मेरा मान रख लेना-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Kahani: रीता के कदम दरवाजे की चौखट पर ही ठिठक गए थे,हाथ से चाय छलकने वाली थी जब उसने सुना उसकी सास,उसकी ननद सीमा से कह रही थीं,”अपने ही घर में मेहमान सी हो गई हूं मै,बस इस एक कमरे में पड़े रहो,खाना मिल जाता है,कपड़े मिल जाते हैं पर मजाल है, कोई मुंह से एक बात कर ले, बस मुंह सीए पड़े रहो सारा सारा दिन।”
“रीता को छोड़ो,वो तो पराई है पर निखिल भी बात नहीं करता क्या तुमसे?”सीमा बोली।
“अरे ! निखिल की तो पूछो मत,जब से शादी हुई है,बस अपनी पत्नी का ही हो के रह गया है वो तो…कब आता है
और कब जाता है पता ही नहीं चलता।”
गला खखारती रीता कमरे में आई तो दोनो एकदम से चुप हो गई।
खामोशी से चाय पी तीनों ने,माहौल कुछ भारी हो गया था,वो दोनो समझ रही थीं कि रीता ने उनकी बात सुन
ली होगी और अब वो गुस्सा करेगी और रीता मौन हो गई थी,उसे अपनी मां का ध्यान आया जो हमेशा उससे
उसकी भाभी दिव्या की शिकायत करती रहती थीं और वो हंस कर उन्हें समझाती,अम्मा!क्यों भाभी के पीछे
पड़ी रहती हो हरदम,अच्छी भली तो हैं वो,कर तो रही हैं तुम्हारा।
रीता की सास जानकी देवी दो दिन पहले बाथरूम में फिसल कर गिर गई थीं, उनकी हड्डी तो सलामत थी पर
सारे शरीर में असहनीय दर्द था और डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी थी।जब से गिरी थीं,लोग पूछने आ रहे
थे।उनका काम जो बढ़ा वो तो बढ़ा ही, साथ में लोगों की आवभगत,उन्हें चाय पानी पूछने देने का काम और
बढ़ गया था रीता का।
बेचारी ने भलमनसाहत दिखाते हुए,ऑफिस से हफ्ते भर की छुट्टी ले ली थी कि सास ठीक हो जाएंगी तब
तक लेकिन वो हर आने जाने वाले की लय से लय मिलाकर जिस तरह उसकी बुराइयां कर रही थीं,उससे वो
बहुत हर्ट थी।
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अभी परसों ही,पड़ोस वाली भाभी जी से उसकी सास कह रही थीं, अजी!नाश्ता मिल जाता है इतना ही बहुत
है,अब ठंडा गरम कौन देखता है?
उसकी पड़ोसन कान भर गई थीं उसकी सास के,मेरी बहू तो मुझे बिल्कुल वक्त से,गरम चाय,नाश्ता,खाना
देती है,आपने बहुत ढील छोड़ रखी है,लगता है,जरा कस के लगाम रखिए।
सास ने उसकी हामी भरी थी और रीता के सीने में कुछ दरक गया था।वो चाहती थी कि उसकी सास उसके
मान सम्मान को समझे,ये ही काम,वो मेड से भी करवा सकती थी लेकिन उसने खुद उनकी सेवा करने का
जिम्मा उठाया क्योंकि वो जानती थी, उसके नौकरी करने की वजह से उसकी सास इग्नोर
महसूस करती हैं,इस बहाने,वो दोनो कुछ नजदीक आयेंगी पर यहां बात उल्टी ही हो रही थी।
उसकी सास सही भी रहतीं पर आने जाने वाले,जो भी मिलने आते,कुछ न कुछ कान भर जाते और वो भड़क
जाती।
रीता को बहुत दुख हो रहा था अपनी सास की बात सुनकर,उसकी इच्छा कि वो सास के करीब रहकर,उनसे
अभी तक बनी गलतफहमी दूर करेगी,मिट्टी में मिल रही थी।
शाम को वो सास के कमरे में दवाई देने गई तो कुछ चुप और उदास थीं।
क्या हुआ अम्मा?तबियत ठीक नहीं आपकी?उसने संयत सुर में पूछा।
वो फफक के रोने लगीं।
रीता उनके पास गई,कहीं दर्द है तो दबा दूं?वो उनका हाथ पकड़ कर बोली।
मुझे माफ कर दे बहू!वो अभी भी रो रही थीं।
लेकिन किस बात की माफी मांग रही हैं आप?वो अचकचा गई।
तू मेरे लिए कितना कुछ कर रही है,ऑफिस से भी छुट्टी ली,सारा दिन,मेरे लिए सूप,चाय दूध,दलिया बनाती है,
दवाई देने का ध्यान रखती है,लोगों को अटैंड करती है और मैं लोगों की बातों में आकर तुझे बुरा भला कहती
हूं। मैं बहुत बुरी हूं।
अरे रे!आपको क्या हो गया है,खुद को कोसिए मत प्लीज!आपको समझ आ गया,ये बहुत बड़ी बात है बस।
तुझे गुस्सा नहीं आता कभी?तुझे मन नहीं करता मुझे बुरा भला कहने का? सास ने आश्चर्य से पूछा।
नहीं,वो मुस्कराई,दरअसल मेरी इच्छा ये तो जरूर होती है कि आप मुझे समझें,मुझे मान दें इस है का कि मै
आपकी परवाह एक बेटी की तरह करती हूं।
तू मेरी बेटी से भी बढ़कर है रीता…वो तो कुछ समय को आई और चली गई,उससे तो मै नाराज हूं,उसने भी मुझे
तेरे खिलाफ भड़काया…जबकि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था…उससे क्या मै खुद से नाराज़ हूं,मैंने उसे वो
संस्कार नहीं दिए जो तुझे तेरी मां ने दिए हैं।
रीता मुस्कराई और कोमलता से बोली,मां!आप खुद को कोसना बंद करें,इस उम्र में अक्सर ऐसा हो जाता
है,मेरी मां भी कभी कभी,मुझसे मेरी भाभी की बुराई कर देती हैं लेकिन मै उन्हें शांत कर देती हूं और भाभी की
अच्छाइयां गिना देती हूं,फिर उनकी समझ में आ जाता है।
साथ ही भाभी को भी बता देती हूं कि मां आपसे क्या उम्मीद करती हैं,अगर बिना परेशान हुए,उनकी समस्या
का निवारण कर सको तो कर देना,वो भी हंसी खुशी मान लेती हैं।
तू बहुत समझदार है मेरी बच्ची!भावुक होकर उन्होंने रीता को गले लगा लिया।
अच्छा मौका देखकर रीता ने अपनी सास से कहा,एक बात कहूं मां,अगर आप वादा करें कि गुस्सा नहीं
होंगी?
बिलकुल नहीं होंगी,जो कहना है निर्भीकता से कह!वो रस घोलती बोली।
आप को निखिल या मुझसे जो भी समस्या है,सबसे पहले हमें बताया करें,किसी दूसरे को नहीं, इससे
आसानी हो जायेगी उसके निराकरण में,नहीं तो बाहर वाले सुनते हैं,मजे लेते हैं,नमक मिर्च लगाकर बढ़ा चढ़ा
के बताते हैं और बात बिगड़ जाती है।
बिलकुल ठीक कह रही है तू बेटा!आगे से तुम लोगों को शिकायत जा कोई मौका नहीं मिलेगा।वो धीमी
आवाज़ में बोली।
शिकायत हमें नहीं थी मां,फिलहाल आपको है और मुझे बताएं…वैसे जहां तक मैने आपकी बात सुनी,आपको
अकेलापन खलता है,मैंने सोचा है, मैं कुछ दिन की छुट्टी बढ़ा लेती हूं,आपको एक खुशखबरी भी सुनानी
थी।रीता थोड़ा शर्माती,हंसती हुई बोली।
क्या?मेरे खेलने के लिए घर में खिलौना लाने वाली है तू? सास ने चहक के पूछा तो रीता ने शर्मा के पलकें
झुका लीं।
आज सबकी शिकायतें दूर हो गई थीं,मां को पोता/पोती मिलने वाले थे,रीता को उसकी सासू मां का
प्यार,दुलार और मान सम्मान।अब किसी भी आने जाने वाले की मजाल नहीं थी जो उसकी सास के कान भर
सके , वो उन्हें मुंह तोड़ जबाव देती और बोलने वाला वहीं रुक जाता।