मां का वो पहला थप्पड़
Mothers Day Poem: नहीं भूलती मां का, वो पहला थप्पड़,
जब उसे पता चला, मेरा किसी से चक्कर,
बहुत तिलमिलाई थी"मां",भुनभुनाई थी,
थप्पड़ मारकर, उसने अच्छे से डांट पिलाई थी,
क्या इसीलिए तुझे,पाल-पोस कर, इतना बड़ा किया,
हमारे प्यार का तुमने, हमें यह सिला दिया,
क्या कमी रह गई थी, हमारे प्यार में,
क्यूं तुमने हमसे,यह बदला लिया,
मैं बहुत रोई थी, गिड़गिड़ाई थी,
कुछ गलत नहीं किया,कसम खाई थी,
नहीं बोली मां मुझसे, दूरी बनाई थी,
फिर कभी ना उससे मिलने की,कसम खिलवाई थी,
ना नाराज हो मां, मैं थोड़ी नादान हूं,
जो तुम कहोगी, मैं करने को तैयार हूं,
मैं तुम्हारी नाराजगी, ना झेल पाऊंगी,
मुझसे मुख मत मोड़ना,ऐसे तो मां मैं,जी ना पाऊंगी,
खत्म कर दो मां, इस कड़वाहट को,
ना झेल पाऊंगी, इस नफ़रत को,
तेरी ममता के साए में पली बढ़ी,
देख मैं हूं तेरी, नाज़ुक कली,
मेरे रोने-धोने पर,
मां का गुस्सा, कुछ शांत हुआ,
कहा, इतना तो बता दें,वह कौन है मुआ,
मैं भी तो देखूं, तेरी चाहत को,
अगर ठीक लगा तो,कर दूं उसके साथ,तेरा ब्याह,
मैं मानती हूं, मां बहुत गुस्सा थी,
लेकिन फिर भी मेरे साथ, खड़ी थी,
क्योंकि वह मां थी
जमाने में दस बातें सुनाई थी,
फिर भी मां अधिक समय नाराज ना रह पाई थी,
मां की ममता ने,बेटी की खुशी चाही थी,
एक दिन मैं, उसे लेकर आई थी,
बिना गुस्सा किये मां ने, सवालों की झड़ी लगाई थी,
अंत में मां ने अपना,फैसला दिया,
कर दिया मेरा,उसी के साथ ब्याह।।