सा लेने आते हैं। कुछ किलोमीटर की रेस होती है, जो सबसे पहले नंबर पर जो आती है उसे राज घराने से पुरुस्कृत किया जाता है ।शहर ऐसे सजता है जैसे शादी हो। माना जाता है कि इस दिन गणगौर (पार्वती) अपने पति इसर (शिव) के साथ अपने ससुराल विदा हो जाती है।
मैं आज भी इस उत्सव को भूल नहीं पाई हूं। हर तीज पर अपने आप को वहीं पाती हूँ।

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